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This Article is From Oct 01, 2021

Navratri 2021: नवरात्र के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा, ये है व्रत कथा और पूजन विधि

Navratri 2021: माता चंद्रघंटा के पूजन के लिए सुनहरे रंग के वस्त्रों को उत्तम माना गया है. माता को खीर या सफेद बर्फी का भोग लगाएं. मां को अपना वाहन सिंह अतिप्रिय है. इसलिए माता के वाहन सिंह का पूजन करना न भूलें.

Navratri 2021: नवरात्र के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा, ये है व्रत कथा और पूजन विधि
नई दिल्ली:

शैलपुत्री और ब्रह्माचारिणी- दोनों सौम्य देवियों के पूजन के बाद नवरात्र का तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा होती है. माता का रूप तो सौम्य है. पर अपने दस हाथों में अलग अलग अस्त्र शस्त्र धारण किए हुए हैं. उनकी सवारी भी सिंह है. ये सब इस बात का प्रतीक है कि माता शत्रु के विनाश के लिए ये रूप धर कर आई हैं. जिनके घंटे की आवाज सुनकर ही राक्षस और आसुरी शक्तियां थर थर कांपने लगती हैं. ऐसी हैं मां चंद्रघंटा जिनमें समस्त देवी देवताओं की शक्ति समाहित है.

माता चंद्रघंटा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर ने अपनी सेना के साथ स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्रा का सिंहासन हथिया लिया. हारे हुए देवताओँ ने त्रिदेव की शरण ली और उन्हें युद्ध का सारा वृत्तांत कह सुनाया. महिषासुर के बारे में जानकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश गुस्से से लाल हो गए. कहते हैं उनके क्रोध से ही माता चंद्रघंटा उत्पन्न हुईं और उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ सूर्य और इंद्र ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए. इंद्र ने ही उन्हें ऐसा घंटा दिया जिसकी आवाज से तीनों लोगों के असुर कांप उठते थे. सिंह पर सवार माता रूप देखकर ही महिषासुर ये समझ गया कि उसका अंत निकट है. जिन असुरों को देवता मिलकर भी नहीं हरा सके, मां चंद्रघंटा ने अपने कोप से उन्हें क्षणमात्र में परास्त कर दिया. और देवताओं को उनका स्थान वापस दिलवाया. इसलिए माता को बुरी शक्तियों के अंत के रूप में भी पूजा जाता है.

माता चंद्रघंटा की पूजन विधि

माता चंद्रघंटा के पूजन के लिए सुनहरे रंग के वस्त्रों को उत्तम माना गया है. माता को खीर या सफेद बर्फी का भोग लगाएं. मां को अपना वाहन सिंह अतिप्रिय है. इसलिए माता के वाहन सिंह का पूजन करना न भूलें.

इन मंत्रों का करें जाप

  • पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता....प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता..
  • या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:‘
  • बीज मंत्र - ‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:'

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