आज माघ माह के पहले गुरुवार को करें श्री हरि की इस आरती का पाठ

आज माघ माह का पहला गुरुवार है. आज के दिन भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की भक्ति और पूजा के लिए समर्पित है. आज सुबह स्नान के बाद भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना के बाद उनकी आरती जरूर उतारें. माना जाता है कि आरती के बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती.

आज माघ माह के पहले गुरुवार को करें श्री हरि की इस आरती का पाठ

गुरुवार को करें भगवान विष्णु की आरती

नई दिल्ली:

गुरुवार (Guruvar) का दिन भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) की उपासना के लिए शुभ माना जाता है. आज माघ माह का पहला गुरुवार है. इस पवित्र माघ मास में गंगा स्नान, भगवान सूर्य देव और भगवान श्री हरि विष्णु के पूजन का विधान है. आज के दिन भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं. इसी तरह आज का दिन यानि गुरुवार का दिन भगवान विष्णु जी की भक्ति और पूजा के लिए समर्पित है. मान्यता है कि माघ माह में भगवान विष्णु का पूजन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. आज के दिन श्री हरि को पीले फूल, पीले वस्त्र, केला, चने की दाल, गुड़ आदि चढ़ाया जाता है और पूजा के बाद भगवान विष्णु की इस आरती (Bhagwan Vishnu Ki Aarti) का पाठ किया जाता है.

कहते हैं कि आरती के लिए लोग कपूर या फिर घी के दीपक का प्रयोग करना चाहिए. माना जाता है कि घी का दीपक शुभ कार्यों के लिए उत्तम होता है. गुरुवार के दिन सुबह स्नान के बाद भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना के बाद उनकी आरती जरूर उतारें. माना जाता है कि आरती के बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती.

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भगवान विष्णु की आरती | Bhagwan Vishnu Ki Aarti

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ओम जय जगदीश हरे…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

ओम जय जगदीश हरे…

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मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥

ओम जय जगदीश हरे…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ओम जय जगदीश हरे…

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ओम जय जगदीश हरे…

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तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ओम जय जगदीश हरे…

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ओम जय जगदीश हरे…

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥

ओम जय जगदीश हरे…

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श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

ओम जय जगदीश हरे…

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)