मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर की कहानी
नई दिल्ली:
चैत्र नवरात्रि चल रहे हैं. इन पूरे नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाएगी. यह नवरात्रि 18 मार्च से शुरू होकर 26 मार्च तक चलेगी. वहीं, पूरे साल में 4 बार नवरात्रि आती हैं, इन चारों में से सिर्फ दो चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि को ही धूमधाम से मनाया जाता है. शरद नवरात्रि को महा नवरात्रि भी कहते हैं. यह सितम्बर-अक्टूबर के महीने में आती है, इस साल यह 9 से 17 अक्टूबर 2018 को होंगे. इस नवरात्रि के 10वें दिन को दशहरा के तौर पर भी मनाया जाता है. वहीं, चैत्र नवरात्रि मार्च-अप्रैल या हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने में पड़ती है.
चैत्र नवरात्रि को क्यों कहते हैं 'राम नवरात्रि', जानें क्या है इसका महत्व
इस दौरान मां के दरबार यानी वैष्णों देवी में भक्तों की भारी जमा होती है. हर किसी की तमन्ना होती है कि अपने जीवन में एक बार वैष्णों देवी के दर्शन करें, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह माता का दरबार आखिर बना कैसे? क्या है इस स्थान की पौराणिक कथा? यहां जानें वैष्णों देवी से जुड़ी वो कहानी, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं.
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कैसे बना वैष्णों देवी का मंदिर?
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार माता के परम भक्त श्रीधर की इच्छा थी कि मां वैष्णों उसे एक बार दर्शन दें और दुनिया को अपना अस्तित्व दिखाएं. इसकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने श्रीधर को दर्शन देने का वादा किया. माता ने इसके लिए भंडारे की बात कही. श्रीधर गरीब था बावजूद उसके मां ने उसे आश्वास्त किया वह भंडारा करवाए और पूरे गांव को बुलाए. गांव वालों के साथ ही उसने साधु-संतों को भी निमंत्रण दिया. इसी वजह से वहां भैरवनाथ और उनके शिष्य भी पधारे. इनके साथ ही पूरा गांव धीरे-धीरे खाने को आया. मां ने अपना कृपा से पूरे गांव के लिए खीर-पूड़ी का इंतेजाम किया. लेकिन भैरव और उसके शिष्यों ने मांस की मांग की. श्रीधर के बहुत समझाने के बावजूद वह नहीं माने, इसी बीच मां दुर्गा ने कन्या रूप में वहां दर्शन दिए. लेकिन हठ पर अड़ा भैरव तब भी नहीं माना. भैरव इस कन्या पर क्रोधित हुआ और उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागीं. वह एक गुफा में छिप गईं. इस बीच उन्होंने हनुमान को बुलाया और उन्हें भैरव को 9 महीने व्यस्त रखने को कहा. उन्होंने कहा कि वो 9 महीने इस गुफा के अंदर तपस्या करेंगी.
मां दुर्गा के 108 नाम, इसके साथ जानें हर रूप का अर्थ
आज यही गुफा 'अर्धकुंवारी' के नाम से जानी जाती है. इसी पवित्र गुफा को सभी भक्त पार करते हैं. इसके अलावा इसी गुफा की शुरुआत में बनी मां के चरण पादुका की पूजा होती है. मान्यता है कि इस जगह माता ने भैरव को पीछे मुड़कर देखा था, इसीलिए यहां उनके पैरों के निशान बने. गुफा में तपस्या के दौरान मां ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए अपने बाण से जलधारा निकाली, जिसे बाणगंगा नाम दिया गया. मान्यता है कि इस जलधारा में डुबकी लगाने से सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं.
अपनी तपस्या पूरी कर नौ महीने बाद मां दुर्गा ने भैरवनाथ का वध किया, इस संहार के दौरान भैरव ने अपनी गलती मानी और मां से माफी मांगी. भैरव ने मां से आखिरी वरदान मांगा कि वह भक्तों में कभी भी घृणा का पात्र ना बनें. इस पर मां ने वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति त्रिकुट में आकर मेरी पूजा करने के बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी. जहां-जहां मां दुर्गा ठहरी या तपस्या की, आज वहां मंदिर मौजूद हैं.
देखें वीडियो - देशभर में नवरात्रि के अवसर मंदिरों में रौनक
चैत्र नवरात्रि को क्यों कहते हैं 'राम नवरात्रि', जानें क्या है इसका महत्व
इस दौरान मां के दरबार यानी वैष्णों देवी में भक्तों की भारी जमा होती है. हर किसी की तमन्ना होती है कि अपने जीवन में एक बार वैष्णों देवी के दर्शन करें, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह माता का दरबार आखिर बना कैसे? क्या है इस स्थान की पौराणिक कथा? यहां जानें वैष्णों देवी से जुड़ी वो कहानी, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं.
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कैसे बना वैष्णों देवी का मंदिर?
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार माता के परम भक्त श्रीधर की इच्छा थी कि मां वैष्णों उसे एक बार दर्शन दें और दुनिया को अपना अस्तित्व दिखाएं. इसकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने श्रीधर को दर्शन देने का वादा किया. माता ने इसके लिए भंडारे की बात कही. श्रीधर गरीब था बावजूद उसके मां ने उसे आश्वास्त किया वह भंडारा करवाए और पूरे गांव को बुलाए. गांव वालों के साथ ही उसने साधु-संतों को भी निमंत्रण दिया. इसी वजह से वहां भैरवनाथ और उनके शिष्य भी पधारे. इनके साथ ही पूरा गांव धीरे-धीरे खाने को आया. मां ने अपना कृपा से पूरे गांव के लिए खीर-पूड़ी का इंतेजाम किया. लेकिन भैरव और उसके शिष्यों ने मांस की मांग की. श्रीधर के बहुत समझाने के बावजूद वह नहीं माने, इसी बीच मां दुर्गा ने कन्या रूप में वहां दर्शन दिए. लेकिन हठ पर अड़ा भैरव तब भी नहीं माना. भैरव इस कन्या पर क्रोधित हुआ और उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागीं. वह एक गुफा में छिप गईं. इस बीच उन्होंने हनुमान को बुलाया और उन्हें भैरव को 9 महीने व्यस्त रखने को कहा. उन्होंने कहा कि वो 9 महीने इस गुफा के अंदर तपस्या करेंगी.
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आज यही गुफा 'अर्धकुंवारी' के नाम से जानी जाती है. इसी पवित्र गुफा को सभी भक्त पार करते हैं. इसके अलावा इसी गुफा की शुरुआत में बनी मां के चरण पादुका की पूजा होती है. मान्यता है कि इस जगह माता ने भैरव को पीछे मुड़कर देखा था, इसीलिए यहां उनके पैरों के निशान बने. गुफा में तपस्या के दौरान मां ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए अपने बाण से जलधारा निकाली, जिसे बाणगंगा नाम दिया गया. मान्यता है कि इस जलधारा में डुबकी लगाने से सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं.
अपनी तपस्या पूरी कर नौ महीने बाद मां दुर्गा ने भैरवनाथ का वध किया, इस संहार के दौरान भैरव ने अपनी गलती मानी और मां से माफी मांगी. भैरव ने मां से आखिरी वरदान मांगा कि वह भक्तों में कभी भी घृणा का पात्र ना बनें. इस पर मां ने वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति त्रिकुट में आकर मेरी पूजा करने के बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी. जहां-जहां मां दुर्गा ठहरी या तपस्या की, आज वहां मंदिर मौजूद हैं.
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