
- यमुना नदी में बाढ़ के कारण दिल्ली के आसपास बसे लोगों को अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में जाना पड़ा है.
- बाढ़ के कारण जंगली जानवर अपने बिल छोड़कर सुरक्षित स्थानों की तलाश में मयूर विहार मेट्रो स्टेशन तक आ गए हैं.
- मयूर विहार-1 मेट्रो स्टेशन से अफ्रीका की दुर्लभ छिपकली को वाइल्डलाइफ टीम ने रेस्क्यू कर लिया है.
दिल्ली यमुना में आई बाढ़ सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि जानवरों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है. बाढ़ आने के बाद यमुना के आसपास बसे लोगों को अपने घरों को छोड़ राहत शिवरों में शरण लेनी पड़ी हैं. वहीं, पानी भरने के कारण जंगली जानवर भी अपने बिलों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं. इस दौरान एक बड़ी छिपकली सूखी जगह की तलाश में मयूर विहार मेट्रो स्टेशन तक पहुंच गई. लोगों ने जब इस छिपकली को देखा, तो वहां हड़कंप मच गया. मेट्रो स्टेशन के स्टाफ ने तुरंत वाइल्डलाइफ टीम को इसकी सूचना दी, जिसके बाद छिपकली का रेस्क्यू किया गया.
वाइल्डलाइफ की टीम ने बताया कि मयूर विहार-1 मेट्रो स्टेशन से रेस्क्यू की गई अफ्रीका की यह दुर्लभ छिपकली है. वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने बताया कि छिपकली के मयूर विहार-1 मेट्रो स्टेशन की पेंट्री एरिया में होने की सूचना मिली थी. सूचना पाकर टीम मौके पर पहुंची और उसे रेस्क्यू किया. छिपकली को सुरक्षित बाहर निकाला और उसे वापस उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया जाएगा.

अभी क्या है यमुना का हाल?
दिल्ली के पुराने रेलवे पुल पर रविवार सुबह आठ बजे यमुना का जलस्तर 205.56 मीटर दर्ज किया गया जो निकासी (लोगों के सुरक्षित निकाले जाने) के लिए निर्धारित 206 मीटर के निशान से नीचे है. राष्ट्रीय राजधानी के लिए चेतावनी का निशान 204.50 मीटर है, जबकि खतरे का निशान 205.33 मीटर है और लोगों को निकालने का काम 206 मीटर पर शुरू होता है. पुराना रेलवे पुल नदी के प्रवाह और संभावित बाढ़ के खतरों पर नजर रखने के लिए एक प्रमुख निगरानी बिंदु के रूप में काम करता है. पिछले कुछ दिनों में नदी के किनारे के कई इलाके जलमग्न हो गए हैं.

नदी के पास निचले इलाकों से निकाले गए लोगों के अस्थायी आवास के लिए दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और मयूर विहार इलाकों में टेंट लगाए गए हैं. बाढ़ नियंत्रण विभाग के अनुसार, हथिनीकुंड बैराज से 51,335 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। वजीराबाद बैराज से लगभग 73,280 क्यूसेक पानी छोड़ा गया. बैराजों से छोड़े गए पानी को दिल्ली पहुंचने में आमतौर पर 48 से 50 घंटे लगते हैं. ऊपरी इलाकों से कम पानी छोड़े जाने से भी जलस्तर बढ़ रहा है.
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