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This Article is From Jun 11, 2016

दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी में लोग आज भी गरीबी और गंदगी से जूझने को मजबूर

दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी में लोग आज भी गरीबी और गंदगी से जूझने को मजबूर
नई दिल्ली: भारत की  संसद भवन से महज छह किमी दूर देश के हजारों नागरिक गंदगी, कूड़ा खुले शौच, रहने की बहुत ही कम जगह जैसे बदतर हालातों में जीने को मजबूर हैं। ये कोई आम झुग्गी बस्ती नहीं है। ये संभवतः संसार की एकमात्र सबसे बड़ा परंपरागत कलाकारों की बस्ती है। यहां राजस्थान के सबसे पुरानी कठपुतली परंपरा के कलाकार रहते हैं।सड़क के दोनों ओर कचरा, खुली नालियां, लगातार आती बदबू के बीच करीब 3000 परिवार यहां रहते हैं।
 
यहां के कचरे के ढेर सरकार के स्वच्छ भारत अभियान या क्लीन इंडिया ड्राइव पर बदनुमा दाग हैं। कॉलोनी की महिला प्रमुख शरबती ने बताया, " हमने अपने दादा परदादा के जमाने से इस कला को जिंदा रखा है और ये एक मशहूर जगह है। हमने दुनिया भर में घूम कर अपने देश का नाम रोशन किया है। फिर भी सरकार हमें ये जगह खाली करने के लिए दबाव बना रही है और हमारी कला खत्म करना चाहती है।  

सात साल पहले बनी थी आवासीय परियोजना
 2009 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने रहेजा डेवेलपर्स की साझेदारी से इलाके में करीब तीन हजार परिवारों के लिए घरों के साथ शॉपिंग मॉल, ऑफिस और अपार्टमेंट्स की योजना शुरु की थी लेकिन सात सालों के बाद भी डीडीए यहां के रहवासियों का राहत कैंप में जाने के लिए नहीं समझा सकी ताकि उनके लिए मकान बन सकें।  500 परिवार जरूर राहत कैंप में दो साल पहले गए लेकिन 2000 से ज्यादा परिवारों ने जाने से इनकार कर दिया। एनडीटीवी को रहेजा डेवेलपर्स के प्रमुख नवीन रहेजा ने बताया कि उन्होंने सात साल 200 करोड़ रुपए लगा कर बहुत मेहनत से इस परियोजना में लगाए लेकिन किसी ने अपने निहित स्वार्थों की वजह से इसे रोक दिया डीडीए के अधिकारियों की सुस्ती भी इन सारी समस्याओं का बड़ा कारण रहा है।
 
कठपुतली कॉलोनीवासियों का आरोप है कि डीडीए भ्रष्टाचार में लिप्त है। " वो लोग हमें ये जगह छोड़ने से पहले कोई भी लिखित करार नहीं दे रहे हैं कि हमें हमारे घर कब मिलेंगे। क्यों? क्योंकि वो धोखेबाजी कर रहे हैं।" एक रहवासी ने बताया। कॉलोनी के हालात इतने खराब हैं कि जहां कलाकार अभ्यास करते हैं उस के पास कुछ ही फीट दूरी पर बच्चे खुले में शौच करते पाए जाते हैं।

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच जंग का मैदान हो कर रह गई है कॉलोनी
डीडीए केंद्र सरकार के अधीन है इसलिए कॉलोनी केंद्र और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीज जंग का मैदान बनी हुई है। एनडीटीवी को कठपुतली कॉलोनी के आप विधायक विजेंद्र गर्ग ने बताया हमें गड़बड़ी का संदेह है वरना डीडीए यहां के रहवासियों को लिखित करार दे देती। यहां के हालात तो जानवरों के रहने लायक भी नहीं हैं। एनडीटीवी के पास  वो चिठ्ठी है जो आप ने शहरी विकास मंत्री वैंकय्या नायडू को लिखा है जिसमें कठपुतली कॉलोनी के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग की गई है लेकिन गर्ग का दावा है कि मंत्री ने अभी तक मामले में  पर्याप्त दिल्चस्पी नहीं दिखाई है।

डीडीए के भी हैं अपने ही अजीबोगरीब डर
डीडीए ने भी अपनी तरफ से कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया है क्योंकि उसे डर है कि कॉलोनी को जबरन खाली कराना गलत हो सकता है। बीजेपी शासित डीडीए को लगता है कि ये कार्यवाही विपक्ष को एक राजनैतिक हथियार दे सकती है लेकिन उसने लोगों की  लिखित करार की मांग का अजीब जवाब दिया। "एक बार वो जगह खाली कर दें हम करार दे देंगे।"
डीडीए के मुख्य कमिश्नर ने एनडीटीवी को बताया," कभी कभी जब आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो उससे दूसरे हंसने के बजाए रो देते हैं। हम इसे शांति से करने चाहते हैं। पुलिस का अंतिम विकल्प के तौर पर ही उपयोग किया जाएगा। ये दिल्ली के उपराज्यपाल या शहरी विकास मंत्रालय ही तय करेंगे।"
 
कॉलोनी के रहवासी जो राहत कैंप में जा चुके हैं, कह रहे हैं कि बाकी लोग अधिकारियों पर गहरा अविश्वास करते हैं और बिना किसी बलप्रयोग के वो जगह खाली नहीं करेंगे। इस मामले में एक और पीड़ित डेवेलपर है जिसने  500 परिवारों के लिए राहत कैंप बना दिया है और दो सालों से उसका रख रखाव भी किया है।  जब पूछा गया कि क्या इस मामले में राजनीति की वजह से देरी हो रही है, रहेजा डेवेलपर्स के सीएमडी नवीन रहेजा ने कहा, "मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता लेकिन आप यहां एक शानदार स्कीम लाते हैं, मै इसमें शामिल होता हूं और सात साल में मेरा खून निकाल लेते हैं।"

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