इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी का दर्शन करना है मना, जानिए क्यों

इस मंदिर से कई अनोखी बातें और रहस्य जुड़े हुए हैं, जो इसके आकर्षण और महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं. माना जाता है कि भारत में स्थित भगवान  शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त कुछ ज्योतिर्लिंग बाहर भी हैं, जिसमें पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग एक है.

इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी का दर्शन करना है मना, जानिए क्यों

नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर को भगवान शिव के विशेष मंदिरों में से एक माना जाता है. यह मंदिर बागमती नदी के तट पर देवपाटन इलाके में अवस्थित है. सदियों से इस मंदिर में भगवान शिव का दर्शन करने के लिए पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं. इस मंदिर से कई अनोखी बातें और रहस्य जुड़े हुए हैं, जो इसके आकर्षण और महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं. माना जाता है कि भारत में स्थित भगवान  शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त कुछ ज्योतिर्लिंग बाहर भी हैं, जिसमें पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग एक है. कहते हैं, इस ज्योतिर्लिंग का सम्बन्ध भूगर्भ के माध्यम से उत्तराखंड स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग जुड़ा है और यह उसका ही आधा हिस्सा है. हिन्दू धर्म में यह मंदिर भगवान शिव के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है.

 
पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यता है कि जो व्यक्ति भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करता है, उसका जन्म फिर कभी पशु योनि में नहीं होता है. लेकिन यहां की एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय श्रद्धालुओं को पहले इस मंदिर के बाहर स्थित नंदी का दर्शन नहीं करना चाहिए. कहते हैं, जो व्यक्ति भगवान शिव से पहले नंदी का दर्शन करता है और फिर शिव-दर्शन करता है, तो उसे अगले जन्म पशु योनि मिलती है. इसलिए इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी का दर्शन करने से मना किया जाता है.
 
पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य नामक एक घाट है. कहा जाता है सिर्फ इस पवित्र घाट का पानी ही मंदिर में ले जाया जाता है. अन्य किसी पानी को मंदिर में लेकर जाने की अनुमति नही है. अपने स्वरुप में पशुपतिनाथ ज्योर्लिंग चारमुखी है. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक और जनश्रुति यह भी है कि इसमें पारस पत्थर के गुण समाहित हैं अर्थात यहां लोहे को सोना में बदला जा सकता है.  
पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग शिव नेपालवासियों और नेपाल के राजपरिवार के आराध्य देव हैं. यूनेस्को इस मंदिर को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया जाना इसके सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है.

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