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This Article is From Jan 18, 2022

Basant Panchami: 2022 में कब है बसंत पंचमी, जानिए इससे जुड़ी ये प्रचलित पौराणिक कथा

बसंत पंचमी के दिन लोग विद्या की देवी सरस्वती की आराधना-उपासना करते हैं. इस बार बंसत पंचमी 5 फरवरी यानी शनिवार के दिन मनाई जाएगी. कहा जाता है कि इसी दिन से बसंत ऋतु का आगमन होता है. आइए जानते हैं बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा क्यों होती हैं. साथ ही इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

Basant Panchami: 2022 में कब है बसंत पंचमी, जानिए इससे जुड़ी ये प्रचलित पौराणिक कथा
Basant Panchami: पढ़ें बसंत पंचमी से जुड़ी यह पौराणिक कथा
नई दिल्ली:

माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी (Basant Panchami) कहा जाता है. बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. ज्ञानदायिनी मां सरस्वती को ज्ञान, वाणी और कला की देवी भी कहा जाता है. बसंत पंचमी को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता हैं. इस बार बंसत पंचमी 5 फरवरी यानी शनिवार के दिन मनाई जाएगी. धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं, तब समस्त देवी-देवताओं ने मां सरस्वती की स्तुति की थी. माना जाता है कि इस स्तुति से ही वेदों की ऋचाएं बनीं और उन्हीं से बसंत राग का निर्माण हुआ. बसंत पंचमी के दिन लोग विद्या की देवी सरस्वती की आराधना-उपासना करते हैं. आइए जानते हैं बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा क्यों होती हैं. साथ ही इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

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बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा

बसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन जगह-जगह सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती ब्रह्माजी के मुख से अवतरित हुई थीं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बसंत पंचमी को पूजा करने से मां सरस्वती जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं.

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बसंत पंचमी की कथा | Katha Of Basant Panchami

शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य की रचना से पहले पृथ्वीलोक पर चारों तरह मौन व्याप्त था. इस बीच किसी भी प्रकार की ध्वनि या झंकार नहीं थी, जिसे देख त्रिदेव आश्चर्य से एक-दूसरे को निहारने लगे. बताया जाता है कि वे सभी सृष्टि की रचना से संतुष्ट नहीं थे. इस बीच त्रिदेव ने विचार किया कि निसंदेह किसी चीज की कमी रह गई है. इस दौरान ब्रह्मा जी ने आराध्य देव शिवजी और विष्णुजी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल अपने अंजलि में भरकर उच्चारण कर पृथ्वी पर छिड़कना शुरू कर दिया. उन्होंने जहां-जहां जल का छिड़काव किया, वहां-वहां कंपन होने लगा. इस बीच एक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ. इन शक्तिरूपी माता के एक हाथ में वीणा, तो दूसरे हाथ से तथास्तु मुद्रा में थी. इसके साथ ही उन्होंने अन्य दो हाथों में पुस्तक और माला धारण कर रखी थी. यह देख त्रिदेव ने देवी को प्रणाम कर वीणा बजाने की प्रार्थना की.

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बताते हैं कि मां के वीणा बजाने से तीनों लोकों में वीणा का मधुरनाद हुआ, जिसे सुन पृथ्वी लोक के समस्त जीव-जंतु और जन-भाव विभोर हो गए. कहा जाता है कि इससे समस्त लोकों में चंचलता आ गई. कहते हैं कि उस समय त्रिदेव ने मां को शारदे और सरस्वती, संगीत की देवी का नाम दिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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