नवरात्रि 2017:मान्यता है कि कलश भगवान गणेश का प्रतिरुप है.
नवरात्रि की पहले दिन श्रद्धालु घर या मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं. इसे घट-स्थापना भी कहते है. जो साधक नवरात्रि व्रत का संकल्प लेते हैं, वे एक उचित और पवित्र स्थान पर मिट्टी की वेदी बनाकर वहां "जौ सहित सात प्रकार के अनाज" बोते है. फिर इस वेदी पर एक कलश या घट की स्थापना करते हैं.
अनेक स्थानों पर कलश के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी भी पूजा की जाती है. कलश के पास एक अखंड दीप-ज्योति की स्थापना का भी विधान है यानी नवरात्रि के दौरान यह दीपक कभी बुझता नहीं है.
मान्यता है कि देवी दुर्गा और उनके नौ रुपों का भलीभांति स्मरण कर "दुर्गा सप्तशती" ग्रंथ का सस्वर पाठ करने से देवी अभीष्ट फल देती हैं.
क्या-क्या डालते हैं कलश में
हिन्दू रिवाज के अनुसार सर्वप्रथम इस कलश के नीचे जौ और सात प्रकार के अनाज बोए जाते है, जिन्हें विजयादशमी के दिन "जंत्री" के रुप में ग्रहण किया जाता है. इसके बाद कलश में जल भरा जाता है.
फिर इममें सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और मुद्रा रखी जाती है. उसके बाद कलश को पांच प्रकार के पत्तों से सजाया जाता है. फिर विधि-विधान से मंत्रोच्चारण करते हुए कलश को देवी दुर्गा की प्रतिमा के सामने पूजा-स्थल के मध्य में स्थापित करते हैं.
कलश की पूजन-प्रक्रिया
मान्यता है कि कलश भगवान गणेश का प्रतिरुप है. इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. वैसे भी सर्वप्रथम विघ्ननाशक श्री गणेश, जैसा कि शास्त्रोक्त है, की आराधना की जाती है.
कलश को किसी स्थान पर स्थापित करने से पहले पूजा-स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है. फिर इस पूजा में समस्त देवी-देवताओं शास्त्रोक्त विधि से आह्वान किया जाता है कि वे इस पूजा में सम्मिलित हों और अपना स्थान ग्रहण करें. उल्लेखनीय है कि नवरात्रि प्रतिपदा तिथि को मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है.
अनेक स्थानों पर कलश के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी भी पूजा की जाती है. कलश के पास एक अखंड दीप-ज्योति की स्थापना का भी विधान है यानी नवरात्रि के दौरान यह दीपक कभी बुझता नहीं है.
मान्यता है कि देवी दुर्गा और उनके नौ रुपों का भलीभांति स्मरण कर "दुर्गा सप्तशती" ग्रंथ का सस्वर पाठ करने से देवी अभीष्ट फल देती हैं.
क्या-क्या डालते हैं कलश में
हिन्दू रिवाज के अनुसार सर्वप्रथम इस कलश के नीचे जौ और सात प्रकार के अनाज बोए जाते है, जिन्हें विजयादशमी के दिन "जंत्री" के रुप में ग्रहण किया जाता है. इसके बाद कलश में जल भरा जाता है.
फिर इममें सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और मुद्रा रखी जाती है. उसके बाद कलश को पांच प्रकार के पत्तों से सजाया जाता है. फिर विधि-विधान से मंत्रोच्चारण करते हुए कलश को देवी दुर्गा की प्रतिमा के सामने पूजा-स्थल के मध्य में स्थापित करते हैं.
फल्गु नदी के तट पर पिंडदान को क्यों माना जाता है खास, क्या है इसका महत्व...
Ganesh Chaturthi 2017: जानिए कब है गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त और क्या है इसका महत्व
सत्य तक पहुंचने का मार्ग है श्राद्ध...
Ganesh Chaturthi 2017: जानिए कब है गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त और क्या है इसका महत्व
सत्य तक पहुंचने का मार्ग है श्राद्ध...
कलश की पूजन-प्रक्रिया
मान्यता है कि कलश भगवान गणेश का प्रतिरुप है. इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. वैसे भी सर्वप्रथम विघ्ननाशक श्री गणेश, जैसा कि शास्त्रोक्त है, की आराधना की जाती है.
कलश को किसी स्थान पर स्थापित करने से पहले पूजा-स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है. फिर इस पूजा में समस्त देवी-देवताओं शास्त्रोक्त विधि से आह्वान किया जाता है कि वे इस पूजा में सम्मिलित हों और अपना स्थान ग्रहण करें. उल्लेखनीय है कि नवरात्रि प्रतिपदा तिथि को मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं