
Russia-Ukraine War 3 Year: 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को तीन साल पूरे हो रहे हैं. इन बीच यूक्रेन के करीब बीस फीसदी हिस्से पर रूस का कब्ज़ा हो चुका है. पूरी दुनिया युद्ध के इस मोर्चे पर भी शांति की संभावनाएं तलाश रही हैं. लेकिन इस शांति की क़ीमत क्या होगी? कौन चुकाएगा? कोई नहीं जानता. क्या यूक्रेन को इस शांति की कीमत रूस के कब्ज़े वाले अपने हिस्से को भुलाकर देनी होगी, जिसके लिए वो किसी हाल में तैयार नहीं है. इस बीच अमेरिका की सत्ता में आए डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने युद्ध को रोकने की दिशा में जो कदम उठाए हैं, उनसे दुनिया में खलबली मच गई है.
सऊदी अरब बैठक में खुद यूक्रेन अभी तक शामिल नहीं
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर लंबी बातचीत के बाद ट्रंप सऊदी अरब की मध्यस्थता में रूस के साथ वार्ता की शुरुआत कर रहे हैं. लेकिन ख़ास बात ये है कि यूक्रेन की किस्मत तय करने वाली इस वार्ता का ख़ुद यूक्रेन अभी तक हिस्सा नहीं है. ना ही वो यूरोपीय देश इसमें शामिल हैं, जो लगातार यूक्रेन के पीछे खड़े रहे हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की साफ़ कर चुके हैं कि वो ऐसे किसी समझौते को नहीं मानेंगे जिसका यूक्रेन हिस्सा नहीं होगा.

यूक्रेन की किस्मत का फैसला सऊदी अरब की बैठक में होगा. लेकिन हैरत की बात यह है कि इस बैठक में यूक्रेन अभी तक खुद शामिल नहीं है.
अमेरिका और रूस के नेता पहुंच चुके सऊदी अरब
इस बीच अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो, नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र माइक वॉल्ट्ज़ और पश्चिम एशिया के लिए विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ सऊदी अरब पहुंच चुके हैं. बातचीत में शामिल होने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव और पुतिन के विदेश मामलों के सलाहकार यूरी उषाकोव भी सऊदी अरब पहुंच रहे हैं. रूस और अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों के बीच बीते कई सालों में ये सबसे उच्च स्तरीय बैठक होगी.
ट्रंप की नई रणनीति से यूक्रेन की कई आशंकाएं
ये बातचीत अगर सकारात्मक दिशा में बढ़ती है तो इससे डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन के बीच सीधी बैठक की भूमिका तैयार होगी. सऊदी अरब का कहना है कि वो इस बैठक में एक मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है. लेकिन ट्रंप के तहत अमेरिका की बदली रणनीति से यूक्रेन को इस बैठक से कई आशंकाएं हैं.
रूस-यूक्रेन युद्धविराम के लिए यूक्रेन की शर्त
युद्धविराम के लिए यूक्रेन की पहली शर्त यह है कि उनके देश की सीमाएं 2014 से पहले की स्थिति में बहाल की जाएं. जब रूस ने उस पर पहली बार आक्रमण किया था और क्रीमिया पर कब्ज़ा किया था. लेकिन हाल ही में अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसथ ने इसे य़थार्थ से परे बताया था. यही वजह है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की इस बैठक के संभावित नतीजों को लेकर काफ़ी चिंता में हैं.
ट्रंप बोले- यूक्रेन बातचीत का हिस्सा होगा
रविवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यूक्रेन बातचीत का हिस्सा होगा. लेकिन ये साफ़ नहीं है कि यूक्रेन को किस समय शांति वार्ता में शामिल किया जाएगा. हालांकि ट्रंप प्रशासन ट्रैक टू डिप्लोमैसी के तहत रूस और यूक्रेन के लिए अपने दूत जोसेफ कीथ केलॉग को इस हफ़्ते यूक्रेन की राजधानी कीव भेज रहा है.
ट्रंप की जल्दबाजी का फायदा रूस को हो सकता है
हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ये संकेत दे चुके हैं कि अगर बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ती हैं तो यूक्रेन और यूरोप को इनमें शामिल किया जाएगा. यूरोपीय देशों को चिंता इस बात की है कि युद्धविराम के लिए डोनाल्ड ट्रंप की जल्दबाज़ी का फ़ायदा रूस को हो सकता है और उसे यूक्रेन की क़ीमत पर काफ़ी रियायत मिल सकती हैं.

सऊदी अरब में होने वाली बैठक से इतर पेरिस में यूरोपीय देशों ने एक अहम बैठक बुलाई है.
यूरोपीय देशों ने पेरिस में बुलाई सुरक्षा बैठक
यही वजह है कि प्रमुख यूरोपीय देशों ने भी तुरंत पेरिस में एक सुरक्षा बैठक बुला ली. इस बैठक में सैन्य ताक़त में मज़बूत ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, स्पेन और डेनमार्क को ही बुलाया गया. इसके अलावा यूरोपियन यूनियन काउंसिल के अध्यक्ष और नाटो के महासचिव को बैठक में बुलाया गया.
अमेरिका दूसरों को मामले में खुद को उलझाना नहीं चाहता
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ये स्पष्ट कर चुके हैं कि अमेरिका अब दूसरे देशों के मामलों में ख़ुद को उलझाना नहीं चाहेगा. नाटो के तहत पूरे यूरोप की सुरक्षा का ठेका भी ट्रंप उठाना नहीं चाहते. वो स्पष्ट कर चुके हैं कि यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा के लिए ख़ुद ही तैयार होना होगा. नाटो के तहत अपना खर्च बढ़ाना होगा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही पूरा यूरोप मुख्य तौर पर अमेरिका द्वारा मुहैया कराए गए सुरक्षा ढांचे के भरोसे डटा रहा है.
पेरिस में हो रही यूरोपीय देशों की बैठक के 3 मक़सद
- यूक्रेन को ये आश्वासन देना कि वो अकेला नहीं है, यूरोप उसके साथ खड़ा है. यूरोप को सिर्फ़ सैन्य मदद ही नहीं आर्थिक मदद की भी दरकार है.
- अमेरिका को संदेश देना कि यूरोप अपनी सुरक्षा के लिए ख़ुद भी तैयार है.
- रूस को संदेश देने की कोशिश होगी कि अगर युद्धविराम होता है तो उसे तोड़ने पर रूस को सिर्फ़ यूक्रेन ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप से भिड़ना होगा.
अमेरिका के बीच यूरोपीय देशों की चुनौतियां बड़ी
हालांकि यूरोपीय देशों के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं. सवाल ये है कि क्या यूक्रेन के मुद्दे पर दबाव में आए यूरोप के देश आपसी राजनीतिक और आर्थिक मतभेद भुलाकर साथ आने को तैयार होंगे. क्या यूक्रेन की रक्षा के लिए अमेरिका के बगैर भी मिलकर आगे बढ़ पाएंगे. कौन सा देश कितनी सेनाएं भेजेगा.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर ने कहा कि उनका देश यूक्रेन की रक्षा के लिए अपनी सेनाएं ज़मीन पर उतारने को तैयार है. लेकिन बाकी देश कितने तैयार हैं. यूरोप के कई देशों में जनता यूक्रेन के लिए अपने टैक्स का पैसा देने को लेकर एक राय नहीं दिख रही.
अमेरिका के बिना यूक्रेन जंग में कहां तक टिक सकेगा
जब तक यूरोप की ओर से कोई पुख़्ता आश्वासन ज़मीन पर नहीं उतर जाता यूक्रेन की सबसे बड़ी चिंता ये है कि अमेरिका के बिना वो कितनी देर तक रूस के सामने टिक पाएगा. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने बीते शुक्रवार को कहा कि अमेरिका के सहयोग के बिना रूस के हमलों के सामने यूक्रेन के टिके रहने की संभावना बहुत ही कम हो जाएगी.
