नई दिल्ली:
पुराणों के अनुसार हर साल ज्येष्ठ के महीने की कृष्णपक्ष द्वितीया को नारद जयंती मनाई जाती है. क्या आप जानते हैं नारद को ब्रह्मदेव का मानस पुत्र भी माना जाता है. इनका जन्म ब्रह्माजी की गोद से हुआ था.
ब्रह्मा जी ने नराद को सृष्टि कार्य का आदेश दिया था. लेकिन नारद जी ने ब्रह्मा जी का ये आदेश मानने से इनंकार कार दिया था.
नारद, देवताओं के ऋषि हैं. इसी कारण नारद जी को देवर्षि नाम से भी पुकारा जाता हैं.
अगर आप नारद जी के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको 'नारद पुराण' जरूर पढ़ना चाहिए. यह एक वैष्णव पुराण है.
कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद जी को ब्रह्मर्षि पद प्राप्त हुआ था.
नारद जी बहुत ज्ञानी थे, इसी कारण दैत्य हो या देवी-देवता सभी वर्गों में उनको बेहद आदर और सत्कार किया जाता था.
कहते हैं नारद मुनि के श्राप के कारण ही राम को देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था.
पुराणों में ऐसा भी लिखा गया है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद जी को श्राप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रूक रूक नहीं पाएंगे. यही कारण है कि नारद जी अकसर यात्रा करते रहते थे. कभी इस देवी-देवता तो कभी दूसरे देवी-देवता के पास.
ब्रह्मा जी ने नराद को सृष्टि कार्य का आदेश दिया था. लेकिन नारद जी ने ब्रह्मा जी का ये आदेश मानने से इनंकार कार दिया था.
नारद, देवताओं के ऋषि हैं. इसी कारण नारद जी को देवर्षि नाम से भी पुकारा जाता हैं.
अगर आप नारद जी के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको 'नारद पुराण' जरूर पढ़ना चाहिए. यह एक वैष्णव पुराण है.
कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद जी को ब्रह्मर्षि पद प्राप्त हुआ था.
नारद जी बहुत ज्ञानी थे, इसी कारण दैत्य हो या देवी-देवता सभी वर्गों में उनको बेहद आदर और सत्कार किया जाता था.
कहते हैं नारद मुनि के श्राप के कारण ही राम को देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था.
पुराणों में ऐसा भी लिखा गया है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद जी को श्राप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रूक रूक नहीं पाएंगे. यही कारण है कि नारद जी अकसर यात्रा करते रहते थे. कभी इस देवी-देवता तो कभी दूसरे देवी-देवता के पास.
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