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This Article is From Jul 08, 2011

रिव्यू : दिल को छू लेगी 'चिल्लर पार्टी'

Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
डायरेक्टर विकास बहल और नीतेश तिवारी की 'चिल्लर पार्टी' इंटेलिजेंट फिल्म है। ये कहानी में आने वाले मोड़ देखकर ही पता लग जाता है।
Mumbai: कई बच्चे दूध के नाम से कतराते हैं। 'चिल्लर पार्टी' में एक गरीब−अनाथ−मेहनती लड़के फटका का डायलॉग है कि जब खाने को नहीं मिलता तो भूखे सो जाते हैं इसीलिए अपने को तो दूध भी अच्छा लगता है। ऐसे डायलॉग्स के साथ 'चिल्लर पार्टी' ना सिर्फ दिल को छूती है बल्कि गरीबी और जानवरों से प्यार जैसे कई मुद्दे भी उठाती है। कहानी मुंबई के कुछ स्कूली बच्चों की है जो अपनी क्रिकेट टीम के लिए फास्ट बॉलर ढूंढते-ढूंढते बिल्डिंग की कार धोने वाले लड़के फटका के पास जा पहुंचते हैं। स्कूली बच्चे और फटका घुलमिल जाते हैं लेकिन तभी आती है एक मुसीबत। फटका का कुत्ता मंत्री के सेक्रेटरी को काट खाता है। अब मंत्री इस कुत्ते की जान लेने पर उतारू है। क्या बच्चे पावरफुल नेता के सामने अपने कुत्ते को बचा पाएंगे।  डायरेक्टर विकास बहल और नीतेश तिवारी की 'चिल्लर पार्टी' एक इंटेलिजेंट फिल्म है और ये कहानी में आने वाले मोड़ देखकर ही पता लग जाता है। बच्चों की साइक्लॉजी और उनके खिलौनों पर अच्छी रिसर्च है तभी स्कूली बच्चे रुठे हुए फटका को रिमोट कंट्रोल कार से खाना पहुंचाते हैं। बच्चों से कई सॉलिड पंच लाइन्स बुलवाई गई हैं जिन्हें सुनकर आप हंसे बिना नहीं रहेंगे। हालांकि मंत्री का कुत्ते के पीछे हाथ धोकर पड़ना रियलिस्टिक नहीं लगता। एंड में टीवी चैनल पर बच्चों और मंत्री के बीच गैरज़रूरी बहस छेड़ दी गई है जहां नेता बच्चों को अपमानित करता है। आजकल नेता इतने घाघ हो चुके हैं कि शायद ही ऐसा कोई सरेआम करे। कुल मिलाकर इंटरवेल के बाद 'चिल्लर पार्टी' बिना बात के खींची गई। 'तारे ज़मीं पर' वाली स्टाइल के गानों को काटकर इसकी लंबाई आधे घंटे कम की जा सकती थी। बावजूद इसके जब चवन्नी चलना बंद हो गई 'चिल्लर पार्टी' पर पैसा खर्च किया जा सकता है। फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।

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चिल्लर पार्टी, रिव्यू, विजय दिनेश विशिष्ठ