प्रतीकात्मक चित्र
शोलापुर:
विविधता से परिपूर्ण भारत में भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से कहीं अधिक विविधता यहां के समाज और समुदायों के बीच है। यहां कभी-कभी यह कहना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है कि कौन-सी परंपरा आस्था की श्रेणी में आती है और कौन-सी अंधविश्वास है।
ऐसी ही एक परम्परा है 'अच्छे भाग्य के लिए बच्चों को छत से नीचे फेंकने का रिवाज'। आस्था और विश्वास के नाम पर बच्चों को छत से नीचे फेंकने की यह अजीबोगरीब परंपरा महाराष्ट्र के शोलापुर में देखने को मिलती है। यह परंपरा यहां स्थित बाबा उमर दरगाह से जुड़ी है।
भाग्योदय के लिए बच्चे को फेंकते हैं नीचे
हो सकता है कि यह पढ़कर आप भले ही आश्चर्य करें लेकिन यह सच है। बच्चे और परिवार के 'गुडलक' यानी भाग्योदय के लिए यहां लगभग 50 फीट की ऊंचाई से बच्चे को नीचे फेंक दिया जाता है, जिसे दरगाह की इमारत के नीचे खड़े लोग एक बड़ी चादर में लपक लेते हैं।
यह परंपरा कोई पचास-सौ सालों से नहीं बल्कि लगभग 700 से सालों से बदस्तूर चली आ रही है। लोगों का मानना है कि इससे बच्चा स्वस्थ रहता है, उस पर आफतें नहीं आती हैं। इस प्रथा को केवल मुस्लिमों ही नहीं बल्कि हिन्दूओं ने भी अपनाया है। यह रिवाज ज्यादातर वे लोग अपनाते है जिन्हें इस दरगाह में आने के बाद सन्तान-सुख प्राप्त हुआ होता है।
ऐसी ही एक परम्परा है 'अच्छे भाग्य के लिए बच्चों को छत से नीचे फेंकने का रिवाज'। आस्था और विश्वास के नाम पर बच्चों को छत से नीचे फेंकने की यह अजीबोगरीब परंपरा महाराष्ट्र के शोलापुर में देखने को मिलती है। यह परंपरा यहां स्थित बाबा उमर दरगाह से जुड़ी है।
भाग्योदय के लिए बच्चे को फेंकते हैं नीचे
हो सकता है कि यह पढ़कर आप भले ही आश्चर्य करें लेकिन यह सच है। बच्चे और परिवार के 'गुडलक' यानी भाग्योदय के लिए यहां लगभग 50 फीट की ऊंचाई से बच्चे को नीचे फेंक दिया जाता है, जिसे दरगाह की इमारत के नीचे खड़े लोग एक बड़ी चादर में लपक लेते हैं।
यह परंपरा कोई पचास-सौ सालों से नहीं बल्कि लगभग 700 से सालों से बदस्तूर चली आ रही है। लोगों का मानना है कि इससे बच्चा स्वस्थ रहता है, उस पर आफतें नहीं आती हैं। इस प्रथा को केवल मुस्लिमों ही नहीं बल्कि हिन्दूओं ने भी अपनाया है। यह रिवाज ज्यादातर वे लोग अपनाते है जिन्हें इस दरगाह में आने के बाद सन्तान-सुख प्राप्त हुआ होता है।
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