आषाढ़ी एकादशी से श्री हरि विष्णु चार महीनों के लिए निद्रा में चले जाते हैं
नई दिल्ली:
आज देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से लेकर अगले चार महीने तक भगवान विष्णु देवप्रबोधनी तक निद्रा में चले जाते हैं. यही वजह है कि इस दौरान सभी शुभ कार्य रुक जाते हैं. भगवान के सोने की वजह से मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश, नामकरण व उपनयन संस्कार नहीं होते हैं.
कामदा एकादशी 2018: जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा
देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरि शयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी से लेकर अगले चार महीनों तक श्री हरि विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं, जिसे भगवान की योग निद्रा कहा जाता है. यही वजह है कि भगवान गैर-मौजूदगी में किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों की मनाही होती है.
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 47 मिनट से.
एकादशी तिथि समाप्त: 23 जुलाई शाम 4 बजकर 23 मिनट तक.
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है. अगर ऐसा न कर पाएं तो गंगाजल से घर में छिड़काव करना चाहिए. फिर घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उसका पूजन करें. पूजा के बाद व्रत कथा सुनें. आरती कर बाद प्रसाद बांटें.
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से मिलती है पितरों को मुक्ति
आखिर क्यों चार महीने के लिए सो जाते हैं भगवान?
वामन पुराण के मुताबिक असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे. देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें.
भगवान वापन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी. बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया.
पाताल से विदा लेते वक्त भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे. पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है.
कब शुरू होते हैं मांगलिक कार्य?
कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के बाद भगवान नींद से जागते हैं यानी कि पाताल से वापस बैकुंठ धाम पधारते हैं और फिर सभी शुभ कार्यों का आरंभ होता है.
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देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरि शयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी से लेकर अगले चार महीनों तक श्री हरि विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं, जिसे भगवान की योग निद्रा कहा जाता है. यही वजह है कि भगवान गैर-मौजूदगी में किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों की मनाही होती है.
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 47 मिनट से.
एकादशी तिथि समाप्त: 23 जुलाई शाम 4 बजकर 23 मिनट तक.
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है. अगर ऐसा न कर पाएं तो गंगाजल से घर में छिड़काव करना चाहिए. फिर घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उसका पूजन करें. पूजा के बाद व्रत कथा सुनें. आरती कर बाद प्रसाद बांटें.
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से मिलती है पितरों को मुक्ति
आखिर क्यों चार महीने के लिए सो जाते हैं भगवान?
वामन पुराण के मुताबिक असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे. देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें.
भगवान वापन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी. बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया.
पाताल से विदा लेते वक्त भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे. पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है.
कब शुरू होते हैं मांगलिक कार्य?
कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के बाद भगवान नींद से जागते हैं यानी कि पाताल से वापस बैकुंठ धाम पधारते हैं और फिर सभी शुभ कार्यों का आरंभ होता है.
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