Arvind Kejriwal vs Delhi Lt Governor: सुप्रीम कोर्ट आज इस मामले में फैसला सुना सकता है...
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज (गुरुवार को) दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार और उपराज्यपाल (Delhi govt vs LG case) के बीच अधिकारों को लेकर छिड़ी लड़ाई के केस में फैसला सुना सकता है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी(AAP) की सरकार बनने के बाद से शासन व्यवस्था चलाने में उप राज्यपाल से अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal) का कहना है कि शासन व्यवस्था चलाने का अधिकार चुनी गई सरकार के पास होना चाहिए, मगर केंद्र से नियुक्त उप राज्यपाल( Lt Governor) अपनी मनमर्जी चलाते हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर पिछले साल जुलाई में फैसला दे चुका है. मगर उस फैसले में सरकार और उप राज्यपाल के बीच विशिष्ट अधिकार क्षेत्रों के बंटवारे को लेकर भ्रम की स्थिति रही. जिस पर सरकार ने फैसले को और अधिक स्पष्ट करने की मांग के साथ फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. फैसले की कुछ बातें स्पष्ट करने के लिए 10 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगीं हैं. इन याचिकाओं पर जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच फैसला सुनाएगी. दस याचिकाओं पर फैसला आएगा.
Delhi Govt vs L-G Case: 10 बड़ी बातें
- न्यायमूर्ति एके सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ऐसा निर्णय दे सकती है, जिससे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल के बीच अधिकार क्षेत्र पर लंबे समय से चल रही लड़ाई शांत हो सके.
- सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सेवाओं, अफसरों के ट्रांसफर- पोस्टिंग और एंटी करप्शन ब्यूरो, जांच कमीशन के गठन पर किसका अधिकार? एक नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.
- आम आदमी पार्टी की सरकार यह मानती है कि जनता की ओर से चुनी जाने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी के शासन में उसके अधिकार सीमित हैं. पिछले साल आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई थी.
- सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 के फैसले में कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. मगर उप राज्यपाल के पास भी स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें चुनी गई सरकार से परामर्श और सहयोग लेकर काम करना चाहिए
- शीर्ष अदालत ने कहा था कि उप राज्यपाल मंत्रिपरिषद के फैसले से भले न सहमत हों, मगर उनकीआपत्तियां बुनियादी मुद्दों पर होनी चाहिए और उसके पीछे तर्क होना चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2018 के फैसले ने अगस्त 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली की सभी शक्तियां केंद्र के पास हैं न कि राज्य सरकार के पास.
- सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि कन्फ्यूजन दूर करने के लिए फैसले की विशिष्ट क्षेत्र के लिहाज से व्याख्या करने से इन्कार कर दिया. अब काफी समय बाद फिर से पार्टी शीर्ष अदालत से फैसले को और अधिक स्पष्ट करने की मांग को लेकर पहुंची है.
- सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उप राज्यपाल (एलजी) के पास दिल्ली में सेवाओं को विनियमित करने की शक्ति है. राष्ट्रपति ने अपनी शक्तियों को दिल्ली के प्रशासक को सौंप दिया है और सेवाओं को उसके माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है. केंद्र ने यह भी कहा कि जब तक भारत के राष्ट्रपति स्पष्ट रूप से निर्देश नहीं देते तब तक एलजी, जो दिल्ली के प्रशासक हैं, मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद से परामर्श नहीं कर सकते.
- 19 सितंबर को केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि दिल्ली के प्रशासन को दिल्ली सरकार के पास अकेला नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि देश की राजधानी होने के नाते इसकी "असाधारण" स्थिति है.केंद्र ने अदालत से कहा था कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.
- केंद्र ने कहा था कि बुनियादी मुद्दों में से एक यह है कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) के पास सेवाओं' को लेकर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं या नहीं. दिल्ली सरकार ने पहले अदालत को बताया था कि उनके पास जांच का एक आयोग गठित करने की कार्यकारी शक्ति है.