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This Article is From Oct 23, 2015

साला जैसे शब्द से कैसे ऐतराज़ हो सकता है सेंसर बोर्ड को: नीतू चंद्रा

साला जैसे शब्द से कैसे ऐतराज़ हो सकता है सेंसर बोर्ड को: नीतू चंद्रा
एक्ट्रेस नीतू चंद्रा (फाइल फोटो)
अभिनेत्री से निर्माता बनी नीतू चंद्रा को बतौर निर्माता पहली ही फ़िल्म में लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। अब सेंसर बोर्ड ने उनकी फ़िल्म 'वन्स अपॉन ए टाइम इन बिहार' से साला शब्द निकालने को कहा है। सेंसर की इस सख़्ती से नीतू हैरान भी हैं और परेशान भी।

'फिल्म 'रास्कल्स' का तो नाम ही गाली है..'
नीतू कहती हैं, 'साला शब्द से भी ऐतराज़ है सेंसर बोर्ड को और निकालने को कहा जारहा है। हम उन्हें समझाने का प्रयास कर रहे हैं मगर बात ये है साला शब्द से कैसे ऐतराज़ हो सकता है। क्या कोई आदमी अपनी पत्नी के भाई को साला नहीं कहता?। कई सालों से सुपर हिट गाना सुना जा रहा है 'साला मैं तो साहब बन गया'। अब इस गाने पर भी प्रतिबन्ध लगाओ। फ़िल्म 'कमीने' का नाम ही गाली है अगर साला गाली है तो। फ़िल्म 'रास्कल्स' का नाम ही गाली है...। इसलिए इतनी सख्ती सही नहीं है।'

नीतू की फिल्म का लब्बोलुआब...
नीतू की फ़िल्म 'वन्स अपॉन ए टाइम इन बिहार' दर्शा रही है बिहार की कहानी जिसमें वहां की तकलीफ़, राजनीति, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी दिखाई जायेगी। साला शब्द से पहले सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म से राज ठाकरे और राबड़ी देवी का नाम निकालने का आदेश दे चुकी है क्योंकि फ़िल्म में नव निर्माण सेना के राज ठाकरे और बिहार की पूर्व मुख्य मंत्री राबड़ी देवी के नाम का ज़िक्र हुआ था।

नीतू ने बताया, 'अगर इस तरह सेंसर बोर्ड सख्त होगा तो हम पॉलिटिकल थ्रिलर फ़िल्म कैसे बनाएंगे। मेरी फ़िल्म सिर्फ़ बिहार के परिवेश में बनी है वरना ये कहानी और परेशानी पूरे देश की है।'

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