जेलेंस्की खुद मान चुके- अमेरिका के बिना यह बहुत मुश्किल
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने इस बाबत जो कहा वो अपने आप में बड़ी बात है. उन्होंने कहा- Probably it will be very, very, very difficult. इससे ही अंदाज़ा लग सकता है कि ज़ेलेंस्की की चिंताएं कितनी बड़ी हैं, जो उनके चेहरे और आंखों पर हर समय नज़र आती हैं. यही नहीं वो इस बात से भी चिंतित हैं कि अमेरिका कह चुका है कि यूक्रेन नाटो में शामिल होने की बात भूल जाए.
यूक्रेन को गंवाना पड़ सकता है अपना 20 फीसदी इलाका
ऊपर से अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ का ताज़ा रुख़ बता रहा है कि यूक्रेन पर युद्धविराम थोपा जा सकता है. यूक्रेन पर अपने उस इलाके की बलि देने का दबाव बनाया जा सकता है जो रूस के कब्ज़े में है. रूस अब तक यूक्रेन के क़रीब 20 फीसदी इलाके पर कब्ज़ा कर चुका है.
इस वक्त क्या है रूस और यूक्रेन की सीमाओं की वस्तुस्थिति

रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल बाद नक्शे से समझिए अभी के हालात.
सोवियत संघ के विघटन के बाद अलग देश बना था यूक्रेन
1991 में जब तत्कालीन सोवियत संघ का विघटन हुआ तो एक देश के तौर पर अलग हुए यूक्रेन की सीमाएं भी तय हुईं. यूक्रेन के उत्तर में रूस का क़रीबी मित्र देश बेलारूस है, पश्चिम की ओर पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी, दक्षिण की ओर रोमानिया और मॉलदोवा हैं. पूर्व की ओर विशाल रूस है. समय बीतने के साथ यूक्रेन के साथ रूस के संबंध ख़राब होते गए.
क्रीमिया को हासिल करना यूक्रेन के युद्ध का बड़ा मकसद
व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में रूस ने 20 फरवरी 2014 को पहली बार यूक्रेन पर आक्रमण किया और क्रीमिया पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. क्रीमिया यूक्रेन के दक्षिण में एक प्रायद्वीप है. हालांकि आज तक क्रीमिया पर रूस के आधिपत्य को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति नहीं मिली है. यूक्रेन की सरकार कहती रही है कि बातचीत या फिर युद्ध से क्रीमिया को फिर से हासिल करना युद्ध का उसका सबसे अहम लक्ष्य है.
एक्सपर्ट का दावा- क्रीमिया को वापस हासिल करना संभव नहीं
कई सैन्य जानकार मानते हैं कि रूस की सैन्य ताक़त को देखते हुए क्रीमिया को वापस हासिल करना यूक्रेन के लिए अब संभव नहीं है. यूक्रेन को अभी तक इस दिशा में कोई कामयाबी भी नहीं मिल पाई है. 2014 के आक्रमण के दौरान रूस की सेनाओं और उनके समर्थन वाले लड़ाकों ने पूर्वी यूक्रेन के डोनबास इलाके के भी कुछ हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था. डोनबास के दो प्रांतों डोनेट्स्क और लुहांस्क की राजधानियों समेत बड़े इलाके पर भी रूस ने कब्ज़ा कर लिया था. तब से ये शहर रूस के ही कब्ज़े में हैं.
24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर नए सिरे से हमला कर दिया किया. रूस की सेनाएं यूक्रेन की राजधानी कीव पर तो कब्ज़ा नहीं कर पाईं लेकिन डोनेट्स्क, लुहांस्क के कई और इलाके उनके कब्ज़े में आ गए. इनमें मारियोपोल और Bakhmut शामिल हैं.

