नासिक:
महाराष्ट्र की धार्मिक नगरी नासिक से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है चंदोरी नामक एक गांव। यह गांव गोदावरी नदी के किनारे बसा है। अभी यहां गोदावरी नदी की धारा सूख गयी है।
इस कारण नदी की सूखी धारा में कई मंदिर उभर कर सामने आए हैं। यहां के ग्रामीणों की भाषा में बोलें तो "यहां मंदिर उग आए हैं"।
सन '82 में भी दिखे थे मंदिर
और, ये कोई एक-दो नहीं है, बल्कि ये मंदिर समूह में हैं और देखने में काफी भव्य हैं। इन्हें देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि इसे योग्य शिल्पकारों ने बड़े जतन से बनाया होगा और खर्च भी काफी हुआ होगा।
वास्तव में अभी सूखे की मार झेल रही गोदावरी के सूख जाने से ये पुराने मंदिर 34 साल के बाद दुबारा सतह पर आए हैं। इससे पहले गांववालों ने सन 1982 में इन मंदिरों को देखा था। ग्रामीणों के अनुसार, उस समय भी नासिक में ऐसा ही भयंकर सूखा पड़ा था।
अधिकांश मंदिर हैं शिवालय
फिलहाल गोदावरी नदी का यह घाट और ये मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. लोग यहां मंदिरों का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं|
केवल यही नहीं, इन मंदिरों में अब विधिवत पूजा और आरती भी शुरू हो गई है। उल्लेखनीय है कि इन मंदिरों में अधिकांश मंदिर भगवान शिव के हैं।
ASI को नहीं है इन मंदिरों की जानकारी
कहा जाता है कि गोदावरी के ये घाट और मंदिर पेशवाओं के मंत्री सरदार हिंगणे और विंचुरकरजी ने तब बनवाया था, जब चंदोरी उनके क्षेत्राधिकार में था। भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India - ASI) को इन मंदिरों की कोई जानकारी या प्रमाण नहीं है।
लेकिन अंग्रेजी शासनकाल के नासिक गजेटियर में गोदावरी नदी के इन घाटों और यहां किए गए निर्माण कार्यों का जिक्र मिलता है। गजेटियर में उल्लेख मिलता है कि सन 1907 में नंदूर मध्यमेश्वर बांध बनने के बाद ये घाट और मंदिर नदी में डूब गए थे।
इस कारण नदी की सूखी धारा में कई मंदिर उभर कर सामने आए हैं। यहां के ग्रामीणों की भाषा में बोलें तो "यहां मंदिर उग आए हैं"।
सन '82 में भी दिखे थे मंदिर
और, ये कोई एक-दो नहीं है, बल्कि ये मंदिर समूह में हैं और देखने में काफी भव्य हैं। इन्हें देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि इसे योग्य शिल्पकारों ने बड़े जतन से बनाया होगा और खर्च भी काफी हुआ होगा।
वास्तव में अभी सूखे की मार झेल रही गोदावरी के सूख जाने से ये पुराने मंदिर 34 साल के बाद दुबारा सतह पर आए हैं। इससे पहले गांववालों ने सन 1982 में इन मंदिरों को देखा था। ग्रामीणों के अनुसार, उस समय भी नासिक में ऐसा ही भयंकर सूखा पड़ा था।
अधिकांश मंदिर हैं शिवालय
फिलहाल गोदावरी नदी का यह घाट और ये मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. लोग यहां मंदिरों का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं|
केवल यही नहीं, इन मंदिरों में अब विधिवत पूजा और आरती भी शुरू हो गई है। उल्लेखनीय है कि इन मंदिरों में अधिकांश मंदिर भगवान शिव के हैं।
ASI को नहीं है इन मंदिरों की जानकारी
कहा जाता है कि गोदावरी के ये घाट और मंदिर पेशवाओं के मंत्री सरदार हिंगणे और विंचुरकरजी ने तब बनवाया था, जब चंदोरी उनके क्षेत्राधिकार में था। भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India - ASI) को इन मंदिरों की कोई जानकारी या प्रमाण नहीं है।
लेकिन अंग्रेजी शासनकाल के नासिक गजेटियर में गोदावरी नदी के इन घाटों और यहां किए गए निर्माण कार्यों का जिक्र मिलता है। गजेटियर में उल्लेख मिलता है कि सन 1907 में नंदूर मध्यमेश्वर बांध बनने के बाद ये घाट और मंदिर नदी में डूब गए थे।
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