बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन मां सरस्वती (Saraswati) को समर्पित होता है. माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है. बसंत पंचमी (Basant Panchami) को श्री पंचमी (Shri Panchami) और सरस्वती पंचमी (Saraswati Panchami) भी कहा जाता है. इस दिन उत्तर भारत में मां सरस्वती की खास पूजा की जाती है. वहीं, कुछ लोग बसंत पंचमी के दिन प्रेम के देवता कामदेव (Kamadeva) की भी पूजा करते हैं. पूजा-पाठ के अलावा बसंत पंचमी को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है. ऋतुओं का राजा कहे जाने वाले इस मौसम को लेकर कहा जाता है कि इस दिन से ठंड कम होने लग जाती है और हर तरफ हरियाली ही नज़र आती है. वहीं, गांवों में सरसों, चना, जौ, ज्वार और गेंहू की बालियां खिलने लग जाती हैं.
बसंत पंचमी शुभ मुहूर्त (Basant Panchami Shubh Muhurat)
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त (9 फरवरी) - 12:26 से 12:41 तक
बसंत पंचमी शुरू - 12:25, 9 फरवरी 2019
बसंत पंचमी समाप्त - 02:08, 10 फरवरी 2019
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बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. इस दिन से कड़कड़ाती ठंड खत्म होने लग जाती है और एक बार फिर मौसम सुहावना होने लग जाता है. हर तरफ हरियाली, पेड़-पौधों पर फूल, नई पत्तियां और कलियां खिलने लग जाती हैं. इस नज़ारे को गुलाबी ठंड और भी खास बना देती है. वहीं, हिंदू मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है. इस दिन उनकी विशेष पूजा होती है और पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. साल 2019 की बसंत पंचमी और भी खास है, क्योंकि इस दिन प्रयागराज में चल रहे कुंभ में शाही स्नान होगा. बसंत पंचमी के दिन होने वाले इस स्नान में करोड़ों लोग त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने आएंगे. इतना ही नहीं, उत्तर भारत की कई जगहों पर बंसत मेला (Basant Mela) भी लगता है.
बसंत पंचमी की कथा या बसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है सरस्वती की पूजा?
हिंदु पौराणिक कथाओं में प्रचलित एक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने संसार की रचना की. उन्होंने पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मनुष्य बनाए. लेकिन उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई. इसीलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा. जैसे वीणा बजी ब्रह्मा जी की बनाई हर चीज़ में स्वर आ गया. बहते पानी की धारा में आवाज़ आई, हवा सरसराहट करने लगा, जीव-जन्तु में स्वर आने लगा, पक्षी चहचहाने लगे. तभी ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया. वह दिन बसंत पंचमी का था. इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी.
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संरस्वती मां का वंदना मंत्र
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
कैसे करें मां सरस्वती की पूजा?
स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में मां सरस्वती की पूजा के साथ-साथ घरों में भी यह पूजी जाती हैं. अगर आप घर में मां सरस्वती की पूजा करें तो इन बातों का ध्यान रखें.
1. सुबह नहाकर मां सरस्वती को पीले फूल अर्पित करें
2. पूजा के समय मां सरस्वती की वंदना करें.
3. पूजा स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबें रखें, और बच्चों को पूजा में शामिल करें.
4. इस दिन पीले कपड़े पहनना शुभ माना जाता है, पूजा के वक्त या फिर पूरे दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें.
5. बच्चों को पुस्तकें तोहफे में दें.
6. पीले चावल या पीले रंग का भोजन करें.
बसंत पंचमी के दिन कामदेव की पूजा
कामदेव को प्रेम और काम का देवता माना गया है. इन्हें रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान और पुष्पधंव नामों से जाना जाता है. कुछ लोग बसंत पंचमी के दिन कामदेव को भी पूजते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार बसंत कामदेव के मित्र हैं, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है. बसंत ऋतु का सबसे सुहावना मौसम माना गया है और मान्यता है कि कामदेव ही इस मौसम को रूमानी कर देते हैं.
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