नई दिल्ली:
फिल्म 'कॉफी विद डी' की कहानी एक बहुत ही मशहूर और कामयाब जर्नलिस्ट की है जिसे प्राइम टाइम शो से हटाया जाता है क्योंकि किसी मुद्दे पर बहस के दौरान वो चर्चा में आये विशेषज्ञों को कुछ बोलने नहीं देता. अब वह दोबारा कुछ भी कर के टीआरपी हासिल करना चाहता है. इसके लिए यह पत्रकार देश के सबसे बड़े डॉन 'डी' के बारे में झूठी-झूठी खबरें सोशल मीडिया पर वायरल करता है ताकि 'डी' उसे इंटरव्यू देने के लिए बुला ले और ऐसा होता भी है. घोष पहुंच जाते हैं इस डॉन का इंटरव्यू करने. अब यह इंटरव्यू कैसा होगा और इंटरव्यू के सवाल जवाब क्या हैं इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
ये फिल्म एक व्यंग है. कहानी, चित्रपट और संवाद अच्छे से लिखे गए हैं जिसमें आपको कई जगह हंसी आती है और इसके लिए इसके लेखक और निर्देशक विशाल मिश्रा की तारीफ करनी पड़ेगी. हालांकि कहानी सच्चाई से परे या फिर अनरियल लगती है मगर काल्पनिक कहानी कही जा रही है इसलिए ज्यादा दोष नहीं दे सकते. बस एक पत्रकार और डॉन के इंटरव्यू का मजा देती है फिल्म 'कॉफी विद डी' क्योंकि इसकी कहानी में काफी ह्यूमर है. फिल्म में जर्नलिस्ट की भूमिका में कॉमेडियन सुनील ग्रोवर और अंडरवर्ल्ड डॉन डी की भूमिका में जाकिर हुसैन अच्छे लगे हैं मगर और अच्छा करने की गुंजाईश थी.
अगर फिल्म की कमजोर कड़ी की बात करें तो फिल्म का निर्देशन देख कर लगता है कि ये विशाल की पहली फिल्म है. यानी निर्देशन थोड़ा कमज़ोर पड़ा. बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के साथ फिट नहीं हो रहा था. कुछ सीन भी लंबे और खींचे हुए हो गए हैं. इंटरव्यू के दौरान फिल्म के दृश्यों को बीच-बीच में इधर उधर घुमाया जा सकता था और मजेदार चीजें डाली जा सकती थीं जिससे इंटरव्यू के लंबे सीन से छुटकारा मिल सकता था.
फिल्म का क्लाइमेक्स मजेदार है इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार.
ये फिल्म एक व्यंग है. कहानी, चित्रपट और संवाद अच्छे से लिखे गए हैं जिसमें आपको कई जगह हंसी आती है और इसके लिए इसके लेखक और निर्देशक विशाल मिश्रा की तारीफ करनी पड़ेगी. हालांकि कहानी सच्चाई से परे या फिर अनरियल लगती है मगर काल्पनिक कहानी कही जा रही है इसलिए ज्यादा दोष नहीं दे सकते. बस एक पत्रकार और डॉन के इंटरव्यू का मजा देती है फिल्म 'कॉफी विद डी' क्योंकि इसकी कहानी में काफी ह्यूमर है. फिल्म में जर्नलिस्ट की भूमिका में कॉमेडियन सुनील ग्रोवर और अंडरवर्ल्ड डॉन डी की भूमिका में जाकिर हुसैन अच्छे लगे हैं मगर और अच्छा करने की गुंजाईश थी.
अगर फिल्म की कमजोर कड़ी की बात करें तो फिल्म का निर्देशन देख कर लगता है कि ये विशाल की पहली फिल्म है. यानी निर्देशन थोड़ा कमज़ोर पड़ा. बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के साथ फिट नहीं हो रहा था. कुछ सीन भी लंबे और खींचे हुए हो गए हैं. इंटरव्यू के दौरान फिल्म के दृश्यों को बीच-बीच में इधर उधर घुमाया जा सकता था और मजेदार चीजें डाली जा सकती थीं जिससे इंटरव्यू के लंबे सीन से छुटकारा मिल सकता था.
फिल्म का क्लाइमेक्स मजेदार है इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार.
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