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Chhath Puja 2025 Katha: सुख-सौभाग्य का वरदान दिलाने वाली छठ पूजा की कब और कैसे हुई शुरुआत?

Chhath Puja 2025 Ki Kahani: हिंदू धर्म में जिस छठ व्रत को सभी दुखों को दूर करके सुख-समृद्धि दिलाने वाला महाव्रत माना जाता है, उसकी शुरुआत कब हुई? किस-किस ने इस व्रत को विधि-विधान से करके सुख-सौभाग्य को प्राप्त किया, जानने के लिए जरूर पढें ये लेख.

Chhath Puja 2025 Katha: सुख-सौभाग्य का वरदान दिलाने वाली छठ पूजा की कब और कैसे हुई शुरुआत?
Chhath Puja 2025 : संतान का सुख और सुख-समृद्धि दिलाने वाले महापर्व की पावन कथाएं
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Chhath Puja 2025 Popular Mythological Story: सनातन परंपरा में भगवान सूर्य और षष्ठी देवी की पूजा के लिए समर्पित छठ महापर्व का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. इस पावन पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि यानि नहाय खाय से होती है. लोक आस्था से जुड़े इस व्रत के चारों दिन का अपना एक अलग धार्मिक महत्व होता है. हिंदू धर्म में इसे बेहद कठिन व्रत के रूप में माना जाता है. जिसमें व्रत करने वाला व्यक्ति 36 घंटे निर्जल व्रत रखता है. आइए प्रत्यक्ष देवता सूर्य और संतान को सुखी और समृ​द्ध बनाने वाली छठी मैया से जुड़ छठ महाव्रत की उन कथाओं के बारे में जानते हैं, जिसमें इसकी महिमा बताई गई है.

छठ पर्व से जुड़ी कथा - 1

हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम सूर्यवंशी थे. प्रभु श्री राम जब रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटे तो उन्होंने माता सीता के साथ भगवान सूर्य को समर्पित छठ व्रत को विशेष रूप से किया था.

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छठ पर्व से जुड़ी कथा - 2

लोक आस्था के छठ पर्व को महाभारतकाल से भी जोड़कर देखा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार जब पांडव जुएं में अपना सारा राजपाट हार कर वन में भटक रहे थे तब उन्हें तमाम तरह के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को सूर्य साधना से जुड़ा छठ व्रत करने को कहा था. मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान करने के बाद पांडवों को अपना खोया वैभव बाद में प्राप्त हुआ.

छठ पर्व से जुड़ी कथा - 3

हिंदू मान्यता के अनुसार बिन्दुसर तीर्थ में एक महीपाल नाम का वैश्य रहता था, जिसका धर्म और देवी-देवता आदि पर जरा भी विश्वास नहीं था. कहते हैं कि हर समय धर्म का विरोध करने वाले वैश्य ने एक बार सूर्य देवता की मूर्ति के ऐसा घृणित कार्य किया सूर्य देवता ने उस अंधा हो जाने का श्राप दे दिया. आंखों की ज्योति खो देने के बाद उस वैश्य ने इतने दुख झेले कि उसने अंतत: अपना जीवन समाप्त करने की ठान लिया.

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मान्यता जब वह गंगा नदी में अपने प्राणों का अंत करने जा रहा तभी नारद मुनि ने उन्हें रोकते हुए बताया कि यह कष्ट तुम्हे सूर्य देवता का अपमान करने के कारण मिला है, इसलिए तुम उनकी उपासना करो. मान्यता है​ कि इसके बाद वैश्य द्वारा विधि-विधान से उनकी पूजा और व्रत रखने के बाद उसके आंखों की दृष्टि लौ आई और उसके सारे कष्ट दूर हो गये.

छठ पर्व से जुड़ी कथा - 4

मान्यता है कि एक बार प्रियव्रत नाम के राजा ने महर्षि कश्यम से संतान की कामना को पूरा करने वाला उपाय पूंछा. इसके बाद महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्रयेष्टि यज्ञ करने को कहा. मान्यता है कि राजा ने महर्षि की बात को मानकर विधि-विधान से यज्ञ किया, जिसके बाद उसकी रानी गर्भवती हुई लेकिन उसने एक मरे हुए बच्चे को जन्म दिया. इसके बाद राजा समेत पूरी प्रजा शोक में डूब गई. मान्यता है ​कि जब राजा अपने नवजात शिशु का अंतिम संस्कार करने जा ही रहा था तभी षष्ठी देवी ने प्रकट होकर उसके शिशु के मृत शरीर को स्पर्श करके जीवित कर दिया. मान्यता है कि इस घटना के बाद राजा प्रियव्रत ने हर साल छठी मैया के लिए व्रत रखना प्रारंभ कर दिया और बाद में यह लोक आस्था का महापर्व बन गया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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