रविवार से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, क्या हैं इससे जुड़ी रोचक बातें...

महज भारत के ही नहीं दुनिया के सबसे विशाल और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है. इस उत्सम में भाग लेने के लिए पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते यहां आते हैं.

रविवार से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, क्या हैं इससे जुड़ी रोचक बातें...

हर साल आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी नगर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जाता है. यह एक बड़ा उत्सव है, जो महज भारत के ही नहीं दुनिया के सबसे विशाल और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है. इस उत्सम में भाग लेने के लिए पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते यहां आते हैं. इस साल यह रथयात्रा 25 जून यानी रविवार से शुरू होगी. भगवान जगन्नाथ की वाषर्कि रथ यात्रा 25 जून को होगी. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समारोह की तैयारियों की समीक्षा भी कर चुके हैं.


एक नजर ड़ालते हैं भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी ये खास और रोचक बातें:
 

  • पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं. रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है. इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है.

  • पुरी में बना जगन्नाथ मंदिर भारत में हिंदुओं के चार धामों में से एक है. यह धाम तकरबीन 800 सालों से भी ज्यादा पुराना माना जाता है. 

  • भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदिघोष, तो बलभद्र के रथ को तालधव्ज और सुभद्रा के रथ को देवदलन नामों से पुकारा जाता है. इन रथों की रंग और ऊंचाई अगल-अलग होती है. 

  • भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.

  • बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है. देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं. इसका रंग लाल और पीला होता है.

  • पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. वर्त्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित है. साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम, जिन्हें बलभद्र या बलदेव भी कहते हैं, और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है.

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