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This Article is From Feb 23, 2022

Shabari Jayanti 2022: राम ने यहां खाए थे शबरी के दिए जूठे बेर, चलिए जानें कहां है वह जगह

Shabari Jayanti के दिन भगवान श्री राम के साथ-साथ माता शबरी की भी पूजा-उपासना की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भगवान श्री राम की माता शबरी से मुलाकात हुई थी.

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Shabari Jayanti 2022: कब है शबरी जयंती, जानें पूजा विधि और महत्व
नई दिल्ली:

Shabari Jayanti: हर वर्ष फाल्गुन माह (Falgun Month 2022) में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती (Shabari Jayanti 2022) मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्री राम के साथ-साथ माता शबरी की भी पूजा-उपासना की जाती है. साल 2022 में शबरी जयंती 23 फरवरी यानी आज के दिन मनाई जा रही है. यह दिन भगवान राम (Lord Rama) की अनन्य भक्त माता शबरी को समर्पित है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भगवान श्री राम की माता शबरी से मुलाकात हुई थी. माना जाता है कि जिस स्थान पर शबरी ने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे वह वर्तमान में गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर दूर है. यह स्थान सापुतरा से 60 किलोमीटर दूर सुबीर गांव में है. 

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कहते हैं कि इसी दिन माता शबरी ने अपने आश्रम में भगवान श्रीराम के स्वागत सत्कार में उन्हें अपने जूठे बेर खिलाए थे. आइए जानते हैं कौन थीं माता शबरी और क्या है इस दिन का महत्व व पूजा की विधि.

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कौन थीं शबरी माता

माता शबरी का नाम श्रमणा था. श्रमणा का जन्म शबरी परिवार में हुआ था और बाल्यकाल से ही श्रमणा भगवान श्री राम की भक्त थीं. ऐसी किदवंती है कि जब शबरी जी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता और भीलों के राजा ने शबरी का विवाह भील कुमार से तय कर दिया. उस समय विवाह के समय जानवरों की बलि देने की प्रथा दी, जिसका माता शबरी ने पुरजोर विरोध किया. जानवरों की बलि प्रथा को खत्म करने के लिए उन्होंने शादी ही नहीं की. इसके अलावा एक कथा और है, जिसके मुताबिक, पति के अत्याचार से कुंठित होकर श्रमणा घर त्यागकर वन चली जाती हैं. वन में श्रमणा ने भगवान श्री राम का विधि-विधान से पूजन, जप और तप किया. कालांतर में वनवास के दौरान भगवान श्री राम और माता शबरी की मुलाकात हुई.

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शबरी जयंती का महत्व

हिन्दू धर्म में शबरी जयंती का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान श्री राम के साथ-साथ माता शबरी की भी पूजा की जाती है. यह पर्व आस्था, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही माता शबरी को उनकी भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष मिला था. बता दें कि हिन्दू धर्म में शबरी जयंती के पर्व को भक्ति और मोक्ष का प्रतीक मानकर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.

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शास्त्रों के अनुसार, माता शबरी ने प्रभु श्री राम को अपने जूठे बेर खिलाए थे. कहते हैं कि माता शबरी नहीं चाहती थी कि भगवान श्री राम को कोई भी खट्टा बेर खाने को मिले. कहा जाता है कि यही वजह थी कि भगवान श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाकर उनकी भक्ति को पूर्ण कर दिया. यह कथा रामायण, रामचरित मानस, सुरसागर ग्रंथों में वर्णित है. कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्री राम की असीम कृपा पाकर माता शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. बता दें कि शबरी जयंती के दिन रामायण आदि ग्रंथों का पाठ किया जाता है और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

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शबरी जयंती व्रत की पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम भगवान श्री राम और माता शबरी को स्मरण कर नमस्कार करें.

इसके बाद घर की साफ-सफाई कर दैनिक कार्यों से निवृत हो जाए

अब गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर साफ वस्त्र धारण करें.

आमचन कर अपने आप को पवित्र कर व्रत संकल्प लें.

भगवान श्रीराम और माता शबरी की पूजा फल, फूल, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, धूप, दीप, अगरबत्ती आदि से करें.

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धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि शबरी माता और भगवान श्रीराम को प्रसाद में बेर अवश्य भेंट करें.

पूजा के आखिर में आरती करने के बाद अपने परिवार के कुशल मंगल की कामना करें.

संभव हो तो दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करें.

अगले दिन आप नित्य दिन की भांति पूजा-पाठ के पश्चात व्रत खोलें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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