
सेहत एक ऐसा मसला है जिस पर हर रोज़ ध्यान दिया जाना चाहिए. सुबह-शाम सैर करते, कसरत और योग करते, मैदानों में खेलते लोगों को देखकर ये तसल्ली होती है कि करोड़ों लोग हैं जिन्हें अपनी सेहत का ध्यान है. दरअसल लोगों की सेहत का बेहतर होना देश की सेहत का भी बेहतर होना है. लेकिन अफ़सोस ये है कि देश की ज़्यादा बड़ी आबादी अपनी सेहत को लेकर जागरूक नहीं है. कई बार तो ऐसी घटनाएं सामने आ जाती हैं कि सब हैरान रह जाते हैं. कोरोना के बाद तो ऐसी घटनाएं कई बार सामने आईं जब किसी सामान्य से और कई बार तो अच्छे सेहतमंद दिखने वाले व्यक्ति ने अचानक दम तोड़ दिया.
फरवरी में विदिशा में एक महिला को अचानक डांस करते करते हार्ट अटैक आ गया. ऐसी ही एक तस्वीर महाराष्ट्र से भी सामने आई जहां 20 साल की एक छात्रा स्कूल में स्पीच देते देते गिर गई और उसकी जान चली गई. पिछले ही दिनों 3 अप्रैल को अपनी पत्नी के साथ डांस कर रहा एक कारोबारी अचानक गिर पड़ा और उसकी जान चली गई. इन सभी मामलों के पीछे क्या कारण हैं, ये जांच के विषय हैं और जांच हो भी रही होगी.
सेहत को लेकर उठ रहे हैं गंभीर सवाल
लेकिन भारत की जनता की सेहत को लेकर गंभीर सवाल बने हुए हैं. विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर हम इसी आबादी को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली बीमारियों की पड़ताल करेंगे. जैसे कैंसर, दिल की बीमारियां, डायबिटीज़, मोटापा, हाइपरटेंशन और ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी ऐसी बीमारियां जो देश में 80% से ज़्यादा मौतों के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसी दिशा में शुरुआत करते हैं हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर से.

हाई ब्लड प्रेशर के साथ सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि इसके कोई symptoms या लक्षण तब तक स्पष्ट नज़र नहीं आते जब तक ये बहुत ज़्यादा न बढ़ जाए. कई लोगों को हाइपरटेंशन का तभी पता चलता है जब वो किसी और बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल जाएं. लेकिन ज़्यादा चिंता की बात ये है कि हाइपरटेंशन का पता चलने के बाद भी कई लोग उसकी दवा लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाते. उन्हें लगता है कि वो बिलकुल ठीक हैं जबकि हाइपरटेंशन एक साइलेंट किलर है. जब तक उससे जुड़ी जटिलताएं सामने न आएं तब तक उसका अहसास भी नहीं होता. इससे जुड़ी दवाएं आसानी से उपलब्ध हैं और बहुत महंगी नहीं हैं और दवा लगातार लेनी होती है और कई लोग यहीं लापरवाही करते हैं. इस लापरवाही का नतीजा क्या होता है ये हम आपको बताते हैं...
- पांचवें National Family Health Survey (NFHS-5) के मुताबिक भारत में 15 साल से ऊपर का हर पांचवां व्यक्ति हाइपरटेंशन की चपेट में है...
- महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों की हालत ज़्यादा ख़राब है... 15 साल से ऊपर के 24.1% पुरुष यानी लगभग हर चौथा पुरुष हाइपरटेंशन की चपेट में है जबकि 21.2% महिलाएं हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर से जूझ रही हैं...
- उम्र बढ़ने के साथ हाइपरटेंशन का दायरा बढ़ रहा है... साठ साल और उससे ऊपर के क़रीब आधे यानी 48.4% लोग हाइपरटेंशन से जूझ रहे हैं...
- शहरी इलाकों में हाइपरटेंशन की मार ज़्यादा गहरी है... शहरी इलाकों में हर चौथा व्यक्ति यानी 25% लोग हाई ब्लड प्रेशर से जूझ रहे हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में ये थोड़ा कम यानी 21.4% है...
- इससे ये साफ़ है कि हाइपरटेंशन की मार से कोई बचा नहीं है...
