मुंबई:
शुक्रवार को रिलीज़ हुई महेश भट्ट कैम्प की नई फिल्म 'ब्लड मनी' यंग मैनेजमेंट ग्रेजुएट कुणाल की कहानी है, जो बड़े सपने लेकर अपनी पत्नी आरज़ू के साथ साउथ अफ्रीका की डायमंड कंपनी में नौकरी करने आता है, लेकिन चमचमाते हीरों के कारोबार के पीछे उसकी कंपनी का काला सच छिपा है। कहानी का आधार है कि क्या कुणाल इस सच से पर्दा उठाएगा या इसे नज़रअंदाज़ करके सफलता का मज़ा लूटता रहेगा। सो, ऊपर-ऊपर से 'ब्लड मनी' डायमंड ट्रेड के गैरकानूनी धंधे पर आधारित दिखती है, लेकिन यह फिल्म अपने आप में सपने और प्यार के बीच स्ट्रगल कर रहे एक नौजवान की प्रेमकथा है।
आइए, पहले चर्चा करते हैं, फिल्म की खामियों पर... सब कुछ बहुत आसानी से होता दिखाई देता है। ऐसा कहीं नहीं दिखता कि कुणाल ने कौन-सा एचीवमेंट हासिल किया, जो साउथ अफ्रीका पहुंचते ही कंपनी उसे आलीशान बंगला देती है। उसमें ऐसा क्या खास है, जो से तेजी से प्रमोशन मिलते जाते हैं। बॉस से लेकर विदेशी कन्याएं तक, सब उस पर लट्टू क्यों हैं। कंपनी का टॉप मैनेजर जिस हीरे को ढाई करोड़ में नहीं बेच पाता, 10 मिनट बाद वही हीरा कुणाल तीन करोड़ में ऐसे बेचता है, जैसे दो रुपये की चॉकलेट तीन रुपये में बेच दी हो। नया-नया कुणाल हीरे पहचानने में इतना एक्सपर्ट कैसे है कि उसे बड़ी-बड़ी डील के लिए भेज दिया जाता है। दरअसल 'ब्लड मनी' गहराई से डायमंड ट्रेड को छूती ही नहीं।
अब फिल्म की अच्छाइयां... कुणाल खेमू, अमृता पुरी और खासकर मनीष चौधरी ने बहुत अच्छी एक्टिंग की है, डायलॉग्स भी अच्छे हैं - जैसे मकड़ी तारीफ के लिए नहीं, शिकार के लिए जाल बुनती है... क्लाइमेक्स अच्छा है, जहां फिल्म यू-टर्न ले लेती है। म्यूज़िक बेहतर है, हालांकि ज़्यादातर गानों में भट्ट कैम्प का ट्रेडमार्क वर्ड - ओ... ओ... ओ... - सुनाई पड़ेगा। जीत गांगुली के संगीत पर सैयद कादरी का लिखा गीत 'तेरे इश्क पे तेरे वक्त पे... बस हक है इक मेरा...' बहुत खूबसूरत है। डायरेक्टर विशाल महदकर की 'ब्लड मनी' एवरेज फिल्म है, और इसके लिए हमारी रेटिंग है 2.5 स्टार...
आइए, पहले चर्चा करते हैं, फिल्म की खामियों पर... सब कुछ बहुत आसानी से होता दिखाई देता है। ऐसा कहीं नहीं दिखता कि कुणाल ने कौन-सा एचीवमेंट हासिल किया, जो साउथ अफ्रीका पहुंचते ही कंपनी उसे आलीशान बंगला देती है। उसमें ऐसा क्या खास है, जो से तेजी से प्रमोशन मिलते जाते हैं। बॉस से लेकर विदेशी कन्याएं तक, सब उस पर लट्टू क्यों हैं। कंपनी का टॉप मैनेजर जिस हीरे को ढाई करोड़ में नहीं बेच पाता, 10 मिनट बाद वही हीरा कुणाल तीन करोड़ में ऐसे बेचता है, जैसे दो रुपये की चॉकलेट तीन रुपये में बेच दी हो। नया-नया कुणाल हीरे पहचानने में इतना एक्सपर्ट कैसे है कि उसे बड़ी-बड़ी डील के लिए भेज दिया जाता है। दरअसल 'ब्लड मनी' गहराई से डायमंड ट्रेड को छूती ही नहीं।
अब फिल्म की अच्छाइयां... कुणाल खेमू, अमृता पुरी और खासकर मनीष चौधरी ने बहुत अच्छी एक्टिंग की है, डायलॉग्स भी अच्छे हैं - जैसे मकड़ी तारीफ के लिए नहीं, शिकार के लिए जाल बुनती है... क्लाइमेक्स अच्छा है, जहां फिल्म यू-टर्न ले लेती है। म्यूज़िक बेहतर है, हालांकि ज़्यादातर गानों में भट्ट कैम्प का ट्रेडमार्क वर्ड - ओ... ओ... ओ... - सुनाई पड़ेगा। जीत गांगुली के संगीत पर सैयद कादरी का लिखा गीत 'तेरे इश्क पे तेरे वक्त पे... बस हक है इक मेरा...' बहुत खूबसूरत है। डायरेक्टर विशाल महदकर की 'ब्लड मनी' एवरेज फिल्म है, और इसके लिए हमारी रेटिंग है 2.5 स्टार...
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