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रामचरितमानस की चौपाई 'भय बिनु होइ न प्रीति' का जानिए क्या है अर्थ

आपको बता दें कि यह पंक्ति प्रभु श्रीराम ने तब बोला था जब लंका चढ़ाई के लिए समुद्र ने उन्हें जाने का रास्ता नहीं दिया था.

रामचरितमानस की चौपाई 'भय बिनु होइ न प्रीति' का जानिए क्या है अर्थ
ज हम आपको इस लेख में रामचरितमानस की इस चौपाई क्या अर्थ है, इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं...

Ramcharitmanas chaupai meaning : ‘ऑपरेशन सिंदूर' पर भारतीय सेना ने सोमवार को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान भारतीय वायुसेना के वायु संचालन महानिदेशक एयर मार्शल एके भारती ने रामचरित मानस की चौपाई- ‘बिनय न माने जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होई न प्रीति'।। सुनाई. ऐसे में आज हम आपको इस लेख में रामचरितमानस की इस चौपाई (Bhai binu hoi na preet ka kya arth hai) का क्या अर्थ है, इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं...

भय बिनु होई न प्रीति..

तुलसीदास के अनुसार, भय बिन होई न प्रीति का अर्थ है कि बिना भय के प्रीति नहीं हो सकती. यहां भय का अर्थ डर से नहीं बल्कि अनुशासन है. किसी व्यक्ति के प्रति प्रेम और सम्मान तभी संभव है जब आपके प्रति भी उसका उचित आदर और अनुशासन का भाव हो. अगर कोई व्यक्ति पूरी तरह से निरंकुश हो जाए और किसी नियम या अनुशासन का पालन न करे तो फिर उससे प्रेम या फिर सम्मान करना संभव नहीं है. 

आपको बता दें कि यह पंक्ति प्रभु श्रीराम ने तब बोला था जब लंका चढ़ाई के लिए समुद्र ने उन्हें जाने का रास्ता नहीं दिया था. दरअसल, प्रभु श्री राम ने लंका चढ़ाई के दौरान विनयपूर्वक समुद्र से रास्त देने की गुहार लगाई. आग्रह करते हुए प्रभु श्रीराम को तीन दिन बीत गए. लेकिन समुद्र ने सेना को श्रीलंका पहुंचने के ल‍िए मार्ग नहीं द‍िया. तब भगवान राम समझ गए कि अब अपनी शक्ति से करना अनिवार्य है. भगवान श्रीराम के पास अमोघ बाण की शक्‍ति थी, ज‍िसके माध्‍यम से वह संपूर्ण समुद्र को सुखा सकते थे. लेकिन पहले श्रीराम ने विनम्रता का रास्‍ता चुना और समुद्र से मार्ग देने की व‍िनती की. लेकिन प्रेम से बात न समझने पर उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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