America Signal Gate Scandal: डोज के कारण अमेरिका की सुरक्षा खतरे में है.
America Signal Gate Scandal: क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपको आपकी मर्ज़ी के बिना किसी व्हाट्स ऐप ग्रुप या किसी और मैसेंजर ऐप में जोड़ दिया गया हो. ज़रूर हुआ होगा. लगभग हर व्यक्ति के साथ होता है. कई लोग तो ऐसे ग्रुप छोड़कर निकल जाते हैं, जहां जोड़ने से पहले उनसे पूछा ही नहीं गया. कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो सोचते हैं कि जोड़ दिया तो जोड़ दिया क्या फर्क पड़ता है, लेकिन अगर कभी ग़लती से आपको ऐसे किसी ग्रुप में जोड़ दिया जाए, जहां देश की ख़ुफ़िया सैन्य जानकारियों को साझा किया जा रहा हो, वो भी देश के सबसे ज़िम्मेदार लोगों द्वारा तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी. शायद कई लोग हैरान रहेंगे, कई डर भी जाएंगे कि अब क्या करें, किसे बताएं. अमेरिका में ऐसा ही हुआ है, जिसे नाम दिया जा रहा है सिग्नल गेट. व्हाइट हाउस में इस समय सबसे ज़्यादा चर्चा इसी की है.

काफ़ी सुरक्षित माने जाने वाले मैसेंजर ऐप सिग्नल पर अमेरिका की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार सबसे बड़े अधिकारियों के बेहद ख़ुफ़िया ग्रुप में यमन के हूती विद्रोहियों पर फौजी कार्रवाई से जुड़ी चर्चा चल रही थी. ग्रुप का नाम रखा गया था “Houthi PC small group. इसमें जल्द ही हमले की गोपनीय योजनाएं तैयार हो रही थीं. निशाने क्या होंगे, किन हथियारों का अमेरिका इस्तेमाल करेगा और कहां कब हमला किया जाएगा. इस ग्रुप में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वॉल्ट्ज़ से लेकर रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ, उपराष्ट्रपति जेडी वांस, विदेश मंत्री मार्को रूबियो, डायरेक्टर और नेशनल इंटेलिजेंस तुलसी गैबार्ड शामिल थीं. इससे ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ग्रुप में कितने ऊंचे स्तर पर बड़ी ख़ुफ़िया जानकारियां एक दूसरे से बांटी जा रही होंगी, लेकिन इसी ग्रुप में ऐसा भी एक सदस्य था, जिसका इन लोगों से कोई लेना देना नहीं था. ये थे अमेरिका की एक मैगज़ीन The Atlantic के Editor-In-Chief Jeffrey Goldberg, जिन्हें ग़लती से इस ग्रुप में जोड़ने का इनविटेशन भेज दिया गया था.

गोल्डबर्ग का कहना है कि उन्हें सिग्नल का इनविटेशन अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार Mike Waltz के अकाउंट से मिला. पहले उन्हें लगा कि कोई मज़ाक कर रहा है. बाद में अहसास हुआ कि ये तो वास्तव में सच है. वो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा टीम के ग्रुप में जुड़ गए हैं. 15 मार्च को गोल्डबर्ग को मिली इन जानकारियों के दो घंटे बाद ही अमेरिका ने यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर एक के बाद एक कई हमले कर दिए. अमेरिका नवंबर 2023 से ही यमन में हूती विद्रोहियों पर हवाई हमले कर रहा है, जबसे हूती विद्रोहियों ने गाज़ा में इज़रायल की फौजी कार्रवाई के विरोध में लाल सागर में व्यापारिक और फौजी जहाज़ों को निशाना बनाना शुरू किया.
