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फिदेल कास्त्रो, क्यूबा के वह नेता जिन्होंने अमेरिका से सीधे सीधे 'पंगा' लिया

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फाइल तस्वीर : AFP

विश्व के विवादित कम्यूनिस्ट नेता और क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का 90 साल की उम्र में निधन हो गया. करीब आधी सदी तक कास्त्रो, क्यूबा में एक दलीय शासन व्यवस्था के प्रमुख रहे और खराब सेहत की वजह से 2008 में उन्होंने कार्यभार अपने भाई राउल के हाथों में दे दिया. आइए जानते हैं फिदेल कास्त्रो से जुड़ी कुछ ख़ास बातें -

फिदेल कास्त्रो, ज़रा नज़दीक से..
  1. एक तरफ जहां पूरी दुनिया में वामपंथ फीका पड़ता जा रहा है, वहीं क्यूबा में अभी भी लाल झंडा फहराया जाता है, जहां फिदेल कास्त्रो ने 17 साल तक बतौर प्रधानमंत्री और फिर 32 साल तक बतौर राष्ट्रपति देश पर राज किया. अभी भी उनके भाई राउल कास्त्रो ने सत्ता संभाल रखी है और हाल यह है कि यह उन चुनिंदा देशों में से एक है जिसने उपभोक्तावाद, बाज़ार और पूंजीवाद से काफी दूरी बनाकर रखी है.
  2. विश्व राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वालों के लिए फिदेल कास्त्रो सिर्फ महान ही नहीं 'हिम्मती' भी थे क्योंकि जहां पूरी दुनिया अमेरिका की ताकत के आगे झुकती नज़र आती है, वहीं उसी की 'नाक के नीचे' (क्यूबा, अमेरिका के दक्षिण में स्थित है) क्यूबा ने वामपंथ का हाथ मजबूती से पकड़ रखा है. कास्त्रो की अमेरिका से 'पंगा' लेने की आदत को दुनिया भर में काफी दिलचस्पी से देखा जाता रहा है, फिर वो खुलेआम अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन रह चुके सोवियत यूनियन से दोस्ती रखना हो या फिर 1960 में क्यूबा में स्थित अमेरिकी फैक्ट्रियों पर कब्ज़ा जमाना हो जिससे वॉशिंगटन का खून खौल गया था.
  3. कास्त्रो अपने माता-पिता के नाजायज़ बेटे थे. उनके पिता एक अमीर व्यापारी थे और उनकी मां एक घरेलू सेवक. वह मजदूरों के बीच ही पले पढ़े थे इसलिए अमीर और गरीब के बीच पनपती असमानता को वह सीधे तौर पर देख पाए थे. छात्र राजनीति में इसका असर देखा गया जहां उनके विरोधी तेवर जल्द ही सबकी नज़रों में आ गए. सरकार की आलोचना करने वाले उनके भाषण इतने ज़ोरदार होते थे कि जल्द ही पूरे देश का ध्यान उनकी तरफ खिंचता चला गया. (पढ़ें कास्त्रो की ख़ास 10 पंक्तियां)
  4. कास्त्रो ने मिर्था डियाज़ से पहला ब्याह रचाया था जिनके पिता इस शादी के खिलाफ थे. दरअसल उन्हें राजनीति में कास्त्रो की कट्टरवादी सोच से आपत्ति थी इसके बावजूद उन्होंने इस नव विवाहित जोड़े के 'अमेरिकी हनीमून' के लिए अपनी ओर से खर्चा किया था.
  5. 50 के दशक में सत्ता के द्वारा अपने कॉमरेडों पर होने वाले अत्याचारों को देखकर फिदेल का मन प्रजातंत्र से उचट गया और उन्होंने हथियारबंद क्रांति का रास्ता अपनाया. इसी दशक में उन्होंने सत्ता पर काबिज़ बतिस्ता के खिलाफ जंग छेड़ी जिसमें वह विफल रहे और उन्होंने 15 साल की जेल हुई. इसी दौरान उन्होंने वह प्रसिद्ध भाषण दिया था जिसका शीर्षक था 'इतिहास मुझे क्षमा करेगा' जिसने क्यूबा की जनता पर अमिट छाप छोड़ी.
