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This Article is From Jul 30, 2021

Masik Kalashtami 2021 Date: कालाष्टमी को देते हैं कुत्‍ते को भोजन, चढ़ाते हैं चंद्रमा को जल, जानें कब है शुभ मुहूर्त

Masik Kalashtami : कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है, पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है. हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है. यह माना जाता है कि उसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे.

Masik Kalashtami 2021 Date: कालाष्टमी को देते हैं कुत्‍ते को भोजन, चढ़ाते हैं चंद्रमा को जल, जानें कब है शुभ मुहूर्त
यह माना जाता है कि उसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे.
नई दिल्‍ली:

Masik Kalashtami : इस द‍िन को कालाष्टमी को काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है और हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान इसे मनाया जाता है. कालभैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं. इस महीने 31 जुलाई 2021 को कालाष्टमी मनाई जाएगी. सबसे मुख्य कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है, पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है. हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है. यह माना जाता है कि उसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे.

यह है मासिक कालाष्टमी 2021 का शुभ मुहूर्त

श्रावण, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ – 05:40 ए एम, जुलाई 31
समाप्त – 07:56 ए एम, अगस्त 01

कालाष्टमी पर करवाते हैं कुत्‍ते को भोजन 
सुबह उठकर इस दिन भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए. कालाष्टमी के पावन दिन पर कुत्ते को भोजन कराना चाहिए. ऐसा करने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं और सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं भैरव बाबा का वाहन कुत्ता होता हैं इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन कराने से विशेष फल की प्राप्ति भक्तों को होती हैं.

मान्‍यता के अनुसार रात को चढ़ाते हैं चंद्रमा को जल 
वैसे मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था. शिव के दो रूप बताए जाते हैं बटुक ​भैरव और काल भैरव. जहां बटुक भैरव सौमय हैं वही काल भैरव रौद्र रूप में हैं. मासिक कालाष्टमी को पूजा रात को कि जाती हैं इस दिन काल भैरव की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता हैं.

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