नक्शे से समझिए रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल बाद यूक्रेन ने अपना कितना क्षेत्रफल खोया है.
नक्शे से समझिए रूस ने यूक्रेन के कितने हिस्से पर जमाया कब्जा
नक्शे में आप और साफ़ तरीके से देख सकते हैं कि यूक्रेन के कितने हिस्से पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है. Institute for the study of war द्वारा जारी इस ताज़ा नक्शे में गुलाबी रंग से जितना इलाका आप देख रहे हैं, वो यूक्रेन का वो इलाका है जिस पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है. इसमें दक्षिण में क्रीमिया से लेकर खेरसों, जैपोरिझिया, डोनेट्स्क का बड़ा इलाका और लुहांस्क का तो पूरा इलाका रूस के कब्ज़े में है. बीते एक साल में यूक्रेन के साथ रूस की सबसे ख़तरनाक लड़ाइयां डोनेट्स्क इलाके में हुईं.
कुर्स्क इलाके में यूक्रेन को मिली है कामयाबी
इसके ऊपर यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव के उत्तर में भी एक बड़ा इलाका रूस के कब्ज़े में है. रूस अब यूक्रेन के क़रीब 20% इलाके पर कब्ज़ा जमाए हुए है. अजोव सागर पर उसका पूरी तरह से नियंत्रण हो गया है. उधर यूक्रेन को एक बड़ी कामयाबी अपने उत्तर पूर्व में रूस के कुर्स्क इलाके में ही मिल पाई है जिसका एक छोटा सा हिस्सा अब उसके कब्ज़े में है.
पुतिन की यूक्रेन से क्या है नाराजगी
सवाल ये है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन से ऐसी क्या नाराज़गी है. इसके लिए हमें इतिहास में कुछ पीछे जाना होगा. 1991 में तत्कालीन सोवियत संघ का जब विघटन हुआ तो यूक्रेन अलग देश बना. सोवियत संघ में रहते हुए यूक्रेन बड़ी आबादी वाला और ताक़तवर गणराज्य था. यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूं उत्पादकों में से एक था और उसे यूरोप का ब्रेड बास्केट कहा जाता था.

नाटो के गठन के बाद अपनी सुरक्षा को लेकर रूस हमेशा चिंतिंत रहता है.
नाटो गठन के बाद रूस ने सुरक्षा के लिए तेज की मुहिम
विघटन से पहले सोवियत संघ और विघटन के बाद रूस की नज़र लगातार अपने पश्चिमी पड़ोसी देशों की ओर रही. इसकी वजह थी 1949 में अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा बनाया गया संगठन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन- नाटो. नाटो का गठन सोवियत संघ के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों द्वारा अपनी सामूहिक सुरक्षा के मक़सद से किया गया था. किसी एक नाटो सदस्य देश पर हमला पूरे नाटो पर हमला माना गया. रूस को हमेशा ये चिंता सताती रही कि नाटो का विस्तार उसके पड़ोस तक न हो जाए.
90 के दशक में यूरोप में तीन तरह के देश थे
लेकिन वही होता रहा जिसकी रूस को आशंका थी. 90 के दशक में यूरोप में तीन तरह के देश थे. नीले रंग से नाटो के सदस्य देश, गाढ़े लाल रंग से सोवियत संघ और गुलाबी रंग से रूस के प्रभुत्व वाले वारसॉ पैक्ट में शामिल देश. तब तक सोवियत संघ और नाटो देशों के बीच कई देश थे. जिन्हें एक तरह से सोवियत संघ का आयरन कर्टेन यानी लोहे की दीवार माना जाता था. लेकिन फिर दुनिया में परिस्थितियां बदलने लगीं.
