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Sawan Puja 2024: सावन में शिव भक्ति का है बहुत महत्व, जानिए सावन को क्यों कहा गया ‘श्रावण’

धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण सावन माह भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है. पुराणों में भगवान शिव की भक्ति में सावन माह के महत्व के बारे में बताया गया है.

Sawan Puja 2024: सावन में शिव भक्ति का है बहुत महत्व, जानिए सावन को क्यों कहा गया ‘श्रावण’
 इस माह में प्रतिदिन सोमेश्वर भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा की जाती है. 

Importance of Sawan : सावन माह (Sawan) की शुरुआत 22 जुलाई से हो चुकी है. धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण सावन माह भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा अर्चना के लिए समर्पित माह है. आपको बता दें कि भगवान विष्णु के योग निंद्रा में होने के कारण समय जगत का पालन भगवान शिव करते हैं और उनकी कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. पुराणों में भगवान शिव की भक्ति में सावन माह के महत्व (Importance of Sawan in Lord Shiva devotion) के बारे में विस्तार से बताया गया है. आइए जानते हैं सावन को क्यों कहा गया श्रावण और इस माह का भगवान शिव की पूजा में इतना महत्व क्यों है…..

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सावन को क्यों कहा गया है ‘श्रावण'

स्कंद पुराण में कहा गया है-

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ:।

श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत:॥

अर्थ- वर्ष के 12 माह में श्रावण माह शिव जी को अत्यंत प्रिय लगता है. इसका माहात्म्य सुनने (श्रवण) योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है.

नारद पुराण में सावन के व्रतों का वर्णन

नारद पुराण में कहा गया है, सोमवार वाले श्रावण शुक्ल प्रतिपदा या श्रावण के प्रथम सोमवार से लेकर साढ़े तीन मास तक सावन सोमवार का व्रत किया जाता है. इस माह में प्रतिदिन सोमेश्वर भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा की जाती है. श्रावण मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को जब थोड़ा दिन शेष रहे तो कच्चा अन्न (जितना दान देना हो) अलग-अलग पात्रों में रखकर जल भर दे. इसके बाद जल निकाल दे. फिर दूसरे दिन सुबह सूर्योदय होने पर विधिवत स्नान करके देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का पूजन करे. उनके आगे नैवेद्य रखें और पहले दिन का धोए हुए अन्न को दान करें. फिर प्रदोष काल में शिव मंदिर जाकर शिवलिंग स्वरूप भगवान शिव की गंध, पुष्प आदि सामग्रियों से पूजा करें और हजार या सौ बार ''पञ्चाक्षरी विद्या ऊं नमः शिवाय'' का जप करें. इसके बाद अपने घर आकर ब्राह्मण को भोजन कराएं और स्वयं भी मौन भाव से भोजन करें. यह 'अन्नव्रत' है, मनुष्यों द्वारा विधिपूर्वक इसका पालन होने पर यह सम्पूर्ण अन्न सम्पत्तियों का उत्पादक और परलोक में सद्गति देने वाला होता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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