Navratri 2020: देशभर में इन दिनों नवरात्रि का त्योहार मनाया जा रहा है. मां दुर्गा के दर्शन के लिए हर रोज़ श्रद्धालू मां के दर पर पहुंच रहे हैं. हिंदू धर्म में देवी दुर्गा (Goddess Durga) को शक्ति, साहस और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. जो ब्रह्मांड को बुराई और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. देश भर के लोग हमेशा उनकी पूजा करते हैं, लेकिन नवरात्रि (Navratri) के दौरान बड़े व्यापक रूप से उनकी पूजा की जाती है. यह नौ दिवसीय त्योहार देवी के नौ अलग-अलग रूपों को समर्पित है. नवरात्रि का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, क्योंकि देवी दुर्गा ने नवरात्रि के दसवें दिन महिषासुर को हराया था और इसी दिन भगवान राम ने राक्षस राजा रावण को हराया था. ऐसा कहा जाता है, कि देवी दुर्गा दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमेशा अपने भक्तों को हर तरह की बुराई से बचाती हैं. इन्हें देवी लक्ष्मी, सरस्वती और काली की संयुक्त ऊर्जा माना जाता है, जो देवी पार्वती के विभिन्न रूपों में से एक है. इतना ही नहीं, मां दुर्गा, देवी पार्वती का योद्धा-रूप है, जो सभी देवताओं की शक्ति और दिव्य ऊर्जाओं के मिलने से दुर्गा में परिवर्तित हो गई थी.
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सभी देवताओं की दिव्य शक्तियों और ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व देवी दुर्गा द्वारा धारण किए गए विभिन्न शस्त्रों और उनकी प्रत्येक दिव्य वस्तुओं द्वारा किया जाता है. तो आइए जानते हैं, क्या है देवी दुर्गा के इन शस्त्रों का प्रतीक और महत्व...
1.शेर
मां दुर्गा का शेर साहस, लालच, ईर्ष्या, सहमत, स्वार्थ, अहंकार आदि जैसी अनियंत्रित भौतिकवादी इच्छाएं और प्रवृत्तियाँ का प्रतीक है. देवी दुर्गा की शेर की सवारी इस बात का प्रतीक है, कि हमें अपनी भौतिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और भावनाओं को नियंत्रित कर साहस की साथ आगे बढ़ना चाहिए.
2.लाल साड़ी
देवी दुर्गा को आमतौर पर सोने के आभूषणों के साथ लाल साड़ी पहने देखा जाता है. लाल साड़ी जुनून का प्रतीक है. यह बुराई और बुरे के खिलाफ मानव जाति की रक्षा करने की उनकी भावना का प्रतिनिधित्व करता है.
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3.शंख
देवी दुर्गा को शंख वरुण देव ने भेंट किया था. इस शंख की ध्वनि जब गुंजायमान होती है तो धरती, आकाश और पाताल में दैत्यों की सेना भाग खड़ी होती थी.
4.चक्र
देवी के हाथों में मौजूद चक्र को भगवान विष्णु ने भक्तों की रक्षा के लिए देवी को दिया था. भगवान विष्णु ने ये चक्र खुद अपने चक्र से उत्पन्न किया था.
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5.तलवार
उनके हाथ में तलवार हमारे नकारात्मक और बुरे गुणों को अलग करने और मिटाने के महत्व को दर्शाती है. यह इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छी आदतों को अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए. साथ ही, अन्यायी और मतलबी कार्यों के लिए खिलाफ बोलना चाहिए.
6.कमल का फूल
देवी दुर्गा के हाथों में कमल का फूल भौतिकवादी दुनिया से तपस्या, पवित्रता और वैराग्य का प्रतीक है. यह हमें सिखाता है कि कीचड़ वाले पानी में रहने के बावजूद, कमल का पानी शुद्ध, जीवंत और रंगों से भरा रहता है. इसी प्रकार, हम मनुष्यों को भी बुराई में भी अच्छाई दिखाने की कोशिश करनी चाहिए, हमको कठिन समय में भी कभी कमजोर नहीं पड़ना चाहिए.
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7.त्रिशूल
देवी दुर्गा के बाएं हाथ में त्रिशूल साहस और वीरता का प्रतीक है. यह हमें बताता है कि स्थिति चाहे कितनी भी गंभीर क्यों न हो, हमें अपनी उम्मीद कभी नहीं खोनी चाहिए. हमें अपने जीवन में आने वाली समस्याओं से दूर भागने के बजाय, मजबूत होकर खड़े रहना चाहिए और पूरी हिम्मत, आशा और दृढ़ संकल्प के साथ समस्याओं का सामना करना चाहिए.
8.धनुष बाण
देवी दुर्गा के हाथ में धनुष और तीर दृढ़ता का प्रतीक है. इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे जीवन में क्या समस्याएं आती हैं, हमें दृढ़ता और हमेशा सच्चाई से डटे रहने की जरूरत है. हमें अपना चरित्र कभी नहीं खोना चाहिए और न ही कभी कोई गलत निर्णय लेना चाहिए.
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9.सांप
देवी दुर्गा के हाथों में साँप विनाशकारी समय की सुंदरता और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है. जो लोग इस धरती पर रह रहे हैं, उन्हें मरना होगा और उनकी आत्मा अगले जन्म में एक नया रूप लेगी. यह बुरे समय में भी अच्छाई का प्रतीक है.
10.फरसा
देवी दुर्गा को विश्वकर्मा जी ने अपनी ओर से फरसा प्रदान किया था. चंड-मुंड का सर्वनाश करने वाली देवी दुर्गा ने काली का रूप धारण कर हाथों में तलवार और फरसा लेकर असुरों से युद्ध किया था.
11.घंटा
देवराज इंद्र ने ऐरावत हाथी के गले से घंटा उतारकर देवी दुर्गा को दिया था और इस घंटे की भयंकर ध्वनि से असुर मूर्छित हो गए थे और फिर उनका संहार हुआ था.
12.दंड
यमराज ने देवी दुर्गा को अपने कालदंड से दंड भेंट किया था. देवी ने युद्ध भूमि में दैत्यों को दंड पाश से बांधकर धरती पर घसीटा था.
13.वज्र
देवराज इंद्र ने अपने वज्र से एक दूसरा वज्र निकाल कर देवी दुर्गा को दिया था. ये वज्र अत्यंत शक्तिशाली था और जब युद्ध भूमि पर देवी इसे निकालती थीं, तो उसके प्रहार से असुरी युद्ध के मैदान से भाग खड़ी हुई थी.
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