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Explainer: क्‍या है डार्क पैटर्न और कैसे लगाई जाती है निजता में सेंध, आप भी तो नहीं हो चुके शिकार

आपसे जुड़ी जानकारियां कई कंपनियों के लिए पैसा छापने की मशीन बन गई हैं और आपके जरिए पैसा बनाने की इस कोशिश में एक डार्क पैटर्न आपका पीछा कर रहा है.

नई दिल्‍ली :

फेसबुक, इंस्टाग्राम, रील्स, लाइक्स, शेयर्स, ऑनलाइन शॉपिंग, वेबसाइट ब्राउजिंग के इस दौर में इंटरनेट कनेक्टिविटी एक ऐसी चीज, एक ऐसी सुविधा हो गई है जो कुछ देर के लिए अगर बंद हो जाए तो लगता है जैसे सांसें थम गई हों. दुनिया के तमाम काम रुक जाते हैं. हालत ये हो गई है कि हर हाथ में मोबाइल फोन है और हर नजर सोशल मीडिया में झांकती रहती है, भले ही अगल बगल के लोगों को नजरअंदाज़ कर दे. लोग दुकान पर जाएं, न जाएं इंटरनेट पर शॉपिंग जरूर करने लगे हैं, यहां भी शॉपिंग न करें तो विंडो शॉपिंग ही सही. 

फोन पर स्क्रोल करना एक नया शगल हो गया है. बिरले ही इस आकर्षण से बच पाए हैं, लेकिन इस आभासी दुनिया में धोखा भी कम नहीं है. आपको पता भी नहीं चलेगा कि यहां किसने आपका हाथ थाम लिया या आप किसके साथ-साथ चलने लग गए. किस वेबसाइट को अनजाने में पसंद करने लगे. अनजाने में क्या आपने क्लिक कर दिया. आभासी दुनिया ही अब असली दुनिया सी हो गई है. यहीं एक नया समाज, एक नया बाजार बन गया है. यही वजह है कि यहां आपको किसी न किसी तरह प्रभावित करने वालों की भी कमी नहीं है और प्रभावित करने की इस कोशिश के पीछे छुपा है एक बड़ा मार्केट जिसका आपको अहसास भी नहीं होता. वो आपकी हर हरकत को दर्ज कर रहा है, आपकी हर पसंद, नापसंद उससे छुपी नहीं है, आपको लगता है कि आप यहां कुछ खरीदने निकले हैं, लेकिन पता ही नहीं चलता कि यहां आप ही सामान हो चले हैं, प्रोडक्ट हो गए हैं और आपको ही खरीदा जा रहा है, आपकी निजी जानकारियों से जुड़े बहुमूल्य आंकड़े बाजार में आ गए हैं. आपसे जुड़ी ये जानकारियां कई कंपनियों के लिए पैसा छापने की मशीन बन गई हैं और आपके जरिए पैसा बनाने की इस कोशिश में, आपको लुभाने की कोशिश में एक डार्क पैटर्न आपका पीछा कर रहा है. लेकिन ये डार्क पैटर्न है क्या जिससे आपको बचना चाहिए. आइए जानते हैं.  

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डार्क पैटर्न कैसे करता है काम?

आपने अक्सर देखा होगा कि जब आप फोन पर किसी वेबसाइट पर सर्च कर रहे हों तो अचानक आपके सामने कुछ ऐसा आ जाता है जो आपने सोचा भी नहीं था, जैसे कोई अनचाहा विज्ञापन जिसे आप हटाने की कोशिश करते हैं लेकिन वो हटता ही नहीं. आप ढूंढते हैं कि कहीं किसी कोने में क्रॉस का साइन मिल जाए ताकि आप उसे हटा सकें लेकिन वो आसानी से दिखता ही नहीं. आपके सामने वो विकल्प पेश करने लगता है कि आप उसे स्वीकार यानी एक्सेप्ट करें, आप एक्सेप्ट नहीं करना चाहते तो खारिज करने का विकल्प आपको ढूंढना पड़ता है. कई बार जल्दबाजी में आप एक्सेप्ट को ही क्लिक कर देते हैं और इसके साथ ही उस साइट विशेष को आपकी इजाजत मिल जाती है. आपकी कई जानकारियां अनजाने में उसके साथ साझा हो जाती हैं. इसी को डार्क पैटर्न या डिसेप्टिव पैटर्न कहते हैं यानी ऐसे यूज़र इंटरफेस जो यूजर्स को, जो हम और आप हैं, उन्हें भ्रमित करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. तमाम सोशल मीडिया कंपनियां अपने फायदे के लिए ऐसा करती हैं. 

