विवाह पंचमी (Vivah Panchami) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में इसी दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह (Ram Vivah) संपन्न हुआ था. इस उत्सव को खासतौर से नेपाल और मिथिालांचल में मनाया जाता है. इस दौरान घरों और मंदिरों में उत्सव मनाया जाता है और राम व सीता का पारंपरिक रूप से गठबंधन किया जाता है. इस दिन रामायण के बाल कांड का पाठ करने की भी परंपरा है.
विवाह पंचमी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार विवाह पंचमी मार्गशीर्ष के महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन मनाई जाती है. इस बार विवाह पंचमी 1 दिसंबर 2019 को है.
विवाह पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
विवाह पंचमी की तिथि: 1 दिसंबर 2019
पंचमी तिथि प्रारंभ: 30 नवंबर 2019 को शाम 6 बजकर 5 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त: 1 दिसंबर 2019 को शाम 7 बजकर 13 मिनट तक
विवाह पंचमी की पूजा विधि
विवाह पंचमी के दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह संपन्न कराया जाता है. इस तरह कराएं राम-सीता विवाह:
- विवाह पंचमी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- इसके बाद राम विवाह का संकल्प लें.
- अब घर के मंदिर में भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें.
- अब भगवान राम को पीले व मां सीता को लाल वस्त्र पहनाएं.
- अब रामायण के बाल कांड का पाठ करते हुए विवाह प्रसंग का पाठ करें.
- इसके बाद ॐ जानकीवल्लभाय नमः का जाप करें.
- फिर भगवान राम और मां सीता का गठबंधन करें.
- अब राम-सीता की जोड़ी की आरती उतारें.
- अब भगवान को भोग लगाएं और पूरे घर में प्रसाद बांटकर आप भी ग्रहण करें.
विवाह पंचमी के दिन नहीं होते विवाह
हिन्दू धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है. लेकिन इस दिन कई जगह विवाह नहीं किए जाते हैं. खासकर मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह नहीं करने की परंपरा है. दरअसल, सीता का वैवाहिक जीवन दुखद रहा था इसी वजह से लोग विवाह पंचमी के दिन विवाह करना उचित नहीं मानते. मान्यता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद भी राम ने गर्भवती सीता को त्याग कर दिया था और उन्हें महारानी का सुख नहीं मिल पाया. इसलिए विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं. लोगों का मानना है कि कि विवाह पंचमी के दिन विवाह करने से कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन भी दुखमयी न हो जाए. यही नहीं विवाह पंचमी के दिन रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है. दरअसल, दोनों के जीवन के आगे की कथा दुख और कष्ट से भरी है और इस शुभ अंत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है
विवाह पंचमी की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सीता माता का जन्म धरती से हुआ था. कहा जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्हें एक बच्ची मिली और उसे वे अपने महल में लाए व पुत्री की तरह पालने लगे. उन्होंने उस बच्ची का नाम सीता रखा. लोग उन्हें जनक पुत्री सीता या जानकी कहकर पुकारते थे. मान्यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था. उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा. फिर कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा गया. स्वयंमर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया. उस स्वयंवर में महर्षि वशिष्ठ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे.
स्वयंवर शुरू हुआ और एक-एक कर सभी राजा, धुरंधर और राजकुमार आए लेकिन उनमें से कोई भी शिव के धनष को उठाना तो दूर उसे हिला भी नहीं सका. यह देखकर राजा जनक बेहद दुखी हो गए और कहने लगे कि क्या मेरी पुत्री के लिए कोई भी योग्य वर नहीं है. तभी महर्षि वशिष्ठ ने राम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा. राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया. इसी के साथ राम स्वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी. मान्यता है कि सीता ने जैसे ही राम के गले में वर माला डाली तीनों लोक खुशी से झूम उठे. यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन किया जाता है.
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