1989 से 2009 तक ऐसे बदलता रहा स्वरूप
1989 में जर्मनी का एकीकरण हुआ. 1991 के अंत में सोवियत संघ का विघटन हो गया. रूस के प्रभुत्व वाले वारसॉ पैक्ट में शामिल रहे कई देश नाटो में शामिल हो गए. 1999 में चेक रिपब्लिक, हंगरी और पोलैंड नाटो में शामिल हुए. फिर 2004 में बुल्गारिया, रोमानिया, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया के अलावा सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन बाल्टिक देश लात्विया, लिथुआनिया और एस्टोनिया भी नाटो में शामिल हो गए. 2009 में क्रोएशिया और अल्बानिया भी नाटो का हिस्सा बन गए.
नाटो की मंशा पर रूस को हमेशा शक
इस सबके कारण रूस को अपनी सुरक्षा की चिंता बढ़ गई. उसे नाटो की मंशा पर हमेशा शक़ रहा. ऐसे में जब रूस के पड़ोसी देश यूक्रेन ने नाटो का हिस्सा बनने की मंशा ज़ाहिर की तो रूस के धैर्य की सीमा टूट गई. 2014 में जब यूक्रेन में जनता के विद्रोह के बाद रूस समर्थक राष्ट्रपति को उखाड़ फेंका गया, यूक्रेन ने पश्चिमी देशों से सैन्य प्रशिक्षण और नाटो में शामिल होने की मांग की तो रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. रूस की ये भी शिकायत थी कि यूक्रेन में रहने वाले रूसियों और रूसी भाषा बोलने वालों का उत्पीड़न हो रहा है.
रूस ने पहले क्रीमिया पर किया कब्जा
ऐसे में रूस ने सबसे पहले क्रीमिया पर कब्ज़ा किया. उसी समय डोनबास के भी कुछ इलाकों पर रूस ने कब्ज़ा किया. फरवरी 2022 में रूस ने बाकी इलाकों पर हमला कर रही सही कसर भी पूरी कर दी. उसके बाद से जो हो रहा है, उसने पूरी दुनिया को परेशान कर दिया है. इस बीच स्वीडन और फिनलैंड ने भी नाटो का सदस्य बनने की मंशा ज़ाहिर की है हालांकि नाटो में शामिल तुर्की इसका विरोध कर रहा है.
यूक्रेन की तरह ही फिनलैंड भी रूस का पड़ोसी
यूक्रेन की तरह फिनलैंड की भी काफ़ी लंबी सीमा रूस से लगती है. कई लोग शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि एक दौर में दुनिया में परमाणु हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा जखीरा यूक्रेन के ही पास था. लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और रूस द्वारा कुछ सुरक्षा आश्वासन मिलने के आधार पर 1994 में यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियारों का जखीरा निष्क्रिय करने के लिए रूस को सौंप दिया. ये हथियार आज अगर यूक्रेन के पास होते तो शायद स्थिति कुछ और होती.
क़रीब तीन साल से लगातार चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध की दोनों ही देशों को अब तक भयानक क़ीमत चुकानी पड़ी है. युद्ध में किस देश के कितने सैनिक हताहत हुए इसे लेकर कई तरह के दावे और प्रतिदावे हैं लेकिन दोनों ही देशों द्वारा इसकी पुख़्ता जानकारी नहीं दी गई.
रूस-यूक्रेन वॉर में अभी तक यूक्रेन के कितने सैनिक मारे गए
रविवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने अमेरिका के न्यूज़ चैनल NBC को बताया कि युद्ध में अब तक यूक्रेन के 46 हज़ार से ज़्यादा सैनिक मारे गए हैं और 3 लाख 80 हज़ार सैनिक घायल हुए हैं. लेकिन फ्रांस 24 डॉट कॉम ने यूक्रेन के एक युद्ध संवाददाता यूरी बुतुसोव ने बीते दिसंबर में सैनिक सूत्रों के हवाले से बताया कि यूक्रेन के क़रीब 70 हज़ार सैनिक अभी तक मारे गए हैं और 35 हज़ार लापता हैं. पश्चिमी देशों का मीडिया यूक्रेन के मारे गए सैनिकों की तादाद 50 हज़ार से एक लाख के बीच बताता रहा है.
