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Trayodashi Shradh 2025: पितृपक्ष में त्रयोदशी तिथि के श्राद्ध का क्या महत्व है? जानें विधि, मुहूर्त और जरूरी नियम

Pitru Paksha 2025: श्राद्ध केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि अपने पितरों के प्रति आस्था और सम्मान प्रकट करने का पवित्र माध्यम है. पितृपक्ष में त्रयोदशी तिथि पर किसके लिए श्राद्ध किया जाता है? त्रयोदशी श्राद्ध की विधि, मुहूर्त और धार्मिक महत्व जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Trayodashi Shradh 2025: पितृपक्ष में त्रयोदशी तिथि के श्राद्ध का क्या महत्व है? जानें विधि, मुहूर्त और जरूरी नियम
Trayodashi Shradh 2025: त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध कब और कैसे करें?

Trayodashi ka shradh kaise kare: हिंदू धर्म में पितरों की पूजा के लिए पितृपक्ष का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. पितृपक्ष को पितृ ऋण की मुक्ति के लिए सबसे उत्तम माना गया है. मान्यता है कि इस दौरान पूर्वजों के लिए विधि-विधान से किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान उन्हें संतुष्टि प्रदान करता है. हिंदू परंपरा में पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध को एक विशेष माध्यम बताया गया है. इस परंपरा के अंतर्गत विशेष तिथियों पर पितरों को याद करते हुए उनका श्रद्धा और प्रेम से उनका तर्पण किया जाता है. पितृपक्ष की इन्हीं तिथियों में से एक है त्रयोदशी, जिसे उन पूर्वजों के लिए विशेष माना गया है जिनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई हो. आइए त्रयोदशी तिथि के श्राद्ध का महत्व और उससे जुड़े नियम आदि के बारे में जानते हैं. 

त्रयोदशी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध विशेष रूप से निम्नलिखित पितरों के लिए होता है:

1. त्रयोदशी को मृत्यु पाने वाले पूर्वज - अगर किसी प्रियजन का देहांत त्रयोदशी तिथि पर हुआ हो, तो उनका श्राद्ध इसी दिन करना उपयुक्त माना जाता है.
2. जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो - कई बार ऐसा होता है कि किसी परिजन की मृत्यु कब हुई, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होती. ऐसी स्थिति में त्रयोदशी को उनका श्राद्ध किया जा सकता है.
3. बाल्यावस्था में मृत्यु - जिन बच्चों की मृत्यु कम उम्र में हो गई हो, उनके लिए भी त्रयोदशी का दिन विशेष रूप से निर्धारित है.

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श्राद्ध कैसे किया जाता है?

श्राद्ध एक पवित्र क्रिया है, जिसे संपूर्ण श्रद्धा और शांति के साथ किया जाना चाहिए. 

  1. स्नान और स्थान की सफाई - सबसे पहले स्वयं स्नान कर स्वच्छ हो जाएं. श्राद्ध स्थल को भी गंगाजल से शुद्ध करें.
  2. सही समय का चयन - श्राद्ध दोपहर के समय, खासकर कुतुप काल (लगभग 11:36 से 12:24 बजे के बीच) में करना उत्तम होता है.
  3. तर्पण विधि - दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें. कुश, जल, गंगाजल, दूध, जौ, शक्कर और काले तिल मिलाकर तर्पण करें. 
  4. पितरों का मंत्र -  “ॐ पितृ देवतायै नमः” या “ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणे धीमहि तन्नो पितृ: प्रचोदयात्” का जाप करें.
  5. ब्राह्मणों को आमंत्रित करें - श्राद्ध में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराना जरूरी होता है. उन्हें कुश या आसन पर बैठाएं और पूरे सम्मान से भोजन कराएं.
  6. दान और दक्षिणा - भोजन के बाद अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें वस्त्र, अन्न, दक्षिणा आदि दें.
  7. जीवों के लिए अन्न निकालें - गाय, कौए, कुत्ते और चींटियों के लिए भी अन्न अवश्य निकालें, इसे पुण्य का कार्य माना जाता है.
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श्राद्ध करते समय इन बातों का रखें ध्यान

  • खान-पान से जुड़े नियम- जब तक श्राद्ध की पूरी प्रक्रिया पूरी न हो जाए, तब तक स्वयं भोजन न करें. जरूरत हो तो केवल पानी पिया जा सकता है.
  • जरूरतमंदों की जरूर करें मदद - अगर कोई भूखा व्यक्ति या भिखारी दरवाजे पर आए, तो उसे खाली हाथ न लौटाएं.
  • शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखें - श्राद्ध के दौरान क्रोध या विवाद से बचें. शांति और श्रद्धा का भाव आवश्यक है.

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  • भोजन का आदर करें - भोजन को पैर से नहीं छूना चाहिए और न ही अनादर करना चाहिए.
  • फूलों का चयन सोच-समझकर करें - श्राद्ध में सफेद फूलों का उपयोग करें. लाल फूलों से परहेज करें.
  • दोनों हाथों से सेवा करें - जब ब्राह्मणों को भोजन परोसें, तो दोनों हाथों का उपयोग करें. यह सेवा भाव का प्रतीक माना जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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