जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन पर सवाल हमेशा उठते रहे. इसके बावजूद ये गठबंधन तीन साल से ज़्यादा समय तक चल गया. इन दोनों दलों ने कई मुश्किल मुकाम पार किए, लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी ने महबूबा को बताए बिना उससे नाता तोड़ लिया? बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में महबूबा मुफ़्ती का शपथ ग्रहण समारोह जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया मोड़ था. सरकार में शामिल बीजेपी ने इस गठजोड़ के सहारे अपने राजनीतिक विस्तार का नक्शा वहां तक पहुंचा दिया जहां इसकी कल्पना नहीं थी. लेकिन तीन साल बाद सरकार में शामिल बीजेपी को महबूबा से ढेर सारी शिकायतें रहीं. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अमन को लेकर बीजेपी और पीडीपी की राय शुरू से बंटी रही. वहीं कांग्रेस अब कह रही है कि इस गठबंधन ने राज्य को बर्बाद कर दिया है. लेकिन 2018 में ये रिश्ता तोड़ने के पीछे की राजनीति और भी है. जिस गठबंधन से बीजेपी ने 2014 में अपने दायरे का विस्तार किया, 2018 में वही उसे बोझ लगने लगा.
5 बातें
- महबूबा मुफ्ती की पीडीपी हमेशा से पकिस्तान के साथ संवाद की वकालत करती रही, वहीं बीजेपी ने आतंकवाद के साथ बातचीत न करने का हवाला दिया.
- पीडीपी ने कश्मीर में पत्थरबाज़ों के साथ नरमी बरतने की हामी रही, वहीं बीजेपी आतंकवाद के ख़िलाफ सख़्त कार्रवाई की वकालत करती रही है.
- कठुआ मामले में पीडीपी पीड़ितों के साथ खड़ी रही, जबकि बीजेपी के मंत्री आरोपियों के हक़ में निकले जुलूस में दिखे. इतना ही नहीं बीजेपी के मंत्रियों को इसके चलते इस्तीफा देना पड़ा.
- पीडीपी रमजान के महीने के बाद भी संघर्षविराम कायम रखने की वकालत करती रही, वहीं बीजेपी इसके ख़िलाफ़ रही हालांकि उसने रमजान के महीने में पीडीपी के संघर्षविराम की मांग को मानी थी.
- पीडीपी हमेशा पत्थरबाजों के समर्थक रही है इसलिए सेना ने जब पत्थरबाजों पर कार्रवाई की तो उन्होंने जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, वहीं बीजेपी हमेशा इसकी मुखालफत करती रही लेकिन गठबंधन की मजबूरियों के चलते उन्हें कई बार महबूबा मुफ्ती की बात माननी भी पड़ी.