विश्वास मत पर वोटिंग के बाद हरीश रावत ने सभी विधायकों को धन्यवाद दिया।
देहरादून:
हरीश रावत ने दावा किया है कि कांग्रेस ने मंगलवार को उत्तराखंड विधानसभा में विश्वास मत जीत लिया है। हालांकि इस बारे में आधिकारिक परिणाम सुप्रीम कोर्ट की ओर से बुधवार को घोषित किया जाएगा, जिसे आज के वोटिंग की सीलबंद कॉपी सौंपी गई है।
मामले से जुड़ी 10 खास बातें...
- हरीश रावत में एक तरह से 'विजयी भाषण' देते हुए कहा, 'मैं समर्थकों, सभी विधायकों, माननीय सुप्रीम कोर्ट और उत्तराखंड के लोगों को धन्यवाद देता हूं। अनिश्चितता के बादल कल छंट जाएंगे।'
- कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि रावत ने 33 विधायकों के समर्थन के साथ विश्वास मत जीत लिया है। यह आंकड़ा बहुमत के लिए जरूरी संख्या 31 से दो अधिक है। नौ बागी विधायकों को वोटिंग से अधिकार से वंचित किए जाने के बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 61 रह गई थी।
- रावत ने विश्वास मत जीता है, इसकी एक तरह से पुष्टि उस समय होती लगी जब बीजेपी के एक विधायक ने कहा, 'हम विपक्ष में बैठने को तैयार हैं।' सूत्र बताते हैं कि विश्वास मत में 28 विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में वोट दिया।
- बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मंगलवार सुबह कहा था कि उनके दो विधायक कांग्रेस का समर्थन करेंगे। (उत्तराखंड में दो घंटे का संवैधानिक संकट : बहुमत के बावजूद सरकार बनने में पेंच)
- जानकारी के अनुसार, कांग्रेस को तीन निर्दलीय और उत्तराखंड क्रांति दल के एक विधायक का भी समर्थन मिला।
- कांग्रेस विधायक रेखा आर्य मंगलवार सुबह बीजेपी के अजय भट्ट के साथ सदन में पहुंचीं। संकेत साफ था कि वे किसको समर्थन करने वाली हैं। दूसरी ओर, बीजेपी के बागी भीम लाल आर्य ने कहा कि वे हरीश रावत के पक्ष में वोट देंगे।
- विश्वास मत के लिए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को कुछ घंटों के लिए हटाया गया था। केवल विधायकों और सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त आब्जर्वरों को ही सदन में प्रवेश की इजाजत थी।
- उत्तराखंड में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से पहले हरीश रावत वहां मुख्यमंत्री थे।
- सात बागी कांग्रेस विधायकों को विश्वास मत के दौरान वोटिंग को हक नहीं होने संबंधी हाईकोर्ट के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बदलाव से इनकार कर दिया था। इन विधायकों को केंद्र की ओर से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के एक दिन पहले स्पीकर ने अयोग्य घोषित कर दिया था।
- उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने को विपक्ष की सरकार को हटाने का प्रयास करार दिया था। उसने इस फैसले के लिए केंद्र को आड़े हाथ लिया था। दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।