Saphala Ekadashi Vrat Puja Vidhi Aur Niyam: पंचांग के अनुसार आज पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी है, जिसे सनातन परंपरा में सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार सफला एकादशी का व्रत जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, जिनकी कृपा बरसने पर साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके सारे सोचे हुए काम सफल होते हैं. श्री हरि की कृपा पाने के लिए आज इस व्रत को कैसे करना चाहिए और क्या हैं इस व्रत की पावन कथा और नियम, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
सफला एकादशी व्रत की विधि
हिंदू मान्यता के अनुसार सफला एकादशी व्रत को सफल बनाने और श्री हरि का आशीर्वाद पाने के लिए साधक को सूर्योदय से पहले उठकर सबसे पहले तन और मन से पवित्र होना चाहिए. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद सबसे पहले इस पावन व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद उगते हुए सूर्य नारायण को जल देना चाहिए. इसके बाद अपने पूजा घर या फिर ईशान कोण में चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर श्री हरि का चित्र या मूर्ति रखकर उनकी विधि-विधान से पूजा करना चाहिए.

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पहले दीपक जलाएं. इसके बाद पुष्प, चंदन, फल, मिष्ठान, धूप, दीप आदि अर्पित करने के बाद सफला एकादशी व्रत की कथा कहनी चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्र का तुलसी की माला से जप करना चाहिए. फिर पूजा के अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करने के बाद अधिक से अधिक लोगों को प्रसाद बांटना चाहिए. सफला एकादशी व्रत का पूरा पुण्यफल पाने के लिए अगले दिन शुभ मुहूर्त में पारण अवश्य करना चाहिए.
सफला एकादशी व्रत के नियम
- भगवान विष्णु की कृपा बरसाने वाले सफला एकादशी व्रत में साधक को नियम-संयम का पालन करते हुए सात्विक चीजों का सेवन करना चाहिए और तामसिक चीजों से दूरी बनाए रखना चाहिए.
- सफला एकादशी व्रत वाले दिन व्यक्ति को फलाहार करना चाहिए और अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए.
- एकादशी व्रत में भूलकर भी चावल का सेवन न करें और व्रत के दूसरे दिन शुभ मुहूर्त में ही पारण करें.
- सफला एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को क्रोध, ईर्ष्या, आलोचना और वाद-विवाद नहीं करना चाहिए.

सफला एकादशी व्रत कथा
एक समय चंपावती राज्य में राजा महिष्मान राज करता था. राजा महिष्मान के 4 पुत्र थे, जिनमें उनका सबसे बड़ा पुत्र लुंपक बेहद दुष्ट और दुराचारी था. वह अक्सर संतों, सीधे-साधे लोगों और देवी-देवताओं का अपमान करता था. राजा महिष्मान अपने बेटे के इस व्यवहार से काफी चिंतित रहा करते थे. एक दिन राजा ने क्रोध में आकर लुंपक को राज्य से बाहर कर दिया. महल से बाहर निकलने के बाद लुपंक एक पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा और चोरी करके अपना पेट पालने लगा.
एक बार सर्दी के समय पौष कृष्ण की दशमी तिथि को जब वह पीपल के पेड़ के नीचे सोया हुआ था उसे कम कपड़ों की वजह से ठंड लगी और उसका शरीर अकड़ गया. अगली सुबह जब सूर्यदेव निकले तो उनकी धूप से उसकी नींद टूटी और वह भोजन की तलाश में जंगल की ओर निकल गया, लेकिन कमजोर और भूखा लुंपक कोई शिकार नहीं कर पाया और वापस लौटते समय उसने कुछ फल तोड़े और पीपल के पेड़ के नीचे आकर लेट गया. रात भर वह अपने कर्मों का पश्चाताप करता रहा. उसने तोड़े हुए फल एक तरफ रखकर भगवान को याद करते हुए कहा ये फल भगवन तुम्ही खाओ.

भूख के मारे लुंपक को सारी रात नींद नहीं आई और अगले दिन जाकर उसे कहीं से अन्न प्राप्त हुआ. इस तरह अनजाने में लुंपक ने श्री हरि के सफला एकादशी व्रत को पूरा कर लिया जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसके सारे पाप और शोक हर लिए और आकाशवाणी के जरिए उसे वापस अपने पिता के पास जाने को कहा. इसके बाद लुंपक ने जब राजमहल पहुंचकर पूरी कहानी बताई तो राजान ने उसे माफ करके उसे राजपाट सौंप दिया. इसके बाद लुंपक ने श्री हरि का आजीवन व्रत किया और सुखी पारिवारिक जीवन जीते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त किया. इस तरह जो भी साधक सफला एकादशी का व्रत विधि-विधान से करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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