इसके कुछ और उदाहरण देखिए जैसे ऑनलाइन सौदे के लिए आपकी इजाजत मांगते वक्त अर्जेंसी दिखाना और काउंटडाउन शुरू कर देना ताकि यूज़र को लगे कि अगर इजाजत नहीं दी तो कुछ महत्वपूर्ण हाथ से निकल सकता है. 

  • किसी वीडियो या ऐड को जबरन चलाए रखना भले यूजर देखना न चाहे. 
  • आपकी इजाजत के बिना किसी विज्ञापन को समाचार की तरह दिखाकर आपको लुभाने की कोशिश कर देना. 
  • किसी चीज को आप जानने की कोशिश में थोड़ा वेबसाइट को खंगालें तो वो तुरंत आपको अकाउंट बनाकर जरूरी जानकारियां मांगने लग जाती है.
  • अगर आप साइन अप कर किसी चीज को खरीद लें और फिर उसे कैंसल करना चाहें तो वो कैंसल नहीं होती, बिना खरीदे वो आपको बाहर निकलने का रास्ता नहीं देती. 
  • किसी चीज का फ्री ट्रायल खत्म होने जाने के बाद बिना किसी सूचना के क्रेडिट कार्ड से चार्ज वसूल करना शुरू कर देना भी डार्क पैटर्न के हथकंडों में शामिल है. 
  • किसी ई कॉमर्स वेबसाइट पर आप ऑनलाइन शॉपिंग करें, कोई चीज़ खरीदें और साथ में अपने आप कोई और चीज भी आपकी कार्ट में जुड़ जाए. 

ये सब डार्क पैटर्न के उदाहरण हैं जो आपकी इच्छा के खिलाफ आपकी इजाजत लेना चाहता है. आपको प्रभावित न कर पाए तो धोखे से ही आपकी जेब में सेंध लगा दे या फिर आपकी अहम जानकारियों को हासिल कर लें.

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डार्क पैटर्न को लेकर सामने आ चुके हैं कई शोध 

ये कुछ ऐसा ही है जैसे आप किसी दुकान पर जाएं, आपको सामान पसंद न आए तो दुकानदार कुछ और ही सामान बेचने के लिए आपको बहलाने, फुसलाने या धोखा देने लगे, भले आपके पास समय हो न हो, कई बार आप खरीद भी लेते हैं. भले सामान गैर ज़रूरी हो. इंटरनेट शॉपिंग भर भी ये चलन आम हो चला है. वेबसाइट्स और ऐप्स, यूजर को कनफ्यूज यानी भ्रमित कर देते हैं और कुछ ऐसा करवा देते हैं जो यूजर करना नहीं चाहता था. यही यूजर इंटरफेस डार्क पैटर्न या डिसेप्टिव पैटर्न कहा जाता है. आपने इसे जरूर महसूस किया होगा भले ही ये नाम आप पहली बार सुन रहे हों. इसे लेकर कई शोध भी हुए हैं. 

  • 2019 में अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो ने 11 हज़ार लोकप्रिय ई कॉमर्स वेबसाइट्स का अध्ययन किया. इसमें पता चला कि इनमें से 10% साइट डिसेप्टिव पैटर्न्स का इस्तेमाल करती हैं. 
  • 2022 में यूरोपियन कमीशन की एक रिपोर्ट में और भी गंभीर नतीजा सामने आया. पता चला कि डार्क पैटर्न्स का इस्तेमाल और भी ज्‍यादा बढ़ गया है. यूरोपियन यूनियन के ग्राहकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ऐप्स में से 97% ऐप्स डार्क पैटर्न्स का इस्तेमाल करते हैं यानी इस अनैतिक रणनीति का इस्तेमाल तेज हुआ है. 
  • अगस्त 2024 में Advertising Standards Council of India (ASCI) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें पता चला कि 53 सबसे ज्‍यादा डाउनलोड किए जाने वाले ऐप्स में से 52 ऐप्स कम से कम एक डिसेप्टिव या डार्क पैटर्न तरीका आजमाते हैं. 

