Durga Puja 2018: नवरात्रियों के आखिरी चार दिनों में धूमधाम से दुर्गा उत्सव मनाया जाता है.
नई दिल्ली:
दुर्गा पूजा (Durga Puja) खासतौर से बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, झारखंड और बिहार में धूमधाम से मनाई जाती है. इन राज्यों में शरद नवरात्रि (Navratri) में षष्ठी से लेकर दशमी तक दुर्गा उत्सव (Durga Utsav) मनाया जाता है. यहां दुर्गा उत्सव को अकालबोधन (Akaal Bodhan), शदियो पूजो, शरदोत्सब, महा पूजो (Maha Pujo), मायेर पूजो, पूजा (Puja) या फिर पूजो (Pujo) भी कहा जाता है. दुर्गा उत्सव के दौरान भव्य पंडाल (Pandal) बनाकर उनमें मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इस दौरान मां की आराधना के अलावा अनेक रंगारंग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
यह भी पढ़ें: सिर्फ वैष्णों देवी ही नहीं, मां दुर्गा के ये 7 मंदिर भी हैं बेहद प्रसिद्ध
दुर्गा पूजा कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर विजयदशमी या दशहरे तक दुर्गा उत्सव मनाया जाता है. इस बार दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर से लेकर 19 अक्टूबर तक है.
दुर्गा उत्सव क्यों मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिशासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
कैसे मनाया जाता है दुर्गा उत्सव का त्योहार?
दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि से एक दिन पहले महालया से होती है. महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों का तर्पण कर उन्हें विदाई दी जाती है. मान्यता है कि महालया के दिन शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं. महालया के बाद वाले सप्ताह को देबी पॉक्ष (Debi-Poksha) कहा जाता है.
षष्ठी के दिन पंडालों में मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक, भगवान गणेश और महिषासुर की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है. षष्ठी के दिन घर की महिलाएं खासकर मांएं अपने बच्चों की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं. सप्तमी के दिन देवी पंडालों की रौनक देखते ही बनती है. इस दिन मां दुर्गा को उनका पसंदीदा भोग लगाया जाता है जिसमें खिचड़ी, पापड़, सब्जियां, बैंगन भाजा और रसगुल्ला शामिल है. अष्टमी के दिन भी देवी मां की आराधना की जाती है और उन्हें कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं. नवमी की रात मायके में दुर्गा मां की आखिरी रात होती है.
इसके बाद दशमी यानी कि दशहरे के दिन सुबह सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां को विसर्जन कर विदाई दी जाती है. दुर्गा उत्सव के दौरान पंडाल परिसर में ही मंच बनाया जाता है जहां रंगारंग कार्यक्रम होत है. अपनी प्रतिभा दिखाने का यह अच्छा मौका होता है. इस दौरान खासकर बच्चों के लिए कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है.
यह भी पढ़ें: नवरात्रि में मां दुर्गा को चढ़ाएं उनका मनपसंद भोग
दुर्गा पूजा की खास बातें
पंडाल: दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल आकर्षण का केंद्र रहते हैं. न सिर्फ बंगाल में बल्कि भारत समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में देवी मां के भव्य पंडाल स्थापित किए जाते हैं. लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंड़ाल (Pandal Hopping) जाते हैं. षष्ठी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है, जबकि सप्तमी को मां के पट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. इस दौरान एक से बढ़कर एक डिजाइन के पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. पंडालों के आसपास मेले भी लगते हैं, जिनमें खाने-पीने के ढेर सारे स्टॉल किसी के मुंह में भी पानी ला सकते हैं.
भोग: मान्यता के अनुसार मायके आईं मां दुर्गा को पूजा के दौरान कई तरह का भोग लगाया जाता है. पंडालों के अलावा लोग घरों में खजूर-गुड़ की खीर, मालपुआ और तरह-तरह की मिठाइयां बनाते हैं.
