दक्षिण दिल्ली के इसी स्मारक को लेकर हो रहा विवाद
नई दिल्ली:
दिल्ली में एक मकबरे को मंदिर में बदलने का विवाद सामने आया है. दक्षिणी दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव के हुमायूंपुर गांव में 15वीं शताब्दी में बनी एक सांस्कृतिक धरोहर पर गांव के लोग सालों से मंदिर होने का दावा कर रहे हैं. दरअसल गांव के लोगों ने कुछ समय पहले इमारत पर सफेद और भगवा रंग करवा दिया जिसके बाद से ये विवाद शुरू हो गया कि मक़बरा है या मंदिर?
हुमायूंपुर गांव में 15वीं शताब्दी से रहने का दावा करने वाले प्रेम राज फोगाट ने बताया कि 'मेरे पिताजी ने 1937 में यहां मूर्ति की स्थापना की थी और ये जगह शिवमंदिर है. हुमायूंपुर आरडब्ल्यूए के प्रधान रण सिंह ने कहा कि 'मेरा परिवार साल 1560 से यहां रहता है और जबसे होश संभाला है इस जगह पर मंदिर ही है. असल में पहले ये ऐसे ही रहता था लेकिन जबसे हमने इस पर पेंट करवाया है ये खबर में आ गया.'
इलाके की बीजेपी पार्षद राधिका अबरोल फोगाट के मुताबिक ये मंदिर है या मक़बरा उन्हें इसकी जानकारी नहीं. राधिका के मुताबिक 'मार्च में जिस दिन ये मंदिर के नाम पर खोला गया है उस दिन मैं यहां नहीं थी. उस दिन में सिविक सेन्टर में थी, सदन चल रहा था तो ये मेरी जानकारी के बाहर हुआ है. लेकिन जैसा आप जानते हैं कि देश मे मंदिर और मस्जिद को कोई हाथ लगा ही नहीं सकता तो ये बड़ा स्मार्ट मूव है जिसने भी ये किया है. लेकिन मेरा इसमें कोई योगदान नहीं.'
लेकिन दिल्ली के पुरात्व विभाग के मुताबिक ये इमारत दिल्ली की 767 सांस्कृतिक धरोहरों की लिस्ट में शामिल है. दिल्ली सरकार के लिए इस इमारत का रेस्टोरेशन करने वाली संस्था INTACH ने बताया कि ये 15वीं सदी में तुग़लक़ या लोदी काल मे बना मकबरा है. INTACH के दिल्ली चैप्टर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार ने बताया कि 'मौलवी ज़फर हसन की किताब मोन्युमेंट्स ऑफ दिल्ली है जिसमें ये रिफरेन्स है कि ये पठान पीरियड का एक मकबरा है.'
ऐसे में इस सांस्कृतिक धरोहर से छेड़छाड़ बेहद गंभीर मुद्दा बन गया है. दिल्ली सरकार ने भी फिलहाल इस मामले में पुरातत्व विभाग से रिपोर्ट मांगी है.
हुमायूंपुर गांव में 15वीं शताब्दी से रहने का दावा करने वाले प्रेम राज फोगाट ने बताया कि 'मेरे पिताजी ने 1937 में यहां मूर्ति की स्थापना की थी और ये जगह शिवमंदिर है. हुमायूंपुर आरडब्ल्यूए के प्रधान रण सिंह ने कहा कि 'मेरा परिवार साल 1560 से यहां रहता है और जबसे होश संभाला है इस जगह पर मंदिर ही है. असल में पहले ये ऐसे ही रहता था लेकिन जबसे हमने इस पर पेंट करवाया है ये खबर में आ गया.'
इलाके की बीजेपी पार्षद राधिका अबरोल फोगाट के मुताबिक ये मंदिर है या मक़बरा उन्हें इसकी जानकारी नहीं. राधिका के मुताबिक 'मार्च में जिस दिन ये मंदिर के नाम पर खोला गया है उस दिन मैं यहां नहीं थी. उस दिन में सिविक सेन्टर में थी, सदन चल रहा था तो ये मेरी जानकारी के बाहर हुआ है. लेकिन जैसा आप जानते हैं कि देश मे मंदिर और मस्जिद को कोई हाथ लगा ही नहीं सकता तो ये बड़ा स्मार्ट मूव है जिसने भी ये किया है. लेकिन मेरा इसमें कोई योगदान नहीं.'
लेकिन दिल्ली के पुरात्व विभाग के मुताबिक ये इमारत दिल्ली की 767 सांस्कृतिक धरोहरों की लिस्ट में शामिल है. दिल्ली सरकार के लिए इस इमारत का रेस्टोरेशन करने वाली संस्था INTACH ने बताया कि ये 15वीं सदी में तुग़लक़ या लोदी काल मे बना मकबरा है. INTACH के दिल्ली चैप्टर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार ने बताया कि 'मौलवी ज़फर हसन की किताब मोन्युमेंट्स ऑफ दिल्ली है जिसमें ये रिफरेन्स है कि ये पठान पीरियड का एक मकबरा है.'
ऐसे में इस सांस्कृतिक धरोहर से छेड़छाड़ बेहद गंभीर मुद्दा बन गया है. दिल्ली सरकार ने भी फिलहाल इस मामले में पुरातत्व विभाग से रिपोर्ट मांगी है.
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