अमेरिका के अख़बार द गार्जियन के मुताबिक ग्रुप में जो मैसेज थे, उनमें यूरोप को लेकर अमेरिका का गुस्सा भी झलक रहा था. द गार्जियन के मुताबिक अमेरिका के उप राष्ट्रपति दुनिया के शिपिंग रूट्स की सुरक्षा की अमेरिका की ज़िम्मेदारी को लेकर नाराज़ थे और कह रहे थे कि वो यूरोप को एक बार फिर बचाने के ख़िलाफ़ हैं. द गार्जियन के मुताबिक अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ भी इससे सहमत थे और अमेरिका की फौजी सहायता पर यूरोप की निर्भरता को उन्होंने PATHETIC बताया. उधर ये बात सामने आने के बाद यूरोपीय देशों में भी काफ़ी सुगबुगाहट दिख रही है.

सिग्नल एक ऐसा मैसेजिंग ऐप है जो Encrypted है यानी काफ़ी सुरक्षित माना जाता है, लेकिन उस पर गोपनीय जानकारियां साझा करने की इजाज़त नहीं है. हालांकि, अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के 18 सबसे बड़े सदस्य उस पर जानकारियां साझा कर रहे थे. गोल्डबर्ग ने कहा कि उन्होंने तुरंत ग्रुप पर साझा की गई संवेदनशील जानकारियां डिलीट कर दीं. इनमें एक सीआईए ऑफ़िसर के बारे में और कुछ ख़ुफ़िया ऑपरेशन्स की जानकारी थी. जेफ़्री गोल्डबर्ग को जब ये यकीन हो गया कि मामला गड़बड़ है और उन्हें ग़लती से इस ग्रुप में शामिल कर दिया गया है तो उन्होंने ये जानकारी ट्रंप प्रशासन को दी. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता Brian Hughes ने पुष्टि की कि ये मैसेज वास्तविक थे. उन्होंने कहा कि वो इस बात का पता लगा रहे हैं कि कैसे कोई नंबर ग़लती से इस चेन में जुड़ गया. उधर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता हूं. मैं The Atlantic का बड़ा प्रशंसक नहीं हूं. बाद में व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी ने एक बयान में कहा कि ट्रंप को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम पर अब भी पूरा भरोसा है, लेकिन अमेरिका में सुरक्षा के कई जानकारों का मानना है कि इस मामले की तुरंत जांच होनी चाहिए. कई का कहना है कि उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा में पूरा जीवन बिता दिया, लेकिन ऐसी बात कभी देखी ही नहीं.
सुरक्षा मामलों के जानकार और इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर यशोवर्धन आज़ाद ने बताया कि अब ट्रंप प्रशासन इस मामले की जांच कराएगा या नहीं, कराएगा तो कैसे ये तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन किसी की लापरवाही से अमेरिका की सुरक्षा में ये बड़ी सेंध तो है ही, जो सुर्ख़ियों में बनी हुई है. वो तो एक वरिष्ठ पत्रकार थे कि उन्होंने ज़िम्मेदारी से काम लिया, लेकिन क्या हो अगर ऐसी कोई ख़ुफ़िया जानकारी किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ लग जाए जो सरकार से नाराज़ हो, पैसे या किसी दबाव में ऐसी जानकारी दुश्मनों तक पहुंचा सकता हो. अमेरिका में इन दिनों इस बात की भी बड़ी चिंता है.
अमेरिका के सरकारी कर्मचारी नाराज़
इसकी वजह है अमेरिका में बनाया गया नया विभाग DOGE यानी Department of Government Efficiency, जिसे लेकर अमेरिका के सरकारी कर्मचारी काफ़ी नाराज़ हैं. आप जानते ही होंगे DOGE के तहत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उनके सलाहकार एलन मस्क अमेरिका की संघीय सरकार के कामकाज को दुरुस्त करने की कोशिश के तहत कई विभागों को बंद कर रहे हैं, हज़ारों कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं. इसके लिए एलन मस्क के तहत DOGE यानी Department of Government Efficiency नाम का विभाग बनाया गया है.
