सैन जी महाराज मध्यकाल के महान संत थे
नई दिल्ली:
आज सेन जंयती है. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सैन जयंती के अवसर पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं. राजे ने अपने संदेश में कहा कि सैन समाज के आराध्य श्री सैन जी महाराज का जीवन उदारता और सादगी की शिक्षा देने वाला है. उन्होंने कहा कि हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए.
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मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री सैन जी महाराज के उद्देश्यों को लोगों तक पहुंचाने के लिए पुष्कर में श्री सैन महाराज की चित्रमाला बनाई जा रही है. इस चित्रमाला से युवाओं और आने वाली पीढ़ियों को उनके व्यक्तित्व एवं उनकी शिक्षाओं को जानने का मौका मिलेगा.
कौन थे सैन महाराज?
भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार प्रियदास के अनुसार सैन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख कृष्ण द्वादशी को बांधवगढ़ में हुआ था. बचपन में इनका नाम नंदा था. वे जाति से नाई थे. आगे चलकर ये सैन महाराज के नाम से मशहूर हुए. सैन महाराज ने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलकर समाज को दिखा दिया कि संसार के सारे कामों को करते हुए भी प्रभु की सेवा की जा सकती है.
मध्यकाल के संतों में सेन महाराज का नाम अग्रणी है. उन्होंने पवित्रता और सात्विकता पर ज़ोर दिया. उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया. वे सभी मनुष्यों में ईश्वर के दर्शन करते थे. लोग उनके उपदेशों से इतने प्रभावित होते थे कि दूर-दूर से उनके पास खींचे चले आते थे. वृद्धावस्था में सेन महाराज काशी चले गए और वहीं उपदेश देने लगे. काशी में वे जिस जगह पर रहते थे उसे आज सेनपुरा के नाम से जाना जाता है.
जब भगवान ने धरा सैन जी का रूप
सैन महाराज को लेकर एक कथा प्रचलित है. मान्यता है कि वे एक राजा के पास काम करते थे. उनका काम राजा की मालिश करना, बाल और नाखून काटना था. उन दिनों भक्त मंडलियों का जोर था. ये मंडलियां जगह-जगह जाकर पूरी रात भजन कीर्तन करती रहती थीं. एक दिन संत मंडली सैन जी के घर आई. सैन जी ईश्वर भक्ति में इस तरह लीन हो गएए कि सुबह राजा के पास जाना ही भूल गए. कहा जाता है कि स्वयं ईश्वर सैन जी का रूप धारण करके राजा के पास पहुंच गए.
मनीष शर्मा की नज़र से : 'बा बा ब्लैक शीप...'
भगवान ने राजा की सेवा इतनी श्रद्धा के साथ की कि राजा प्रसन्न हो गया और उसने अपने गले का हार उनके गले में डाल दिया. अपनी माया शक्ति से भगवान ने वो हार सैन जी के गले में डाल दिया और उन्हें पता तक नहीं चला. बाद में जब सैन जी को होश आया तो वो डरते-डरते महल में गए. उन्हें लग रहा था कि समय पर न पहुंचने की वजह से राजा उन्हें बहुत डांटेगा. सैन जी को देखकर राजा ने कहा, 'अब आप फिर क्यों आए हैं? हम आपकी सेवा से बहुत खुश हुए. क्या कुछ और चाहिए?'
राजा की बात सुनकर सैन जी बोले, 'मुझे क्षमा कर दीजिए. पूरी रात कीर्तन होता रहा इसलिए मैं समय से नहीं आ सका.' इस बात को सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई. राजा ने कहा, 'अरे आप तो आए थे. आपकी सेवा से प्रसन्न होकर मैंने आपको हार दिया था और वो अभी आपके गले में भी है.'
सैन हार देखकर चौंक गए. उन्हें एहसास हो गया कि भगवान उनका रूप धारण करके आए थे. उन्होंने राजा से कहा, 'महाराज, यह सच है कि मैं नहीं आया था. मेरी जगह भगवान आए थे. आपने ये माला भगवान को दी थी और उन्होंने उसे मेरे गले में डाल दिया.'
