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आज है निर्जला एकादशी, यहां जानिए व्रत कथा, पूजा विधि, मुहूर्त और पूजन मंत्र

Nirjala Ekadashi 2025 Vrat Katha : इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से पापों का नाश, कष्टों से मुक्ति और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है.  ऐसे में आइए जानते हैं एकादशी की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र और व्रत कथा...

आज है निर्जला एकादशी, यहां जानिए व्रत कथा, पूजा विधि, मुहूर्त और पूजन मंत्र
Nirjala Ekadashi 2025 Vrat Katha: पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को जल, भोजन, वस्त्र का दान करें.

Nirjala ekadashi 2025 : हिन्दू धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है. इस व्रत से 24 एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होता है. यह कठिन उपवासों में से एक है. यह मोक्षदायिनी और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है. इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से पापों का नाश, कष्टों से मुक्ति और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है.  ऐसे में आइए जानते हैं एकादशी की पूजा मुहूर्त, विधि, मंत्र और व्रत कथा....

Nirjala Ekdashi 2025 : क्या आप भी निर्जला एकादशी के दिन धो लेती हैं बाल, अब से न करें ये गलती, इसके पीछे है बड़ी वजह...

निर्जला एकादशी पूजन मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:03 से 04:44 मिनट तक है.
  • अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:53 मिनट से दोपहर 12:49 तक है.
  • रवि योग: सुबह 05:24 मिनट से सुबह 06:34 मिनट तक है.

एकादशी पूजा विधि - Ekadashi puja vidhi

  • व्रत से एक दिन पहले आप सात्विक भोजन करें और चावल का सेवन बिल्कुल न करें. साथ ही खूब सारा पानी पिएं. 
  • वहीं, व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर लीजिए. इसके बाद भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करके व्रत का संकल्प लीजिए. 
  • फिर एक स्वच्छ स्थान पर पूजा की चौकी रखें और उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें. 
  • अब आप भगवान विष्णु को पंचामृत और तुलसी पत्र अर्पित करिए. इसके बाद विष्णु सहस्रनाम या भगवद गीता का पाठ करिए.
  • पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को जल, भोजन, वस्त्र का दान करें.
  • अगले दिनभगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करके और उनसे पूजा पाठ में किसी तरह की भूल-चूक की माफी मांगकर द्वादशी व्रत का पारण करें.

निर्जला एकादशी पूजन मंत्र - Nirjala Ekadashi puja Mantra

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें.

निर्जला एकादशी कथा - Nirjala Ekadashi katha

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पांडवों में भीमसेन खाने पीने के बहुत शौकीन थे और अपनी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते थे. इसलिए वह बाकी पांडवों की तरह एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे. जिस बात को लेकर वो बहुत ज्यादा चिंतित रहते थे. उन्हें लगता था यह भगवान विष्णु का अनादर है और उन्हें मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी. अपनी इस परेशानी को लेकर भीम महर्षि व्यास के पास गए, तब व्यास जी ने भीमसेन को निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी साथ ही, कहा कि निर्जला एकादशी साल की 24 एकादशियों के बराबर है. जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें मृत्यु के बाद सीधे स्वर्ग प्राप्त होता है. 

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला एकादशी के महत्व के बारे में बात करते हुए आगरा के ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बात करते हुए कहा कि इस व्रत के पीछे बहुत ही एक बहुत बड़ा संदेश छिपा है. जब हमें कोई वस्तु नहीं मिलती है तब ही उसका महत्व पता चलता है. सारी भोग विलास की वस्तुएं एक तरफ है और हमारे जीवन के लिए जरूरी जल एक तरफ है. अतः जल के बिना जीवन नहीं है. ऐसे में निर्जला एकादशी के दिन जीवन के लिए जरूरी जल का त्याग करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं. हमारे जीवन में बिना त्याग और समर्पण के हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता है. जब हमारे अन्दर त्याग का भाव उत्पन्न होता है और हम इस गुण को धारण करते हैं तब भगवान और भक्त का, माता पिता एवं सन्तान, पति और पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है. मानव जीवन 84 लाख योनियां में से एक है जिसमें हम धर्म परायण जीवन जी कर इस जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो सकते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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