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उत्तराखंड संकट : पहले राष्ट्रपति शासन, अब फ्लोर टेस्ट, 10 प्वाइंट्स में समझें पूरा घटनाक्रम..

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हरीश रावत को बड़ी राहत दी है।
नई दिल्ली:

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को फ्लोर टेस्ट हो गया। हालांकि इसके परिणाम के लिए हमें इंतजार करना होगा। हम आपको उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट और उसके पहले के घटनाक्रम से इन 10 प्वाइंट के माध्यम से अवगत करा रहे हैं-

इस के संपूर्ण घटनाक्रम के 10 खास प्‍वाइंट्स...

  1. 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के नौ विधायकों ने समर्थन किया था, जिसके बाद प्रदेश में राजनैतिक हलचल सतह पर आ गई।
  2.  राज्यपाल ने हरीश रावत सरकार को 28 मार्च को बहुमत साबित करने को कहा लेकिन केंद्र सरकार ने उससे पहले ही 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। इसका कारण विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका को बताया गया। गौरतलब है कि एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया था जिसमें मुख्यमंत्री रावत 28 मार्च को होने वाले विश्वास मत में जीत हासिल करने के लिए पार्टी के बागी विधायकों के साथ सौदेबाजी करते नजर आए।
  3.  इस पर कांग्रेस ने  राष्ट्रपति शासन के खिलाफ उत्तराखंड हाई कोर्ट की सिंगल बेंच में अपील कर दी। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में बहुमत साबित करने की तारीख तीन दिन आगे बढ़ाकर 31 मार्च कर दी।
  4. इसके विरोध में केंद्र ने उत्तराखंड हाई कोर्ट की डबल बेंच में अपील की जिसके बाद कोर्ट ने  30 मार्च को शक्ति परीक्षण के अपने ही आदेश पर रोक लगा दी और सुनवाई की तारीख 6 अप्रैल कर दी।
  5. इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई बार तीखी टिप्पणियां करते हुए केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई जिनमें कुछ इस तरह रहीं। 'लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को हटाना अराजकता का एहसास कराता है और उन आम लोगों के विश्वास को डिगाता है जो कि तपती धूप, बारिश और बर्फ के थपेड़ों का सामना करते हुए अपने मताधिकार का उपयोग करते हैं।' 'भारत में संविधान से ऊपर कोई नहीं है। इस देश में संविधान को सर्वोच्च माना गया है। यह कोई राजा का आदेश नहीं है, जिसे बदला नहीं जा सकता है। राष्ट्रपति के आदेश की भी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है...  लोगों से गलती हो सकती है, फिर चाहे वह राष्ट्रपति हों या जज।' 'विधायकों की खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बहुमत परीक्षण का एकमात्र संवैधानिक रास्ता विधानसभा में शक्ति परीक्षण है, जिसे अब भी आपको करना है।' 'क्‍या आप लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को नाटकीय ढंग से पांचवें वर्ष में गिरा सकते हैं? राज्यपाल ही ऐसे मामलों में फैसले लेता है। वह केंद्र का एजेंट नहीं है। उसने ऐसे मामले में फैसला लेते हुए शक्ति प्रदर्शन के लिए कहा है।'
  6. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 21 अप्रैल को राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया और कहा कि राज्य में 18 मार्च से पहले की स्थिति बनी रहेगी साथ ही 29 अप्रैल को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का भी आदेश दे दिया था। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त किए जाने को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्हें अयोग्य होकर दलबदल करने के 'संवैधानिक गुनाह' की कीमत अदा करनी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 356 का उपयोग सुप्रीम कोर्ट के तय नियमों के खिलाफ किया गया था।
  7. केंद्र ने इस फ़ैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण आयोजित करवाने की व्यवहारिकता के बारे में उसे सूचित करने के लिए छह मई तक का समय दिया।
  8. सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को इस मामले में 10 मई को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था, जिसमें कहा था कि कांग्रेस के 9 बागी विधायक वोटिंग में हिस्सा नहीं लें सकेंगे और इसका फैसला हाई कोर्ट पर छोड़ दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य में 2 घंटे (11 से 1 बजे तक) के लिए राष्ट्रपति शासन नहीं रहेगा और वोटिंग की वीडियोग्राफी भी की जाएगी।
  9. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई को बागी विधायकों को वोटिंग से वंचित रखने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।
  10. उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार (10 मई) को फ्लोर टेस्ट हो गया है। अब इसके परिणाम के लिए हमें इंतजार करना होगा, क्योंकि इसे सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा जाएगा। जिस पर संभवत: बुधवार को कुछ जानकारी मिल सकती है।

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