सैन जी की बातें सुनकर राजा उनके चरणों में नतमस्तक हो गया और कहने लगा कि अब आप को कुछ करने की जरूरत नहीं है. अब आप सिर्फ भगवत् भक्ति में लीन रहिए.
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मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री सैन जी महाराज के उद्देश्यों को लोगों तक पहुंचाने के लिए पुष्कर में श्री सैन महाराज की चित्रमाला बनाई जा रही है. इस चित्रमाला से युवाओं और आने वाली पीढ़ियों को उनके व्यक्तित्व एवं उनकी शिक्षाओं को जानने का मौका मिलेगा.
कौन थे सैन महाराज?
भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार प्रियदास के अनुसार सैन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख कृष्ण द्वादशी को बांधवगढ़ में हुआ था. बचपन में इनका नाम नंदा था. वे जाति से नाई थे. आगे चलकर ये सैन महाराज के नाम से मशहूर हुए. सैन महाराज ने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलकर समाज को दिखा दिया कि संसार के सारे कामों को करते हुए भी प्रभु की सेवा की जा सकती है.
मध्यकाल के संतों में सेन महाराज का नाम अग्रणी है. उन्होंने पवित्रता और सात्विकता पर ज़ोर दिया. उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया. वे सभी मनुष्यों में ईश्वर के दर्शन करते थे. लोग उनके उपदेशों से इतने प्रभावित होते थे कि दूर-दूर से उनके पास खींचे चले आते थे. वृद्धावस्था में सेन महाराज काशी चले गए और वहीं उपदेश देने लगे. काशी में वे जिस जगह पर रहते थे उसे आज सेनपुरा के नाम से जाना जाता है.
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सैन महाराज को लेकर एक कथा प्रचलित है. मान्यता है कि वे एक राजा के पास काम करते थे. उनका काम राजा की मालिश करना, बाल और नाखून काटना था. उन दिनों भक्त मंडलियों का जोर था. ये मंडलियां जगह-जगह जाकर पूरी रात भजन कीर्तन करती रहती थीं. एक दिन संत मंडली सैन जी के घर आई. सैन जी ईश्वर भक्ति में इस तरह लीन हो गएए कि सुबह राजा के पास जाना ही भूल गए. कहा जाता है कि स्वयं ईश्वर सैन जी का रूप धारण करके राजा के पास पहुंच गए.
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भगवान ने राजा की सेवा इतनी श्रद्धा के साथ की कि राजा प्रसन्न हो गया और उसने अपने गले का हार उनके गले में डाल दिया. अपनी माया शक्ति से भगवान ने वो हार सैन जी के गले में डाल दिया और उन्हें पता तक नहीं चला. बाद में जब सैन जी को होश आया तो वो डरते-डरते महल में गए. उन्हें लग रहा था कि समय पर न पहुंचने की वजह से राजा उन्हें बहुत डांटेगा. सैन जी को देखकर राजा ने कहा, 'अब आप फिर क्यों आए हैं? हम आपकी सेवा से बहुत खुश हुए. क्या कुछ और चाहिए?'
राजा की बात सुनकर सैन जी बोले, 'मुझे क्षमा कर दीजिए. पूरी रात कीर्तन होता रहा इसलिए मैं समय से नहीं आ सका.' इस बात को सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई. राजा ने कहा, 'अरे आप तो आए थे. आपकी सेवा से प्रसन्न होकर मैंने आपको हार दिया था और वो अभी आपके गले में भी है.'
सैन हार देखकर चौंक गए. उन्हें एहसास हो गया कि भगवान उनका रूप धारण करके आए थे. उन्होंने राजा से कहा, 'महाराज, यह सच है कि मैं नहीं आया था. मेरी जगह भगवान आए थे. आपने ये माला भगवान को दी थी और उन्होंने उसे मेरे गले में डाल दिया.'
सैन जी की बातें सुनकर राजा उनके चरणों में नतमस्तक हो गया और कहने लगा कि अब आप को कुछ करने की जरूरत नहीं है. अब आप सिर्फ भगवत् भक्ति में लीन रहिए.
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