विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) का विशेष महत्व है. उनके जन्मदिवस को विश्वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. विश्वकर्मा को देवशिल्पी यानी कि देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था. विश्वकर्मा पूजा के मौके पर ज्यादातर दफ्तरों में छुट्टी होती है और कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इस दौरान औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा करने का विधान है. अपनी शिल्प कला के लिए मशहूर भगवान विश्वकर्मा सभी देवताओं में आदरणीय हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्म पुत्र हैं. विश्वकर्मा दिवस घरों के अलावा दफ्तरों और कारखानों में विशेष रूप से मनाया जाता है. जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए वे खास तौर से इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं.
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विश्वकर्मा पूजा कब है
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भादो माह में हुआ था. हर साल 17 सितंबर को उनके जन्मदिवस को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है.
कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?
भगवान विश्वकर्मा को निर्माण का देवता माना जाता है. मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए अनेकों भव्य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया. मान्यता है कि एक बार असुरों से परेशान देवताओं की गुहार पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया. यह वज्र इतना प्रभावशाली था कि असुरों का सर्वनाश हो गया. यही वजह है कि सभी देवताओं में भगवान विश्वकर्मा का विशेष स्थान है. विश्वकर्मा ने एक से बढ़कर एक भवन बनाए. मान्यता है कि उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया. माना जाता है कि उन्होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था. इसके अलावा उन्होंने कई बेजोड़ हथियार बनाए जिनमें भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड शामिल हैं. यही नहीं उन्होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्पक विमान भी बनाया. माना जाता है कि रावण के अंत के बाद राम, लक्ष्मण सीता और अन्य साथी इसी पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या लौटे थे.
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के नाम से जाना जाता है. इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था. भगवान विश्वकर्मा को 'देवताओं का शिल्पकार', 'वास्तुशास्त्र का देवता', 'प्रथम इंजीनियर', 'देवताओं का इंजीनियर' और 'मशीन का देवता' कहा जाता है. विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को 'देव बढ़ई' कहा गया है. यही वजह है कि हिन्दू समाज में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है. हो भी क्यों न? अगर मनुष्य को शिल्प ज्ञान न हो तो वह निर्माण कार्य नहीं कर पाएगा. निर्माण नहीं होगा तो भवन और इमारतें नहीं बनेंगी, जिससे मानव सभ्यता का विकास रुक जाएगा. मशीनें और औज़ार न हो तो दुनिया तरक्की नहीं कर पाएगी. कहने का मतलब है कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए शिल्प ज्ञान का होना बेहद जरूरी है. अगर शिल्प ज्ञान जरूरी है तो शिल्प के देवता विश्वकर्मा की पूजा का महत्व भी बढ़ जाता है. मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है.
कैसे मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती?
इस दिन मशीनों, दफ्तरों और कारखानों की सफाई की जाती है. साथ ही विश्वकर्मा की मूर्तियों को सजाया जाता है. घरों में लोग अपनी गाड़ियों, कंम्प्यूटर, लैपटॉप व अन्य मशीनों की पूजा करते हैं. मंदिर में विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति या फोटो की विधिवत पूजा करने के बाद आरती की जाती है. अंत में प्रसाद वितरण किया जाता है.
विश्वकर्मा पूजा विधि
- सबसे पहले स्नान करने के बाद अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें.
- उसके बाद स्नान करें.
- घर के मंदिर में बैठकर विष्णु जी का ध्यान करें और पुष्प चढाएं.
- एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्प डालें.
- अब भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें.
- अब जमीन पर आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाएं.
- अब उस स्थान पर सात प्रकार के अनाज रखें.
- अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें.
- अब चावल पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्यान करें.
- अब सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें.
- अब भगवान विश्वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें.
- अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती उतारें.
विश्वकर्मा की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
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