ऐसी शिकायतों के चलते ही नवंबर 2023 में केंद्र सरकार ने अपने दिशा निर्देशों में 13 किस्म के डार्क पैटर्न्स को unfair trade practices यानी अनुचित व्यापार व्यवहार बताया था.

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कंपनियों को डार्क पैटर्न से जुड़े दिशा निर्देशों का पालन करना होगा: केंद्र 

भारत सरकार ने आज इस मुद्दे पर एक अहम बैठक में सभी संबंधित ई कॉमर्स कंपनियों और बड़ी सोशल वेबसाइट्स को सख्‍ती से बता दिया कि वो इस सिलसिले में नवंबर 2023 में दिए गए निर्देशों का पालन सुनिश्चित करें. उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में सभी संबंधित ई कॉमर्स कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए. इनमें एमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्विगी, जोमैटो, मीशो, पेटीएम, ओला, ऐप्पल, व्हाट्स ऐप, मेक माई ट्रिप, ईज माई ट्रिप जैसी तमाम कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल रहे. सरकार ने सभी कंपनियों को साफ कर दिया कि उन्हें डार्क पैटर्न से जुड़े दिशा निर्देशों का पालन करना होगा और सुधार के लिए उन्हें कुछ समय दिया जा रहा है. ये भी कहा गया कि ये कंपनियां समय समय पर इंटर्नल ऑडिट कर ये पता करें कि कहीं उनके यहां डार्क पैटर्न्स का इस्तेमाल तो नहीं हो रहा. कंपनियों को इस ऑडिट के नतीजों को अपनी वेबसाइट पर दिखाना होगा. साथ ही इस समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सरकार के साथ सहयोग करना होगा. इस सिलसिले में एक साझा वर्किंग कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा गया है. 

डार्क पैटर्न से कंपनियों पर भी पड़ता है विपरीत असर

डार्क पैटर्न के इस्तेमाल से भले ही कंपनियों को फौरी मुनाफा हो जाए लेकिन उपभोक्ताओं को लगातार नुकसान होता है. डार्क पैटर्न का संबंधित कंपनी पर भी कई तरह से विपरीत असर पड़ता है. 

  • इससे ग्राहकों की वफादारी पर असर पड़ता है जो बहुत मुश्किल से वर्षों मे हासिल होती है. 
  • यूजर इक्सपीरियेंस यानी यूज़र का अनुभव खराब होता है. खराब होगा ही अगर आप इच्छा के खिलाफ धोखे से सहमति ले लेंगे या कुछ खरीदवा लेंगे.  
  • यूजर का भरोसा टूटेगा तो वो नेगेटिव फीडबैक के तौर पर सामने आएगा. लोग इन दिनों अपना अनुभव तुरंत सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं. 
  • सबसे बड़ी बात कि ब्रैंड इमेज को यानी ब्रैंड की साख को धक्का लगता है. सोशल मीडिया में साख बिगड़ते देर नहीं लगती.

लोगों को ठगने या के लिए डार्क पैटर्न्स का इस्तेमाल न सिर्फ अनैतिक बल्कि गैर कानूनी भी है. इसे लेकर सरकारें समय समय पर सचेत भी करती रही हैं और ऐसा करने वाली वेबसाइट्स या कंपनियों पर पाबंदी भी लगाई जा सकती है. 

डार्क पैटर्न को लेकर क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट?

डार्क पैटर्न की इस प्रैक्टिस पर हमने साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल से बात की. दुग्‍गल ने कहा कि आज के दौर में डार्क पैटर्न की चुनौती उभर कर सामने आई है. उसका कारण ये है कि लोग ऑनलाइन ईको सिस्‍टम पर आ गए हैं, लेकिन इन डार्क पैटर्न की वास्‍तविक कार्यशैली से वाकिफ नहीं हैं. अक्‍सर ई-कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म डार्क पैटर्न का इस्‍तेमाल करते हैं. कहीं न कहीं यूजर बिहेवियर को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं. उनका एक ही उद्देश्‍य होता है कि वो अपनी जेबें ज्‍यादा से ज्‍यादा भर सकें. उनके लिए कंज्‍यूमर वेलफेयर प्रायोरिटी नहीं है. यही कारण है कि सरकार इसे विशिष्‍ट दृष्टिकोण से देख रही हैं. यह डार्क पैटर्न कहीं न कहीं उपभोक्‍ता की स्‍वतंत्रता का उल्‍लंघन करती है और उन्‍हें गुमराह करने का प्रयास करती हैं.

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