DOGE अमेरिकी सरकार के हर विभाग का ऑडिट कर रहा है. उसे लगता है कि अमेरिका के विभागों में ज़रूरत से ज़्यादा कर्मचारी हैं, जो जनता के अरबों डॉलर के टैक्स पर पल रहे हैं और उनके काम की ज़रूरत नहीं है. जैसे अमेरिका की संघीय सरकार में शिक्षा विभाग को भी ख़त्म कर दिया गया है. इस विभाग के कई कर्मचारी मंगलवार को आख़िरी बार अपने दफ़्तर से बाहर निकले तो बाहर खड़े लोगों ने उनका स्वागत किया. हालांकि, शिक्षा विभाग बंद किए जाने का काफ़ी विरोध हो रहा है, लेकिन इन लोगों के पास फ़िलहाल कोई चारा नहीं था.
दुनिया के दूसरे देशों में विकास से जुड़े कामों की फंडिंग करने वाली अमेरिकी संस्था USAID को तो पूरी तरह बंद ही कर दिया गया है. उसके काम को ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका के पैसे की पूरी तरह बर्बादी बताया है. इसके बाद दुनिया के कई देशों में अमेरिका के फंड पर काम कर रहे लोगों की नौकरियां चली गईं हैं. ये लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, शरणार्थी पुनर्वास, ग़रीबी उन्मूलन, पर्यावरण जैसे अहम कामों से जुड़े हुए थे. इसके बाद कई विकासशील देशों के सामने अपने विकास से जुड़े कामों में बड़ी दिक्कत आ गई है, लेकिन अब समस्या दूसरे देशों से ज़्यादा ख़ुद अमेरिका के लिए खड़ी हो सकती है.

जिस तरह से संघीय सरकार के अलग अलग विभागों के हज़ारों अधिकारियों, कर्मचारियों को नौकरियों से निकाला जा रहा है या ख़ुद चले जाने का अल्टीमेटम दिया जा रहा है, वो ख़तरनाक हो सकता है. ऐसे कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि उनकी सुनने वाला कोई नहीं. समाचार एजेंसी AP के मुताबिक हर साल औसतन एक लाख संघीय कर्मचारी नौकरियां छोड़ते हैं. कई रिटायर हो जाते हैं तो कई प्राइवेट सेक्टर में चले जाते हैं, लेकिन इस साल तीन महीने के अंदर ही इससे कई गुना ज़्यादा लोग नौकरी छोड़ चुके हैं या निकाले जा चुके हैं. उनकी नौकरियों का जाना तो चिंता की बात है, लेकिन अमेरिका के लिए चिंता की दूसरी बड़ी बात ये भी है इन हज़ारों-लाखों कर्मचारियों के पास ऐसी-ऐसी अंदरूनी जानकारियां हैं और ऐसे-ऐसे लोगों से संबंध हैं, जिनका दुश्मनों को पता लग जाए तो अमेरिका के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है. नौकरी से निकाले जा रहे इन लोगों को अपना घर परिवार चलाने के लिए नौकरियां और पैसा चाहिए और कई जानकार मान रहे हैं कि पैसे के बदले अमेरिका की कई गोपनीय जानकारियां विदेशी शक्तियों के हाथों में जा सकती हैं, जो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा हो सकती है.
संवेदनशील जानकारी रखने वाला अमेरिका की संघीय सरकार का हर पूर्व कर्मचारी ऐसी ताक़तों का निशाना बन सकता है. ऐसे हज़ारों लोग एक साथ नौकरी छोड़ रहे हैं या निकाले जा रहे हैं, ऐसे में विदेशी ताक़तों के पास बहुत सारे ऐसे लोग तक पहुंच हो सकती हैं, जो उनके काम आ सकते हैं. जॉर्ज बुश के दौर में व्हाइट हाउस की चीफ़ इन्फॉर्मेशनल ऑफ़िसर रहीं Theresa Payton बताती हैं कि ये सूचनाएं बहुत कीमती हैं. हैरान नहीं होना चाहिए कि रूस और चीन और अन्य संस्थाएं, उदाहरण के लिए आपराधिक संगठन ऐसे सरकारी कर्मचारियों को तेज़ी से अपने यहां काम दे दें.
