वृंदावन के इन तीन मंदिरों में दिन में किया जाता है कृष्ण अभिषेक

बताया जाता है कि चूंकि ब्रज में ठाकुरजी की बाल छवि की ही सेवा-पूजा होती है और माना जाता है कि वे तो उनके बच्चे जैसे हैं, बाल-गोपाल हैं. इसलिए यदि उन्हें रात्रि में सोते से जगाकर अभिषेक किया जाएगा तो माता यशोदा को ऐसा करना भला नहीं लगेगा.`

वृंदावन के इन तीन मंदिरों में दिन में किया जाता है कृष्ण अभिषेक

भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में होने के चलते जहां सारी दुनिया में उनका जन्माभिषेक भले ही भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात में किया जाता है किंतु वृन्दावन में तीन मंदिर ऐसे हैं, जहां ठाकुरजी का अभिषेक दिन में ही किया जाता है.
 
इसके पीछे बताया जाता है कि चूंकि ब्रज में ठाकुरजी की बाल छवि की ही सेवा-पूजा होती है और माना जाता है कि वे तो उनके बच्चे जैसे हैं, बाल-गोपाल हैं. इसलिए यदि उन्हें रात्रि में सोते से जगाकर अभिषेक किया जाएगा तो माता यशोदा को ऐसा करना भला नहीं लगेगा.
 
इन तीन मंदिरों में प्रमुख मंदिर, चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट द्वारा वृन्दावन में स्थापित ठा. राधारमण लाल मंदिर में ठाकुरजी का अभिषेक 1542 ईस्वी में इस मंदिर की स्थापना से ही चली आ रही परंपरा के अनुसार दिन में ही किया जाता है.
 
पीढ़ी-दर-पीढ़ी सेवा करते आ रहे वर्तमान गोस्वामियों में से एक आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी ने कहा, ‘शालिग्राम के रूप में स्वयं प्रकट ठाकुरजी की प्रतिमा का अभिषेक दूध, घी, बूरा, दही, शहद आदि पंचामृत एवं दो दर्जन से अधिक जड़ी-बूटियों के साथ मंगलवार प्रातः 9 से 12 बजे तक कराया गया.’ उन्होंने कहा, ‘‘अभिषेक की परंपरा मंदिर की सेवा पुस्तिका में वर्णित शास्त्रोक्त विधि के अनुसार ही की जाती है जिसमें करीब 2100 लीटर दूध एवं अन्य प्रभूत सामग्री का प्रयोग किया जाता है.’ चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त लखनऊ के दो भाइयों शाह कुंदन लाल एवं शाह फुंदन लाल ने वृन्दावन आकर पहले तो ठा. राधारमण मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और फिर एक अलग भव्य मंदिर बनवाया, जिसमें उन्होंने भी ठा. राधारमण के नाम से ही ठाकुरजी की प्राण-प्रतिष्ठा की.
 
हालांकि, इस मंदिर के मकराना पत्थर से बने बेजोड़ शिल्प के कारण इसे टेडे़ खंभों वाला अथवा शाह बिहारी मंदिर भी कहा जाता है. इसी मंदिर में एक ऐसा कमरा भी उन्होंने बनवाया जो केवल बसंत पंचमी के दिन ही खुलता है.
 
मंदिर स्थापकों की चैथी पीढ़ी के वंशज प्रशांत शाह बताते हैं कि इस मंदिर में भी दिन में ही ठाकुरजी का अभिषेक करने की परंपरा है जो पूरे विधि-विधान के साथ निभाई जाती है. शायद इसीलिए श्रद्धालु इसे छोटा राधारमण मंदिर भी पुकारते हैं.
 
इन दो मंदिरों के अलावा चैतन्य महाप्रभु के एक अन्य शिष्य जीव गोस्वामी ने ठा. राधा दामोदर मंदिर के नाम से माधव गौड़ीय सम्प्रदाय के एक अन्य मंदिर की स्थापना 1542 ईस्वी में की थी. जीव गोस्वामी के काल से ही यहां कृष्ण दास और फिर उनके वंशज सेवा करते आ रहे हैं.


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