Navratri 2021: एक ही दिन होगी चंद्रघंटा और कूष्मांडा मां की पूजा, भक्त जान लीजिए पूजा विधि, मंत्र और भोग

शारदीय नवरात्र शुरू हो चुके है. माता दुर्गा के तीसरे दिन और चौथे दिन के स्वरूप चंद्रघंटा और कूष्मांडा की पूजा एक ही दिन की जाएगी. ये है पूजा विधि, मंत्र और भोग

Navratri 2021: एक ही दिन होगी चंद्रघंटा और कूष्मांडा मां की पूजा, भक्त जान लीजिए पूजा विधि, मंत्र और भोग

नवरात्रि के चौथे दिन शक्ति की देवी मां दुर्गा के चौथे स्‍वरूप माता कूष्‍मांडा की पूजा अर्चना की जाती है.

शारदीय नवरात्र 2021 के तीसरे दिन माता दुर्गा के चंद्रघंटा और कूष्मांडा दोनों ही स्वरूपों की पूजा होगी. भक्तों को बता दें कि अश्विनी शुक्ल पक्ष की उदया तिथि तृतीया तिथि सुबह 7 बजकर 48 मिनट तक ही रहेगी. उसके पश्चात चतुर्थी तिथि भोर 4 बजकर 55 मिनट तक होगी. इसलिए नवरात्र का तीसरा दिन और चौथा दिन एक दिन ही भक्त मनाएंगे.

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नवरात्रि के दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है. लेकिन नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के चंद्रघंटा रूप की पूजा होती है. मां का तीसरा रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता रहा है. वैसे मान्यता है कि वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं, इसलिए उनके हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा और धनुष रहता है हमेशा. साथ ही ये भी माना गया है कि मां चंद्रघंटा को घंटों की नाद बेहद प्रिय रही है. वे इससे दुष्टों का संहार तो करती हैं, वहीं इनकी पूजा में घंटा बजाने का खास महत्व रहता है. माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई थी. मान्‍यता है कि मां चंद्रघंटा की उपासना भक्त को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है. नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की साधना कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले भक्तों को संसार में यश, कीर्ति और सम्मान मिलता है ऐसी मान्याता है.

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वहीं, नवरात्रि के चौथे दिन शक्ति की देवी मां दुर्गा के चौथे स्‍वरूप माता कूष्‍मांडा की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि पर चौथे दिन मां कूष्‍मांडा की पूजा का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, जो भक्‍त सच्‍चे मन से नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्‍मांडा की अर्चना करते हैं. उन्हें आयु, यश और बल की प्राप्‍ति तो होती ही है साथ ही माता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. यह मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा पूरे विधि विधान से करने से मनोवांछित फल मिलता है. वहीं मान्यता के अनुसार जो भक्त मां के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करते हैं, उन पर कभी किसी तरह कष्ट नहीं आता है.

मां कूष्‍मांडा का रूप

मां दुर्गा का चौथा रूप कूष्‍मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा गया है. दरअसल मां की आठ भुजाएं हैं. अष्टभुजा देवी अपने हाथों में धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कमंडल, जप माला, चक्र, गदा और अमृत से भरा कलश लिए हुए हैं. वहीं, मां के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. देवी के हाथ में जो अमृत कलश है उससे वह अपने भक्‍तों को दीर्घायु और उत्तम स्‍वास्‍थ्‍य का वरदान देती हैं, ऐसी मान्यता है. मां कूष्‍मांडा शेर की सवारी करती हैं, जो धर्म का प्रतीक है. अपनी मंद और हल्की हंसी से मां कूष्‍मांडा ने ब्रह्मांड को उत्पन्न किया.

माता मां कूष्‍मांडा की यह है पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन सुबह उठकर स्‍नान कर भक्त हरे रंग का वस्‍त्र धारण करते हैं. मां की फोटो या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और मां को तिलक लगाएं. अब देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्‍हड़े का भोग लगाएं. अब ‘ऊं कूष्‍मांडा देव्‍यै नम:' मंत्र का जाप 108 बार करें. मां कूष्‍मांडा की आरती करें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें. इसके बाद आप स्‍वयं भी प्रसाद ग्रहण करें. मां कूष्‍मांडा को लगाएं विशेष भोग

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 के बारे में मान्यता है कि मां कूष्‍मांडा को दही, मालपुआ और हलवा बेहद प्रिय हैं, जो भक्त मां की इन चीजों के साथ आराधना करते हैं, उन पर मां की कृपा सदा बनी रहती है.