- ग्राफिक्स आउट
- हाइपरटेंशन दुनिया भर में अकाल मौत का एक बड़ा कारण है... मोटापे के शिकार लोगों के हाइपरटेंशन की चपेट में आने की आशंका ज़्यादा रहती है... बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर दिल की बीमारियों जैसे हार्ट अटैक और स्ट्रोक की एक बड़ी वजह है... इसके अलावा हाइपरटेंशन के कारण दिमाग़ और किडनी से लेकर आंखों तक की तमाम तकलीफ़ें होने की आशंका रहती है...पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाइपरटेंशन के वैश्विक असर पर अपनी पहली रिपोर्ट में कहा था कि भारत में 2040 तक भारत में 46 लाख लोगों की मौतों को रोका जा सकता है अगर हाइपरटेंशन से ग्रस्त आधे लोग अपने ब्लड प्रेशर को काबू में रखें...

WHO का क्या कहना है?
WHO द्वारा 2024 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में क़रीब 18 करोड़ 83 लाख लोगों को हाइपरटेंशन है लेकिन इनमें से सिर्फ़ 37% में ही इसकी पहचान हो सकी है. रिपोर्ट के मुताबिक हाइपरटेंशन से पीड़ित सिर्फ़ 30% लोग ही इसका इलाज करते हैं... और सिर्फ़ 15% लोग ही अपने ब्लड प्रेशर को काबू में रख पाते हैं.
WHO की रिपोर्ट कहती है कि अगर हाइपरटेंशन से पीड़ित आधी जनता का भी अगर इलाज हो जाए तो देश में दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों में 46 लाख मौतों को रोका जा सकता है.हाई ब्लड प्रेशर एक साइलेंट किलर है जो धीमे धीमे किसी को मौत की ओर धकेलता है... अनियंत्रित हाइपरटेंशन देश में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ जैसे हार्ट अटैक और हार्ट स्ट्रोक से होने वाली 52% मौतों के लिए ज़िम्मेदार है...

हाइपरटेंशन का एक तरीका है नमक के सेवन में नियंत्रण रखना...
WHO कहता है कि एक दिन में एक व्यक्ति को 2 ग्राम से ज़्यादा नमक नहीं लेना चाहिए... लेकिन WHO की रिपोर्ट कहती है कि एक औसत भारतीय एक दिन में क़रीब 10 ग्राम नमक औसतन लेता है.
- हाइपरटेंशन को लाइफ़स्टाइल डिज़ीज़ भी कहा जाता है क्योंकि ये हमारे जीने के तरीके से भी काफ़ी हद तक जुड़ी हुई है... ऐसी ही एक लाइफ़स्टाइल डिज़ीज़ है डायबिटीज़ यानी मधुमेह... ये भी एक ऐसी बीमारी है जिसका पहले पहल पता नहीं लग पाता लेकिन जब इसका असर हमारी रोज़मर्रा की सेहत पर पड़ने लगता है और किसी अन्य बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं तो ब्लड टेस्ट में इसका पता लगता है...
- प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 10 करोड़ दस लाख लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वे में ये भी पता चला है कि देश में क़रीब 13 करोड़ साठ लाख लोग यानी देश की 15% से ज़्यादा आबादी प्रीडायबिटिक है यानी उनके डायबिटीज़ की चपेट में आने की आशंका है.
- डायबिटीज़ यानी हाई ब्लड शुगर की वजह ये है कि शरीर में एक महत्वपूर्ण अंग पैनक्रियाज़, इंसुलिन नाम का एक हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता... इंसुलिन खून में मौजूद ग्लूकोज़ को शरीर में सही जगहों पर पहुंचाता है या उनका सही इस्तेमाल करता है... डायबिटीज़ दो तरह के होते हैं... टाइप वन डायबिटीज़ और टाइप टू डायबिटीज़
- टाइप वन डायबिटीज़ एक ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जो पैनक्रियाज़ को इंसुलिन बनाने से रोकती है... ये जीवनपर्यंत रहने वाली बीमारी है... भारत में क़रीब 8.6 लाख लोग टाइप वन डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं... ऐसे छह में से एक व्यक्ति की मौत टाइप वन डायबिटीज़ की पहचान होने से पहले ही हो जाती है... अगर समय पर पता चल जाए तो टाइप वन डायबिटीज़ के मरीज़ों के स्वास्थ्य को दवाओं के दम पर ठीक रखा जा सकता है...