जानकारों का मानना है कि सिर्फ़ नौकरी से निकलने वाले ख़ुफ़िया अधिकारी ही ख़तरा नहीं हैं, बल्कि कई ऐसे विभाग और एजेंसियां हैं, जिनकी पहुंच अमेरिका के लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों से जुड़े डेटा तक है. इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा और सरकारी कामकाज से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों तक उनकी पहुंच है. नौकरी छोड़ने वाले ऐसे कर्मचारी इन संवेदनशील जानकारियों को अमेरिका के हित के ख़िलाफ़ काम करने वालों तक पहुंचा सकते हैं, जो इनके इस्तेमाल से अमेरिका के सरकारी डेटाबेस में सेंध लगा सकते हैं.
- जैसे अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि का दफ़्तर ऐसी जानकारियां रखता है, जो व्यापारिक वार्ताओं से जुड़ी हैं और अमेरिका के प्रतियोगियों के काम आ सकती हैं.
- अमेरिका के संघीय रिकॉर्ड में ऐसी हज़ारों गोपनीय जानकारियां हैं, जो अमेरिका के ख़ुफ़िया इंटेलिजेंस ऑपरेशन्स और जासूसों से जुड़ी हैं.
- पेंटागन के डेटाबेस में अमेरिका की फौजी क्षमताओं से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां हैं.
- अमेरिका के ऊर्जा मंत्रालय की निगरानी में देश के सबसे सुरक्षित परमाणु राज़ हैं.
समाचार एजेंसी AP ने अमेरिका एक पूर्व काउंटर इंटेलिजेंस ऑफ़िसर John Schindler के हवाले से बताया है कि सामान्य समय में भी हो सकता है कि ख़ुफ़िया एजेंसियों से जुड़ा कोई व्यक्ति वित्तीय फ़ायदे या अन्य कारणों से अमेरिका के राज़ किसी को बेच दे, लेकिन DOGE इसे एक नए स्तर पर ले गया है. इन हालात में कोई न कोई धोखा ज़रूर देगा. सवाल बस ये है कि वो धोखा कितना बड़ा होगा. ऐसे में भटके हुए या गुस्से में आए एक या दो लोग ही अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं. जैसे अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी FBI के पूर्व एजेंट Robert Hanssen और सीआईए के पूर्व अधिकारी Aldrich Ames का उदाहरण सामने है. दोनों ने रूस के लिए जासूसी की और ये पता लग गया कि एक आदमी भी कितना घातक साबित हो सकता है. Hanssen ने अमेरिका द्वारा ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाने से जुड़ी सूचनाओं को रूस के साथ साझा कर दिया. इनमें से कई जानकारियों के चलते रूस में अमेरिका के कई जासूसों का पर्दाफाश हो गया, जिन्हें बाद में अमेरिका के लिए जासूसी करने के आरोप में मार दिया गया. Aldrich Ames ने भी क़रीब दस साल रूस के लिए जासूसी की, लेकिन 1994 में पकड़ लिए गए.

जानकारों का मानना है कि इंटरनेट ने ऐसे लोगों को पहचानने का काम आसान कर दिया है, जो अपने फ़ायदे के लिए देश के राज़ बेच सकते हैं. LinkedIn के ज़रिए ये काम और आसान हो गया है. वहां जाइए और आपको पता लग जाएगा कि अमेरिका के रक्षा मंत्रालय में काम कर चुका कौन सा कर्मचारी अब काम की तलाश में है. कोई विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसी विज्ञापन के ज़रिए फ़र्ज़ी नौकरी का झांसा देकर ऐसे लोगों को नौकरी पर रख सकती है. उन्हें उनकी विशेषज्ञता के लिए काम पर रखा जा सकता है, उन्हें पता भी नहीं लगेगा कि वो सूचना दुश्मन तक पहुंचा रहे हैं.
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