सितंबर 2022 तक रूस ने 6 हजार सैनिक मारे जाने की बात कही थी
उधर रूस ने सितंबर 2022 के बाद से अपने मारे गए सैनिकों की तादाद की जानकारी नहीं दी है. सितंबर 2022 तक रूस ने अपने छह हज़ार सैनिकों के मारे जाने की जानकारी दी थी. हालांकि जानकार मानते हैं कि रूस ने असलियत से काफ़ी कम संख्या बताई है. रूस की वेबसाइट मीडियाज़ोना और बीबीसी की रूसी सेवा के मुताबिक उन्होंने रूस के कम से कम 91 हज़ार सैनिकों के नामों की पहचान की है जो युद्ध में मारे गए हैं.
और असली संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है. ऊपर से रूस की ओर से लड़ने वाले उत्तर कोरिया के कई सैनिक भी अब तक मारे जा चुके हैं. दक्षिण कोरिया के मुताबिक मारे गए उत्तर कोरियाई सैनिकों की संख्या 1,100 है जबकि यूक्रेन का दावा है कि क़रीब तीन हज़ार उत्तर कोरियाई सैनिक मारे जा चुके हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध में अभी तक कितने आम आदमी मारे गए
युद्ध में सिर्फ़ सैनिक ही नहीं मरते, आम जनता भी मारी जाती है. यूक्रेन द्वारा आम जनहानि की कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई है लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निगरानी मिशन के मुताबिक यूक्रेन में 12 हज़ार 500 आम नागरिक मारे गए हैं और क़रीब 28 हज़ार 400 लोग घायल हुए हैं.
जानकारों के मुताबिक 2022 में यूक्रेन के मारिओपोल इलाके में रूस के कब्ज़े के दौरान ही हजा़रों आम लोग मारे गए थे. ख़ुद यूक्रेन के अधिकारियों ने मारे गए नागरिकों की संख्या 20 हज़ार से 80 हज़ार तक बताई थी. लेकिन यूक्रेन सरकार के मुताबिक आम नागरिकों के हताहतों की संख्या तभी ठीक से पता चल पाएगी जब रूस के कब्ज़े वाले इलाकों में जाने का मौका मिले.यूक्रेन को आशंका है कि इन इलाकों में आम नागरिकों को बड़े पैमाने पर एक साथ दफ़नाया गया है.
रेड क्रॉस दोनों ओर से 50 हजार लापता लोगों पर कर रही काम
उधर रूस ने भी युद्ध में अपने नागरिकों के मारे जाने की संख्या नहीं बताई है. जानकारों के मुताबिक रूस के सीमावर्ती इलाके कुर्स्क में क़रीब साढ़े तीन सौ लोगों की यूक्रेन के हमले में मौत हुई है. कुर्स्क का एक छोटा इलाका यूक्रेन के कब्ज़े में है. International Committee of the Red Cross ने बताया कि वो रूस और यूक्रेन दोनों ही ओर क़रीब 50 हज़ार लापता लोगों की फाइल पर काम कर रहा है.
रेड क्रॉस के मुताबिक ये संख्या भी वास्तविक संख्या से काफ़ी कम ही होगी. उधर यूक्रेन सरकार ने फरवरी 2025 तक 63 हज़ार नामों की लिस्ट तैयार की है. इस बीच रूस के रक्षा उप मंत्री ने बीते नवंबर में मॉस्को में एक सरकारी बैठक में कहा था कि रूस सरकार को युद्ध में लापता सैनिकों के परिवारों की ओर से DNA टेस्ट कराने की 48 हजार मांगें आई हैं.
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