
Sandhya Vandan: हिंदू धर्म में संध्या वंदन (Sandhya Vandan) को खास महत्व दिया गया है. मान्यता है कि संध्या वंदन की परंपरा (Tradition of Sandhya Vandan) अत्यंत प्रचीन है. संध्या वंदन संधि काल (Sandhi Kaal) यानि सूर्यास्त के बाद और रात होने से पहले किया जाता है. जिस तरह सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले से लेकर सूर्य उदय तक के काल को ब्रह्म मुहूर्त (Brahma Muhurta) कहा जाता है, उसी तरह सूर्यास्त से आगे डेढ़ घंटे तक की अवधि को संधि काल कहा जाता है. मान्यतानुसार संध्या वंदन संधि काल के दौरान किया जाता है. आइए जानते हैं कि संध्या वंदन पूजा-अर्चना से बढ़कर क्यों माना जाता है और इसके पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है.
क्या होता है संध्या वंदन | What is Sandhya Vandan
धार्मिक मान्यता के अनुसार, संघ्या वंदन के दौरान गायत्री छंद और विशेष मंत्रों से आचमन और पूजन किया जाता है. साथ ही संध्या वंदन के दौरान निराकार ईश्वर की उपासना की जाती है. वैसे तो आधुनिक युग में भक्त पूजा-पाठ, आरती, यज्ञ और हवन इत्यादि को महत्व देते हैं, लेकिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक संध्य वंदन दौनिक पूजा का एक अहम हिस्सा है.
पूजा-अर्चना से ज्यादा जरूरी क्यों है संध्या वंदन | Why Sandhya Vandana is more important than worship
अलग-अलग धर्मों में ईश्वर की उपासना के अलग-अलग तरीके बताए गए हैं. हिंदू धर्म में भी ईश्वर की उपासना के लिए संध्या वंदन को आनिवार्य माना गया है. माना जाता है कि संध्या वंदन करने से रोग और शोक मिट जाते हैं. साथ ही मन निर्मल और हृदय पवित्र रहता है. इसके अलावा मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. यही कारण है कि हिंदू धर्म में संध्या वंदन को खास महत्व दिया जाता है.
संधि काल में नहीं किए जाते हैं ये काम | These works are not done during Sandhi Kaal
माना जाता है कि संधि काल में निगेटिव एनर्जी अधिक सक्रिय हो जाती हैं. ऐसे में संधि काल के दौरान भोजन, शयन, शौच, क्रोध, शारीरिक संबंध, आर्थिक लेनदेन, चौखट पर खड़े होना और यात्रा करना आदि कार्य निषेध माने गए हैं. इसलिए संधि काल में इन कार्यों को करने से बचने के लिए कहा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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