Kalashtami 2022: कालाष्टमी के दिन किया जाता है भैरव चालीसा का पाठ, जानिए इसका महत्व

काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है. मान्यता है कि काल भैरव के पूजन से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव के पूजन के समय श्री भैरव चालीसा का पाठ (Shri Kaal Bhairav Chalisa) करना शुभ माना जाता है.

Kalashtami 2022: कालाष्टमी के दिन किया जाता है भैरव चालीसा का पाठ, जानिए इसका महत्व

Kalashtami 2022: कालाष्टमी के दिन पूजन के समय जरूर करें भैरव चालीसा का पाठ

नई दिल्ली:

कालाष्टमी (Kalashtami 2022) के दिन भगवान काल भैरव की पूजा-आराधना और व्रत किया जाता है. मान्यता है कि काल भैरव के पूजन से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. कहते हैं कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है. इस माह की कालाष्टमी का पूजन 23 फरवरी, बुधवार के दिन किया जाएगा. हिंदू मान्यता के अनुसार.

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हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है. मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव के पूजन के समय श्री भैरव चालीसा का पाठ (Shri Kaal Bhairav Chalisa) करना शुभ माना जाता है. आइए पढ़ते हैं भैरव चालीसा का पाठ.

Kalashtami February 2022: इस दिन मनाई जाएगी कालाष्टमी, जानिए भैरव देव की पूजा विधि और महत्व

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श्री भैरव चालीसा |  Kaal Bhairav Chalisa

।। दोहा ।।

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ।।

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल।।

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।। चौपाई।।

जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥

जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥

जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥

भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥

भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥

शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥

जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥

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कटि करधनी घुंघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥

जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥

वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥

कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥

जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥

रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥

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अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥

रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥

बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्‍वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥

करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥

रत्‍न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥

तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥

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भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥

महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥

अश्‍वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥

निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥

त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥

रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥

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करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥

करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥

देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥

जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥

श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥

ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥

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सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥

श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥


दोहा

जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।

कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)