धुनुची डांस: दुर्गा पूजा में धुनुची डांस न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. एक खास तरह के बर्तन को धुनुची कहा जाता है, जिसमें सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर दुर्गा मां की आरती की जाती है. आरती के दौरान धुनुची के साथ भक्त झूमकर नाचते हैं और कई तरह के करतब भी करते हैं.
विसर्जन: सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विजसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दौरान लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्जित कर देते हैं.
हमारी ओर से आपको दुर्गा पूजा की ढेर सारी शुभकामनाएं.
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दुर्गा पूजा कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर विजयदशमी या दशहरे तक दुर्गा उत्सव मनाया जाता है. इस बार दुर्गा पूजा 15 अक्टूबर से लेकर 19 अक्टूबर तक है.
दुर्गा उत्सव क्यों मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिशासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
कैसे मनाया जाता है दुर्गा उत्सव का त्योहार?
दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि से एक दिन पहले महालया से होती है. महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों का तर्पण कर उन्हें विदाई दी जाती है. मान्यता है कि महालया के दिन शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं. महालया के बाद वाले सप्ताह को देबी पॉक्ष (Debi-Poksha) कहा जाता है.
षष्ठी के दिन पंडालों में मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक, भगवान गणेश और महिषासुर की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है. षष्ठी के दिन घर की महिलाएं खासकर मांएं अपने बच्चों की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं. सप्तमी के दिन देवी पंडालों की रौनक देखते ही बनती है. इस दिन मां दुर्गा को उनका पसंदीदा भोग लगाया जाता है जिसमें खिचड़ी, पापड़, सब्जियां, बैंगन भाजा और रसगुल्ला शामिल है. अष्टमी के दिन भी देवी मां की आराधना की जाती है और उन्हें कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं. नवमी की रात मायके में दुर्गा मां की आखिरी रात होती है.
इसके बाद दशमी यानी कि दशहरे के दिन सुबह सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां को विसर्जन कर विदाई दी जाती है. दुर्गा उत्सव के दौरान पंडाल परिसर में ही मंच बनाया जाता है जहां रंगारंग कार्यक्रम होत है. अपनी प्रतिभा दिखाने का यह अच्छा मौका होता है. इस दौरान खासकर बच्चों के लिए कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है.
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दुर्गा पूजा की खास बातें
पंडाल: दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल आकर्षण का केंद्र रहते हैं. न सिर्फ बंगाल में बल्कि भारत समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में देवी मां के भव्य पंडाल स्थापित किए जाते हैं. लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंड़ाल (Pandal Hopping) जाते हैं. षष्ठी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है, जबकि सप्तमी को मां के पट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. इस दौरान एक से बढ़कर एक डिजाइन के पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. पंडालों के आसपास मेले भी लगते हैं, जिनमें खाने-पीने के ढेर सारे स्टॉल किसी के मुंह में भी पानी ला सकते हैं.
भोग: मान्यता के अनुसार मायके आईं मां दुर्गा को पूजा के दौरान कई तरह का भोग लगाया जाता है. पंडालों के अलावा लोग घरों में खजूर-गुड़ की खीर, मालपुआ और तरह-तरह की मिठाइयां बनाते हैं.
धुनुची डांस: दुर्गा पूजा में धुनुची डांस न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. एक खास तरह के बर्तन को धुनुची कहा जाता है, जिसमें सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर दुर्गा मां की आरती की जाती है. आरती के दौरान धुनुची के साथ भक्त झूमकर नाचते हैं और कई तरह के करतब भी करते हैं.
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सिंदूर खेला: नवरात्रि के 10वें दि यानी कि विजयदशमी को पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करने के बाद उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं. इस दौरान मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है. इसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इस परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है. मान्यता है कि मां दुर्गा की मांग भरकर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाना चाहिए.
विसर्जन: सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विजसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दौरान लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्जित कर देते हैं.
हमारी ओर से आपको दुर्गा पूजा की ढेर सारी शुभकामनाएं.
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