  6. 1956 में उन्होंने क्यूबा क्रांति का शंखनाद किया और तमाम उठापटक के बाद 1959 में उन्होंने क्यूबा के तानाशाह बटिस्टा का तख्तापलट कर दिया. इसके बाद कास्त्रो एक राष्ट्रीय हीरो के रूप में बनकर उभरे जिनका लोहा अभी भी क्यूबा में माना जाता रहा.
  7. कास्त्रो ने ऐसा दावा किया है कि अमेरिकी एजेंसी CIA ने 600 से ज्यादा बार उनकी हत्या करने की योजना बनाई लेकिन वह हर बार नाकाम रही. अमेरिका के खिलाफ अपनी मनमानी करने वाले इस सदी के सबसे ताकतवर नेता माने जाने वाले कास्त्रो ने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी. कास्त्रो ने सीआईए के इन हमलों के लिए एक बार यह भी कह दिया था कि 'अगर हमलों से बचने का कोई ओलिंपिक इवेंट होता तो मुझे उसमें गोल्ड मेडल मिलता.'
  8. अंग्रेज़ी अखबार गार्डियन में छपे एक पुराने लेख में कहा गया था कि CIA ने क्यूबा के इस तानाशाह को ठिकाने लगाने के लिए जो तरीके आज़माए उससे जेम्स बॉन्ड भी शर्मा जाए. फिर वह जहर की गोलियां हो, ज़हरीली सिगार हो (क्योंकि कास्त्रो को सिगार का शौक था) या फिर उन्हें एक ऐसा पाउडर देना जिससे उनकी दाढ़ी उखड़ जाए और दुनिया उनको पहचान ही न पाए.
  9. क्यूबा क्रांति को कास्त्रो ने गरीबों के हक़ की लड़ाई करार दिया था और इस दौरान उनके नेतृत्व में अमेरिका को भी लपेटे में लिया गया था. क्यूबा में अमेरिकी फैक्ट्रियों और प्लांटेशन पर कब्ज़ा कर लिया गया था. बाद में सोवियत यूनियन से क्यूबा ने हाथ मिलाया और अमेरिका द्वारा हमले के खतरे को भांपते हुए सोवियत ने क्यूबा में एक परमाणु मिसाइल बेस भी बनाया जिसका अमेरिका ने पुरज़ोर विरोध किया.
  10. हालांकि बाद में सोवियत यूनियन और अमेरिका ने आपसी समझौते करके इस बेस को हटा दिया लेकिन कास्त्रो को यह बातचीत रास नहीं आई. उन्होंने यहां तक कहा कि 'हमें समाचारों से पता चला कि सोवियत यूनियन हमारे देश से मिसाइल बेस हटा रहा है. और हमसे इस बारे में किसी तरह की कोई बातचीत भी नहीं की गई.'
  11. सोवियत यूनियन के ढह जाने के बाद क्यूबा की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचा. लेकिन फिदेल कास्त्रो ने तब भी अमेरिका से हाथ मिलाना मुनासिब नहीं समझा. उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को सीमित निजी एंटरप्राइज़ के लिए ही खोला जिसमें पर्यटन शामिल है. इसका असर आज भी क्यूबा में देखने को मिलता है जहां अन्य देशों के मुकाबले बाजारीकरण की झलक कम देखने को मिलती है.
  12. जहां तक अमेरिका और क्यूबा के मौजूदा रिश्तों की बात है तो 2015 में क्यूबा के राष्ट्रपति राउल ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से कूटनीतिक संबंधों को सामान्य करने के लिए मुलाकात की. दुनिया भर के देशों ने इस बेहद खास मुलाकात में दिलचस्पी दिखाई जिसे दो विपरीत विचारधाराओं की भेंट का क्षण समझा गया.
  13. अपने अंतिम दिनों में कास्त्रो अखबारों में कॉलम लिखा करते थे और देश और विदेश की नीतियों पर अपनी राय रखते थे. किसी के लिए कास्त्रो एक महान क्रांतिकारी थे जिन्हें दबे-कुचले वर्ग का मसीहा समझा जाता रहा, तो किसी के लिए वह एक तानाशाह है जिन्होंने क्यूबा के लोगों को अपनी मनमानी का शिकार बनाया.

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