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This Article is From Apr 14, 2022

Mahavir Jayanti 2022: जानिए महावीर जयंती का महत्व और महावीर चालीसा पढ़ने के लाभ 

Mahavir Jayanti 2022: महावीर स्वामी के जन्मोत्सव को महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यतानुसार इस दिन महावीर चालीसा भी पढ़ी जाती है.

Mahavir Jayanti 2022: जानिए महावीर जयंती का महत्व और महावीर चालीसा पढ़ने के लाभ 
Mahavir Jayanti: जैन धर्म में महावीर जयंती का विशेष महत्व है.

Mahavir Jayanti 2022: जैन धर्म के 24वीं तीर्थंकर और धार्मिक गुरु वर्धमान महावीर थे. महावीर स्वामी को भगवान महावीर भी कहते हैं. 30 वर्ष की उम्र में ही वर्धमान स्वामी ने वस्तुनिष्ठ दुनिया को पीछे छोड़ मोक्ष (Moksha) की राह पर जाने का फैसला कर लिया था. महावीर स्वामी (Mahavir Swami) अपने जीवन में पांच सिद्धांतों पर चले थे, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य. महावीर जयंती 14 अप्रैल के दिन मनाई जा रही है. इस दिन जैन धर्म को मानने वाले प्रार्थना व समारोह आयोजित करते हैं, साथ ही महावीर चालीसा का भी पाठ करने की मान्यता है. 

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महावीर चालीसा पढ़ने के लाभ 

धार्मिक विश्वासों के अनुसार महावीर चालीसा (Mahavir Chalisa) पढ़ने से मन में विवेक आता है और बुद्धि का विकास होता है. इस चलते खासतौर पर महावीर जयंती के दिन महावीर चालीसा पढ़ी जाती है.


महावीर चालीसा ।।
शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार।
जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी।
वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा।
शांति छवि और मोहनी मूरत, शान हँसीली सोहनी सूरत।
तुमने वेश दिगम्बर धारा, कर्म-शत्रु भी तुम से हारा।
क्रोध मान अरु लोभ भगाया, महा-मोह तुमसे डर खाया
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता।
तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीर रण राग तू हितोपदेश।
तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा।
भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें।
महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावे।
काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी।
ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला।
अग्नि दावानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो।
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे।
हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने कीना निस्तारा।
जनम लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब प्रजा सगरी।
सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला के आँखों के तारे।
छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी।
पंचम काल महा-दुखदाई, चाँदनपुर महिमा दिखलाई।
टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया।
सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुँचा एक फावड़ा लेके।
सारा टीला खोद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया।
जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा।
ठंडा हुआ तोप का गोला, तब सब ने जयकारा बोला।
मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया
बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने को ठहराई।
तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी।
ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया।
पहिले दिन बैशाख बदी के, रथ जाता है तीर नदी के।
मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते।
स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का बहु मान बढ़ाया।
हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही।
मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर।
तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ।
चालीसे को चन्द्र बनावे, बीर प्रभु को शीश नवावे।
सोरठा :
नित चालीसहि बार, बाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने।।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।। 


 (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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