
- वट सावित्री व्रत में सत्वान और सावित्री की कथा सुनाई जाती है.
- पुराणों में भी ज्येष्ठ मास की अमावस्या को विशेष माना गया है.
- वट सावित्री में शिव, मां पार्वती, विष्णु जी और वट वृक्ष की पूजा होती है.
Vat savitri pooja tips: आज सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन की सुख शांति के लिए वट सावित्री का उपवास रखेंगी. आज सोलह सिंगार करके महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे एकत्रित होंगी और पूरे विधि-विधान (vat savitri poja niyam) के साथ सुहाग की सामग्री के साथ वट वृक्ष (vat tree) की परिक्रमा करते हुए पूजा को संपन्न करेंगी. ऐसे में चलिए जान लेते हैं हिंदू धर्म में खास महत्व रखने वाले इस उपवास की शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व.
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि आज यानी 19 मई की रात 9 बजकर 22 मिनट तक रहेगी. ऐसे में इस व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त आज पूरे दिन रहेगा.
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वट सावित्री पूजा महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक वट सावित्री व्रत के दिन स्नान और दान करना बहुत फलदायी होता है. वहीं, वट सावित्री व्रत के दिन भगवान शिव, मां पार्वती, विष्णु जी और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा है. यही कारण है कि पुराणों में भी ज्येष्ठ मास की अमावस्या को विशेष माना गया है. मान्यतानुसार, वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सत्वान और सावित्री की कथा अवश्य सुनती हैं. कहा जाता है कि इस कथा का वर्णन महाभारत के साथ अन्य कई पौराणिक ग्रंथों में किया गया है.
वट सावित्री पूजा कथा
वट सावित्री व्रत कथा के मुताबिक प्रतीन काल में किसी स्थान पर अश्वपति नाम के राजा का राज्य था. राजा को कोई संतान नहीं था. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक यज्ञ, हवन और दान-पुण्य आदि कर्म किए. जिसके बाद उन्हें सावित्री देवी (Savitri Devi) के आशीर्वाद से तेजस्वी कन्या का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा. सावित्री जब विवाह योग्य हो गई तो राजा में कन्यादान करने का विचार किया. राजा ने अपनी कन्या के लिए सुयोग्य वर खोजने का भार राजकुमारी को सौंपा दिया. कहते हैं कि राजकुमारी सावित्री (Rajkumari Savitri) एक दिन जंगल जाते वक्त एक सुंदर युवक को देखा और उसे अपना पति मान लिया. उस युवक का नाम सत्यवान था. जो कि राजा द्युमत्सेन का पित्र था. सत्यवान के राज्य को दुश्मनों ने छीन लिया, जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा था.

नारद जी को जब सावित्री के विवाह का पता चला तो वे राजा अश्वपति के घर पहुंचे. नारद जी ने राजा से कहा कि सावित्री ने अपने पति के रूप में जिस युवक को स्वीकार किया है, वह गुणी, बलवान और पवित्र है. लेकिन उसकी उम्र कम है. उसकी मृत्यु बहुत जल्द हो जाएगी. महर्षि नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति अपनी पुत्री के भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगे. उन्होंने राजकुमारी से कहा कि कोई दूसरा वर खोजे ले, क्योंकि सत्यवान की उम्र बहुत कम है.

राजकुमारी ने जब इसका कारण पूछा तो राजा ने अपनी बेटी को नारदजी द्वारा बताई गई पूरी बात बताई. तब सावित्री ने कहा- "आर्यन लड़कियां अपना पति सिर्फ एक बार चुनती हैं." सावित्री के कहने पर राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया. जिसके बाद सावित्री ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में लग गई. इस तरह समय बीतता गया. नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में पहले ही बता दिया था. रोज की तरह सत्यवान भी लकड़ियां काटने वन में गया और सावित्री भी उसके साथ चली गई. सत्यवान (Satyavaan) लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ने लगा, जैसे ही उसके सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया.

उसी समय सावित्री ने यमराज (Yamraj) को आते देखा. यमराज ने सत्यवान के प्राण को लेकर अपने साथ ले जाने लगे. सावित्री ने भी उसका पीछा किया. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यह कानून का नियम है, लेकिन सावित्री नहीं मानी. यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सावित्री की जिद नहीं छोड़ी. आखिरकार यमराज को सत्यवान के प्राण भी वापस करने पड़े.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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