
Chaitra navratri Durga Puja 2025 : चैत्र नवरात्रि 30 मार्च दिन रविवार से शुरू हो रही है, जिसका समापन 6 अप्रैल दिन रविवार को होगा. इस दौरान पूरे 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा अर्चनी की जाएगी. नवरात्रि पूजा में सुबह-शाम मां की आरती और पाठ किया जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं नवरात्रि (navratri puja vidhi) में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा विधि (maa durga puja vidhi, mantra, significance), मंत्र, आरती और महत्व...
साल 2025 में कब है चैत्र नवरात्रि , जानिए यहां डेट, मुहूर्त पूजा विधि और मंत्र
पहला दिन - मां शैलपुत्री
आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
मंत्र -या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी
रत्नयुक्त कल्याणकारिणी
मंत्र - ओम् ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी
आरती
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगान।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम।।
तीसरा दिन - मां चंद्रघंटा
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं। सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगदाता।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा। करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटूं महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी।।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।। पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
चौथा दिन - मां कूष्मांडा
आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचती हो मां अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मंत्र - मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
पांचवां दिन - मां स्कंदमाता आरतीजय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।
सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।
कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।
भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।
दासो को सदा बचाने आई। ‘चमन' की आस पुजाने आई।।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पांचवां दिन - मां कात्यायनी
आरती
जय कात्यायनि मां, मैया जय कात्यायनि मां।
उपमा रहित भवानी, दूं किसकी उपमा॥
मैया जय कात्यायनि, गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हां।
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हां॥
मैया जय कात्यायनि, कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी।
शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी॥
मैया जय कात्यायनि, त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुंचे, अच्युत गृह।
महिषासुर बध हेतु, सुर कीन्हौं आग्रह॥
मैया जय कात्यायनि, सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित।
जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित॥
मैया जय कात्यायनि, अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि,
पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि॥
मैया जय कात्यायनि, अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा।।
मंत्र - ॐ क्लीं कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नंद गोप सुतं देवि पतिं में कुरुते नमः क्लीं ॐ
सातवां दिन - मां कालरात्रि
आरतीकालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
टदुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि मां तेरी जय॥
मंत्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:
आठवां दिन - महागौरी
आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहा निवास॥
चंदेर्काली और ममता अम्बे
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता
कोशकी देवी जग विखियाता॥
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती 'सत' हवं कुंड मै था जलाया
उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी मां ने महागौरी नाम पाया
शरण आने वाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
'चमन' बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥
मंत्र - श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नौवां दिन - मां सिद्धिदात्री
आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः'.
नवरात्रि पूजा विधि
नवरात्रि के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करिए. इसके बाद पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़क लीजिए. अब आप घर के मंदिर दीपक जलाएं. फिर मां की प्रतिमा पर आप अक्षत, सिंदूर और लाल पुष्प अर्पित करें. इसके बाद दुर्गा आरती करें और अंत में मां को भोग लगाकर प्रसाद सबको वितरित कर दीजिए.
नवरात्रि महत्व
चैत्र नवरात्रि में सच्चे मन से पूजा अर्चना और विधि-विधान से मंत्र और आरती करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है. साथ ही मान्यता है सच्चे मन से पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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