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This Article is From Oct 03, 2018

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के विरोध में सड़कों पर उतरे लोग, कहा - अदालत का फैसला अस्वीकार्य

28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रेवश के रास्ते खोल दिए. क्योंकि भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की वजह से अब तक इस मंदिर में औरतों के जाने की मनाही थी.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के विरोध में सड़कों पर उतरे लोग, कहा - अदालत का फैसला अस्वीकार्य
केरल : सबरीमाला मंदिर फैसले के खिलाफ हिंदू संगठनों का प्रदर्शन
नई दिल्ली: 28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रेवश के रास्ते खोल दिए. क्योंकि भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की वजह से अब तक इस मंदिर में औरतों के जाने की मनाही थी. लेकिन कोर्ट के इस फैसले के बावजूद कुछ संगठन इससे सहमत नहीं हैं. इस फैसले के विरोध में विभिन्न हिंदू संगठनों के समर्थकों ने केरल के विभिन्न शहरों की सड़कों पर उतरकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व कांग्रेस विधायक प्रयर गोपालाकृष्णन के नेतृत्व में यह विरोध प्रदर्शन किया गया. उन्होंने कहा कि वे फैसले का विरोध करेंगे, चाहे कुछ भी हो.

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उन्होंने सबरीमाला मंदिर तांत्रिक परिवार के सदस्य राहुल ईश्वर और सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के साथ शहर में रैली निकाली, जिससे यातायात थोड़ी देर के लिए बाधित हुआ. कोच्चि में प्रदर्शनकारियों की पुलिस से हल्की नोकझोंक तब हुई जब पुलिस ने उन्हें यातायात बाधित करने से रोकने का प्रयास किया.

पंडालम में सबसे बड़ा प्रदर्शन देखा गया, जहां पूर्व पंडालम शाही परिवार के सदस्य बड़ी संख्या में पुरुषों और महिलाओं के साथ भजन गाते हुए पंडालम के वेलिए कोयिकल मंदिर की तरफ गए. 

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यह परिवार मंदिर के मामलों में एक अहम भूमिका निभाता है और अदालत के फैसले पर गहरा अंसतोष जता चुका है. सबरीमाला मंदिर की तलहटी में स्थित पंबा शहर में भी रैली निकाली गई.

एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "अदालत का फैसला अस्वीकार्य है क्योंकि प्रत्येक धार्मिक स्थान की अपनी परंपरा है. इसे अदालत के कानून द्वारा नहीं कुचला जा सकता क्योंकि यह श्रद्धालुओं की भावना को आहत करता है." इसी तरह के प्रदर्शन पलक्कड़ में देखे गए. 

शीर्ष अदालत ने 28 सितम्बर को कहा कि भगवान अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध उनके मौलिक अधिकार और समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करता है. अब तक 10 साल से कम उम्र की लड़कियों और 50 साल की उम्र से ज्यादा की महिलाओं को ही पहाड़ी पर स्थित मंदिर में जाने की इजाजत थी. 

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