दूसरा होता है टाइप टू डायबिटीज़... जो ज़्यादा आम है... टाइप टू डायबिटीज़ ज़्यादातर एक लाइफ़ स्टाइल डिज़ीज है जो सेहत और खान-पान के प्रति हमारी लापरवाही का नतीजा होता है... शारीरिक श्रम कम करने और उसके मुक़ाबले गरिष्ठ खान-पान टाइप टू डायबिटीज़ को बढ़ावा देता है... यानी बदलती जीवनशैली इसकी एक वजह है... इसके अलावा इसके वंशानुगत कारण भी होते हैं...
ख़ास बात ये है कि युवा और किशोर भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं... भारत में टाइप टू डायबिटीज़ की चपेट में आने वाले 25% मरीज़ 25 साल से कम उम्र के हैं...
हाई बॉडी मास इंडेक्स और मोटापा डायबिटीज़ की बड़ी वजह है... डायबिटीज़ एक ऐसी बीमारी है जो धीरे धीरे शरीर को खोखला करने लगती है... डायबिटीज़ पर काबू न किया जाए तो ये दिल की बीमारियों, किडनी की बीमारियों, नर्व डैमेज, Eye डैमेज, इनफेक्शन, नुपंसकता, पाचन से जुड़ी समस्याओं की वजह बन सकती है... इससे निपटने का सबसे बेहतर तरीका है पर्याप्त शारीरिक श्रम जैसे कसरत वगैरह करना और हाई कैलोरी वाले खान-पान पर नियंत्रण रखना...

मोटापा है एक गंभीर समस्या
हाइपरटेंशन और डायबिटीज़ जैसे लाइफ़ स्टाइल डिज़ीज़ की चपेट में आने वाले अधिकतर लोगों के पहले मोटापे का शिकार होने की आशंका रहती है... यानी Obesity... बदलती जीवन शैली के कारण दुनिया की बड़ी आबादी मोटापे की चपेट में है, यही वजह है कि WHO मोटापे को वैश्विक महामारी घोषित कर चुका है...
WHO द्वारा जारी सन 2022 के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में एक अरब से ज़्यादा लोग मोटापे के शिकार हैं... यानी दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति मोटापे का शिकार है... अगर इनमें ओवरवेट लोगों को भी शामिल कर दिया जाए तो ये आबादी 2.5 अरब हो जाती है... भारत में मोटापा एक बड़ी समस्या बन चुका है...
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के मुताबिक 2019 से 2021 के दौरान भारत में 15 से 49 साल के बीच के 4% पुरुष/// और 6.4% महिलाएं मोटापे यानी Obesity के शिकार हैं...
अगर ओवरवेट को भी जोड़ दें तो National Family Health Survey - 5 के मुताबिक 2019 से 2021 के दौरान भारत में 23% पुरुष और 24% महिलाएं या तो ओवरवेट थे या Obese यानी मोटापे के शिकार...
भारत में बच्चों में भी मोटापा बहुत तेज़ी से बढ़ा है... 2015-16 में भारत में जहां 5 साल से कम उम्र के 2.1% शिशु मोटापे के शिकार थे वहीं 2019-21 में 3.4% शिशु मोटापे की चपेट में हैं...
- ये सब बदलती जीवनशैली और खान-पान का असर है...
- जैसे हाई कैलोरी लेकिन कम पोषण वाले खानपान से मोटापा बढ़ता है...
- प्रोसेस्ड फूड्स के अधिक इस्तेमाल से मोटापा बढ़ता है...
- घर के खाने के बजाय बाहर के खाने के चलन ने भी मोटापे को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है
- जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड्स के इस्तेमाल से भी मोटापा बढ़ा है जिससे मेटाबॉलिज़्म पर असर पड़ता है और वज़न बढ़ता है...
- एक और बड़ी वजह है शारीरिक श्रम कम करना... Physical Inactivity... शारीरिक मेहनत से जुड़े खेलों में कम हिस्सा लेना, कसरत न करना या घर से बाहर की अन्य गतिविधियों में कम शरीक़ होना...
- Sedentry Lifestyle यानी आराम की जीवनशैली भी मोटापे के बढ़ने की एक बड़ी वजह है...
