कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव को लेकर अपना सबसे बड़ा चुनावी हथियार का इस्तेमाल कर दिया है. प्रियंका गांधी वाड्रा अब चुनावी मैदान में हैं. लोकसभा की 80 सीटों वाली इस राज्य में चुनावी घमासान इस बार तीन मोर्चों पर लड़ा जाएगा एक ओर जहां प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस है, सपा-बीएसपी गठबंधन और भारी भरकम बहुमत वाली जोड़ी मोदी और योगी की जोड़ी है. लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के आने से कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हुआ है और पार्टी के कार्यकर्ता प्रियंका को लाने की मांग काफी दिन से कर रहे थे. सोमवार को लखनऊ में रोड शो में के बाद हुई रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान किया कि प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनावाएंगे. राहुल का संकेत साफ है कि अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपना विस्तार करेगी और अपने दम पर संगठन खड़ा करेगी. हालांकि बहुत कुछ लोकसभा चुनाव के नतीजे पर भी निर्भर करेगा. अगर कांग्रेस प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में अपेक्षित प्रदर्शन करती है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा प्रियंका गांधी होंगी इसमें कोई दो राय नहीं होगी. प्रियंका के आने के बाद से उत्तर प्रदेश में कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
10 बड़ी बातें
प्रियंका गांधी की टीम ने फैसला किया है कि उन सीटों पर ज्यादा मेहनत करनी होगी जहां पर 20 फीसदी या उससे अधिक दलित रहते हैं.
उत्तर प्रदेश में ऐसी करीब 40 सीटें हैं और जिसमें सीटें 17 आरक्षित हैं. इस प्लान का मतलब है कि कांग्रेस अपने उस कोर वोट बैंक की ओर वापस लौटने की कोशिश कर ही है जो इंदिरा गांधी के समय साथ थे. लेकिन अब यह वोट बैंक मायावती के साथ है
वहीं प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसी बीच एक मामले में और मायावती को पीछे छोड़ा है. लखनऊ में उतरने से पहले उन्होंने ट्विटर में अकाउंट बनाया और फॉलोवर्स के मामले में वह 24 घंटे में मायावती से काफी आगे निकल चुकी हैं.
वहीं सपा और बीएसपी के साथ गठबंधन के ऐलान वाले दिन प्रेस कांन्फ्रेंस में जहां अखिलेश यादव और मायावती कांग्रेस को तवज्जो देने को तैयार नहीं थे हालांकि उन्होंने रायबरेली और अमेठी में अपने प्रत्याशी नहीं उतारने का ऐलान किया था. वहींअब अखिलेश भी नरम दिख रहे हैं.
सोमवार को ही फिरोजाबाद में पत्रकारों से अखिलेश यादव ने कहा कि ये गठबंधन बीएसपी से तो है ही, वहीं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कांग्रेस भी शामिल है. आरएलडी को भी तीन सीटें दी गई हैं, और निषाद पार्टी भी शामिल है.
प्रियंका गांधी के उतरने के बाद उनके असर का अभी आकलन करना जल्दबाजी होगी . वहीं अमेरिका की एक प्रभावशाली पत्रिका ने कहा है कि प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनने से पार्टी को बीजेपी की तुलना में धन एवं संसाधन के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी.
प्रियंका गांधी की वजह से सवर्ण वोट बैंक भी प्रभावित हो सकता है क्योंकि इंदिरा के समय खासकर ब्राह्णणों का इस पार्टी में खासा वर्चस्व था. अभी इस पर बीजेपी का बड़ा कब्जा है और आर्थिक आधार पर आरक्षण के बिल के बाद बीजेपी की पैठ और बढ़ सकती है.
लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा का चेहरा राजनीति में नया है और बीजेपी में पिछले कई चार सालों से ओबीसी की ओर खासा झुकाव हुआ है. राज्य में योगी सरकार की छवि क्षत्रियों के वर्चस्व वाली बन गई है और थानों और कई विभागों में तैनातगी से ब्राह्णण खासे उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
माना जाता है कि पीएम मोदी अपने भाषणों की वजह से युवाओं को अपने पाले में लाने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन पिछले चार सालों में बेरोजगारी को लेकर कोई खास काम नहीं हो पाया है. प्रियंका गांधी अपने भाषणों में आक्रामकता दिखाने के बजाए शालीनता से विकास और रोजगार और भविष्य की बातें करती हैं.
लेकिन कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है यह है कि इन मुद्दों के लिए कोई ठोस एजेंडा नहीं है. खेत के बगल में फैक्टरी लगाने की बातें राहुल गांधी की भाषणों में होती हैं लेकिन धरातल पर इसकी सच्चाई कितनी है, यह जनता भी समझती है.