मोटापा, हाइपरटेंशन, डायबिटीज़, खानपान की बदलती जीवनशैली और शारीरिक मेहनत के काम कम करने का सीधा असर हमारे दिल पर पड़ता है... दिल शरीर का एक ऐसा अंग है जिसका धड़कना हमारे जीते रहने की गारंटी है...
सोचिए दिल एक दिन में क़रीब एक लाख बार हमारे सीने में धड़कता है... 80 साल के एक व्यक्ति की पूरी ज़िंदगी में दिल क़रीब तीन अरब बार धड़कता है... ये है दिल की ताक़त... मां के पेट में भ्रूण के भीतर धड़कने से दिल जो शुरुआत करता है, तो तब तक नहीं थकता जब तक किसी कारण जीवन का अंत न हो जाए... दिल को आराम की ऐसी ज़रूरत नहीं होती... उसकी तो मांग ही होती है कि पर्याप्त शारीरक श्रम किया जाए... मेहनत दिल को जवान रखती है... ऊपर से अच्छा खान पान एक सेहतमंद दिल की पहली मांग होती है... लेकिन जो जीवनशैली बदल रही है वो दिल के लिए अच्छी बात नहीं है... कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ यानी दिल और धमनियों से जुड़ी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं.

- Global Burden of Disease नाम की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दुनिया के मुक़ाबले कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ यानी CVD से मौतें ज़्यादा होती हैं...
- जहां दुनिया में प्रति एक लाख लोगों पर 235 लोगों की मौत CVD से होती हैं वहीं भारत में ये अनुपात प्रति एक लाख पर 272 है... भारत में ये एक शांत महामारी यानी Silent Epidemic का रूप धारण कर चुका है...
भारत में कुल मौतों की क़रीब एक चौथाई मौतें यानी 26.6% मौतें कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ के कारण होती हैं...
WHO के मुताबिक दुनिया भर में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ से होने वाली कुल मौतों की क़रीब 20% मौतें भारत में होती हैं...
2023 में भारत में क़रीब 6 करोड़ 40 लाख लोग कार्डियो वैस्कुलर डिज़ीज़ से पीड़ित थे... चिंता की बात ये है कि भारत में बड़ी ही तेज़ी से युवा भी दिल की बीमारियों की चपेट में आ चुके हैं..इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के एक अध्ययन के मुताबिक बीते दो दशक में 30 से 44 साल के लोगों में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ तीन गुना बढ़ चाका है...
ये जनस्वास्थ्य से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है... कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ के कारण हार्ट अटैक, हार्ट स्ट्रोक आने और जान जाने का ख़तरा रहता है..
जीवन में जिस तरह की आपाधापी बढ़ चुकी है... जिस तरह तनाव ज़िंदगी को प्रभावित कर रहा है उसने देश में एक और बीमारी को घर-घर पहुंचा दिया है... ये है डिप्रेशन और मानसिक तनाव
- आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति में किसी न किसी मानसिक बीमारी के लक्षण हैं...
- मानसिक सेहत से जुड़ी 50% दिक्कतें 14 साल की उम्र से शुरू हो जाती हैं
- और 75% दिक्कतें 24 साल की उम्र तक शुरू हो जाती हैं...
- भारत में क़रीब 6 से 7 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की मानसिक तकलीफ़ से गुज़र रहे हैं...
- इनमें डिप्रेशन काफ़ी आम है... यूनिसेफ़ के 2021 के सर्वे के मुताबिक भारत में 15 से 24 साल के युवाओं में से 14% को अक्सर डिप्रेशन की शिकायत रहती है...
- डिप्रेशन के चलते कई बार लोग अपनी जान तक देने पर उतारू हो जाते हैं... इसी वजह से भारत को दुनिया की सुसाइड कैपिटल कह दिया जाता है... भारत में प्रति वर्ष क़रीब 2 लाख 60 हज़ार ख़ुदकुशी की घटनाएं होती हैं...
डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसे कई लोग आज भी गंभीरता से नहीं लेते... कई लोग या उनके रिश्तेदार ये मानने को तैयार ही नहीं होते कि उन्हें डिप्रेशन है, लिहाज़ा डॉक्टरों या मनोचिकित्सकों को दिखाने भी नहीं जाते...
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